अपडेट…

अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए कहा है कि सिलिकॉन वैली बैंक के सभी जमाकर्ता सोमवार से पैसे निकाल सकेंगे। इस बीच, सरकार ने सिग्नेचर बैंक नाम के एक क्षेत्रीय बैंक को भी बंद कर दिया। उसके ग्राहकों को भी सोमवार से पैसे निकालने की अनुमति होगी। इस बीच, एचएसबीसी यूके ने सिलिकॉन वैली बैंक की यूके इकाई को महज एक पौंड में खरीदने की घोषणा की है। एक बयान में एचएसबीसी ने कहा है कि 10 मार्च 2023 को एसवीबी यूके के पास 6.7 अरब पौंड की जमाराशि थी और इसने 5.5 अरब डॉलर के कर्ज दे रखे थे।

अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन, फेडरल रिजर्व चेयरमैन जेरोम पॉवेल और फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (FDIC) चेयरमैन मार्टिन ग्रुएनबर्ग ने एक साझा बयान में कहा कि सिलिकॉन वैली और सिग्नेचर, दोनों बैंकों की सभी जमा राशि को गारंटी दी जाती है, जो जमा इंश्योर्ड नहीं है उसे भी। पिछले साल के अंत में सिलिकॉन वैली बैंक की 151 अरब डॉलर की जमा राशि इंश्योर्ड नहीं थी।

माना जा रहा है कि और बैंक न डूबें, इसलिए सरकार ने इस बेलआउट का निर्णय लिया है। ऐसा न करने पर इनकी तरह दूसरे बैंकों के बाहर भी पैसे निकालने के लिए ग्राहकों की कतार लग सकती थी। सिलिकॉन वैली बैंक में एकाउंट रखने वाले स्टार्टअप के लिए भी बिजनेस में बने रहना मुश्किल हो सकता था। दो साल पहले अमेरिकी बैंकों ने सरकारी बांड में निवेश किया था, जिन पर अब वे घाटे की स्थिति में हैं। एफडीआईसी के अनुसार अमेरिका के बैंक 620 अरब डॉलर के घाटे पर बैठे हैं।

फेडरल रिजर्व ने अन्य जरूरतमंद बैंकों की मदद करने की भी घोषणा की है। बैंक टर्म फंडिंग प्रोग्राम के तहत उन्हें सरकारी बांड और मॉर्गेज बैक्ड सिक्युरिटीज (एमबीएस) के बदले एक साल के लिए लोन दिया जाएगा। इन सिक्युरिटीज की वैल्यू भले गिर गई हो, लोन लेने वाले बैंकों के लिए फेड उनकी मूल वैल्यू को ही मानेगा। इन सिक्युरिटीज में जिन बैंकों को घाटा होगा उनके लिए 25 अरब डॉलर के क्रेडिट प्रोटेक्शन प्लान की घोषणा की गई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के इस निर्णय से संकट के फैलने का जोखिम निश्चित रूप से कम होगा। सिलिकॉन वैली बैंक में जिन स्टार्टअप के पैसे जमा थे, उन्हें अब अपने कर्मचारियों को वेतन देने या ऑपरेशनल खर्चों में कोई दिक्कत नहीं होगी।

मूल खबर…

एस.के. सिंह, नई दिल्ली। खिलौने बेचने वाली अमेरिकी कंपनी कैंप (CAMP) के सीईओ बेन कॉफमैन ने शनिवार, 11 मार्च को एक ट्वीट किया। उन्होंने लिखा कि ग्राहक “BANKRUN” प्रोमो कोड का इस्तेमाल कर खरीद पर 40% छूट ले सकते हैं। कॉफमैन ने अपने कर्मचारियों को ईमेल भी भेजा कि कंपनी दाम घटाकर बिक्री बढ़ाना चाहती है, ताकि विभिन्न ऑपरेशंस के लिए पैसा मिल सके। कैंप के सामने यह नौबत अमेरिका के 16वें सबसे बड़े बैंक, सिलिकॉन वैली बैंक के अचानक बंद हो जाने के कारण आई, जिसमें उसका एकाउंट है।

दरअसल, अमेरिकी रेगुलेटर्स ने शुक्रवार को बैंक का कामकाज अपने नियंत्रण में लेते हुए उसके ऑपरेशंस पर तत्काल रोक लगा दी। अमेरिका के लगभग आधे टेक्नोलॉजी और हेल्थकेयर स्टार्टअप आंशिक या पूर्ण रूप से सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) के जरिए ही ऑपरेट करते थे, इसलिए टेक्नोलॉजी जगत में हड़कंप मचा हुआ है। स्टार्टअप, वेंचर कैपिटल फंड और प्राइवेट इक्विटी फर्म जैसे बैंक के 40,000 से ज्यादा क्लाइंट के अरबों डॉलर फंस गए हैं। सर्किल नाम के क्रिप्टो ग्रुप ने इस बैंक में 3.3 अरब डॉलर फंसने की बात स्वीकार की है। डर है कि कहीं यह संकट गहरा ना हो जाए।

स्टार्टअप्स को कानून सलाह देने वाले लीगलविज.इन के संस्थापक शृजय सेठ जागरण प्राइम से कहते हैं, “सिलिकॉन वैली बैंक का डूबना 2008 के वित्तीय संकट के बाद किसी बैंक के विफल होने का सबसे खराब उदाहरण है। इसका असर पूरी दुनिया पर देखने को मिल रहा है।”

अमेरिका में डूबने वाला यह दूसरा सबसे बड़ा बैंक है। इससे पहले 2008 के वित्तीय संकट में डूबने वाला सबसे बड़ा बैंक वॉशिंगटन म्यूचुअल था। उसका आकार 307 अरब डॉलर था, सिलिकॉन वैली बैंक का आकार 209 अरब डॉलर है। स्थिति से निपटने के लिए विभिन्न देश अपने-अपने स्तर पर कदम उठा रहे हैं। अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने सभी रेगुलेटर्स के साथ आपात बैठक की है। इंग्लैंड अपने यहां टेक्नोलॉजी कंपनियों को नकद राशि मुहैया कराने पर विचार कर रहा है।

वाय-कांबिनेटर स्टार्टअप्स के लिए समस्या

खबरों के अनुसार सिलिकॉन वैली स्थित एक्सेलरेटर वाय-कांबिनेटर (Y Combinator) से जुड़े स्टार्टअप्स के लिए समस्या अधिक है। इसके प्रेसिडेंट गैरी टैन (Garry Tan) ने कहा है, “सिलिकॉन वैली बैंक का डूबना स्टार्टअप्स के लिए विलुप्त हो जाने के स्तर की घटना है। इससे स्टार्टअप जगत और इनोवेशन 10 साल या उससे भी अधिक पीछे चले जाएंगे…। स्टार्टअप्स को अपने कर्मचारियों को वेतन देने में बड़ी समस्या आ सकती है। Y Combinator से जुड़ी 30% कंपनियां अगले 30 दिनों तक वेतन देने की स्थिति में नहीं होंगी।”

टैन ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि एक्सेलरेटर से जुड़ी लगभग 3,000 सक्रिय कंपनियों में से 400 का सिलिकॉन वैली बैंक से संबंध है। डिजिटल ऐसेट कंपनी एफएनडीएक्स (FNDX) के सह-संस्थापक और डायरेक्टर राहुल गायतोंडे कहते हैं, “जिन स्टार्टअप्स का पैसा सिलिकॉन वैली बैंक में फंसा है, उन्हें बैंक का भविष्य तय होने तक इंतजार करना पड़ेगा।”

भारतीय स्टार्टअप भी मुश्किल में

भारत में भी अनेक टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स का सिलिकॉन वैली बैंक में एक्सपोजर है। इन स्टार्टअप्स के निवेशक कंपनी प्रबंधन से तत्काल वैकल्पिक बैंक अकाउंट खोलने के लिए कह रहे हैं, ताकि ग्राहकों का पैसा नए अकाउंट में आए और उनकी लिक्विडिटी ज्यादा प्रभावित ना हो। सेठ के अनुसार, “ज्यादातर स्टार्टअप तो इस बैंक से अपना पैसा नहीं निकाल सके क्योंकि उनके पास वैकल्पिक बैंक अकाउंट ही नहीं थे।”

सेठ कहते हैं, “हाल के वर्षों में अनेक ग्लोबल वेंचर कैपिटल फंड ने अपने पोर्टफोलियो में शामिल स्टार्टअप कंपनियों को अमेरिका शिफ्ट करने का दबाव डाला। बाजार तक बेहतर पहुंच और पहचान के लिए कुछ संस्थापकों ने स्वयं अमेरिका को अपना बेस बनाया। सिलिकॉन वैली बैंक का पूरा कामकाज स्टार्टअप केंद्रित होने के कारण भारतीय स्टार्टअप्स को अमेरिका में बैंकिंग के लिए यह बेहतर विकल्प लगा।” सेठ के अनुसार, “सिलिकॉन वैली बैंक अनेक मशहूर फंडिंग हाउस के पोर्टफोलियो बिजनेस के लिए प्राइमरी बैंकिंग पार्टनर के तौर पर काम कर रहा था।”

एक खबर के मुताबिक Y Combinator एक्सेलरेटर समर्थित कम से कम 40 भारतीय स्टार्टअप के सिलिकॉन वैली बैंक में ढाई लाख से 10 लाख डॉलर तक और 20 से ज्यादा स्टार्टअप के 10 लाख डॉलर से भी ज्यादा जमा हैं। फंसने वाली ज्यादातर कंपनियां अपेक्षाकृत नई हैं। पुरानी कंपनियां कई बैंकों में अकाउंट रखती हैं। उनके अकाउंट भारतीय बैंकों में भी हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी।

बैंक प्रबंधन के शेयर बेचने से संदेह

अमेरिकी रेगुलेटर्स ने भले ही 48 घंटे में कदम उठाते हुए बैंक को अपने नियंत्रण में ले लिया, लेकिन कुछ नए तथ्य चौंकाने वाले हैं। शेयर बाजार से जुड़ी संस्था unusual whales ने ट्वीट किया कि सीईओ ग्रेग बेकर (Greg Becker) ने 27 फरवरी को बैंक में अपनी होल्डिंग का 11%, जनरल काउंसेल माइकल जुकर ने 5 फरवरी को 19%, सीएफओ डेनियल बेक ने 27 फरवरी को 32% और सीएमओ माइकल ड्रेपर ने 1 फरवरी को 25% होल्डिंग बेच दी थी। शुक्रवार को सीईओ बेकर को सैन फ्रांसिस्को फेडरल रिजर्व के बोर्ड से भी हटा दिया गया। एक और तथ्य है कि सिलिकॉन वैली सिक्युरिटीज के चीफ एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर जोसफ जेंटाइल 2007 से कंपनी के साथ हैं, इससे पहले वे 2007-08 में दिवालिया हुए लेहमैन ब्रदर्स के ग्लोबल इनवेस्टमेंट बैंक के सीएफओ थे।

ब्याज दरें बढ़ने का असर

अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने करीब एक दशक तक ब्याज दरों को शून्य के आसपास बनाए रखा। इससे टेक्नोलॉजी क्षेत्र को बैंकों की तरफ से काफी सस्ती फंडिंग मिली। कोविड लॉकडाउन के बाद अचानक मांग बढ़ी, लेकिन सप्लाई चेन बाधित रहने से महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। उसे नियंत्रित करने के लिए फेड रिजर्व ने ब्याज दरों में तेजी से बढ़ोतरी की। पिछले साल फरवरी तक फेड रिजर्व की ब्याज दर 0-0.25% थी। एक साल में यह 4.50-4.75% तक पहुंच चुकी है। ब्याज दर में यह तेजी ऐतिहासिक है। अमेरिका के अलावा भारत समेत सभी प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों ने साल भर में ब्याज दरों में अच्छी खासी वृद्धि की है।

बैंक में क्या हुआ

2007-08 के सब प्राइम संकट का मुख्य कारण कर्ज की क्वालिटी थी। उस समय बैंकों ने जोखिम वाली सिक्युरिटीज में काफी पैसा लगा रखा था। सिलिकॉन वैली बैंक ने वैसा नहीं किया, लेकिन उसका डिपॉजिट बेस बहुत तेजी से बढ़ा। 2019 में उसके पास ग्राहकों के 62 अरब डॉलर का डिपॉजिट था जो 2021 में 190 अरब डॉलर हो गया था। गायतोंडे के अनुसार, “स्टार्टअप्स को ध्यान रखना चाहिए कि बैंक ने गलत काम करने वालों को कर्ज नहीं दिया, बल्कि बैंक के सामने लिक्विडिटी की समस्या है जिसे खत्म होने में थोड़ा समय लगेगा।”

सब-प्राइम संकट के केंद्र में मॉर्गेज आधारित सिक्युरिटीज (Mortgage Backed Securities-MBS) थे। ये ऐसे होम लोन होते हैं जिनकी बिक्री की जा सकती है। सिलिकॉन वैली बैंक ने 80 अरब डॉलर के एमबीएस खरीदे थे। कोविड से पहले उन्हें सुरक्षित माना जा रहा था क्योंकि जब फेडरल रिजर्व की ब्याज दर 0% के आसपास थी तब एमबीएस पर लंबी अवधि में 1.5% ब्याज मिल रहा था। फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ा दीं तो एमबीएस पर मिलने वाला रिटर्न बहुत कम हो गया। दूसरी तरफ, ब्याज दरें बढ़ने से टेक्नोलॉजी कंपनियों की वैल्यूएशन गिरी, अनेक कंपनियों के आईपीओ रुक गए तथा स्टार्टअप्स को बाजार में बने रहने के लिए और ज्यादा पैसा झोंकना पड़ा।

जमा करने वाले ग्राहकों का पैसा दूसरों को कर्ज देकर बैंक कमाई करते हैं। सिलिकॉन वैली बैंक के पास ग्राहकों का पैसा तो काफी जमा हो गया लेकिन उस अनुपात में कर्ज नहीं बढ़ा। इससे बैंक की कमाई प्रभावित होने लगी। स्थिति से निपटने के लिए बैंक ने पिछले बुधवार को दो कदम उठाए। लिक्विडिटी बनाए रखने के लिए उसने सिक्युरिटीज का बड़ा हिस्सा बेच दिया, जिस पर उसे दो अरब डॉलर का नुकसान हुआ। साथ ही इक्विटी बेचकर दो अरब डॉलर जुटाने की घोषणा भी की।

एक दिन में 42 अरब डॉलर निकाले

इन कदमों से निवेशकों को लगा कि बैंक संकट में है। वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी फंडों ने बैंक से पैसा निकालना शुरू कर दिया। यही नहीं, उन्होंने जिन स्टार्टअप्स में पैसा लगा रखा है उन पर भी ऐसा करने के लिए दबाव डाला। करीब 40 साल पुराने बैंक से एक ही दिन में जमाकर्ताओं ने 42 अरब डॉलर निकाल लिए।

संकट बढ़ा तो बैंक के शेयर गुरुवार को 60% गिर गए। सिलिकॉन वैली बैंक कैलिफोर्निया राज्य में स्थित है। वहां के रेगुलेटर ने अगले ही दिन यानी शुक्रवार को इसका नियंत्रण अपने हाथों में लेते हुए फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (एफडीआईसी-FDIC) को रिसीवर नियुक्त कर दिया। रेगुलेटर ने बैंकिंग ऑपरेशंस बंद करते हुए ग्राहकों के डिपॉजिट फ्रीज कर दिए।

सेठ कहते हैं, “अब यह मामला एफडीआईसी के नियंत्रण में है तो इंश्योर्ड जमा राशि जल्दी मिल सकती है, लेकिन जो जमा राशि इंश्योर्ड नहीं है उसके लिए ऐसेट लिक्विडेशन तक इंतजार करना पड़ेगा। यह नए स्टार्टअप्स के लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि मामले का समाधान होने तक उन्हें लिक्विडिटी की कमी से जूझना पड़ेगा।”

एफडीआईसी ढाई लाख डॉलर (लगभग दो करोड़ रुपये) तक की रकम का बीमा करता है। आम जमाकर्ताओं के लिए यह रकम भले ही काफी हो लेकिन किसी मझोले स्टार्टअप के लिए यह महज एक महीने के खर्च के बराबर है। इस तरह हजारों स्टार्टअप और उनके कर्मचारियों का पैसा रुक गया है। एफडीआईसी के अनुसार बैंक के पास 2022 के अंत में 209 अरब डॉलर का एसेट और 175 अरब डॉलर का डिपॉजिट था।

संक्रमण फैलने की आशंका

अमेरिकी इतिहास में बैंक डूबने की इस दूसरी सबसे बड़ी घटना के बाद अब यह अनुमान लगाने की कोशिश की जा रही है कि आगे इसका क्या असर हो सकता है, और कौन-कौन से संस्थान इसकी चपेट में आ सकते हैं। अमेरिका और यूरोप के कुछ बैंकों ने बयान जारी कर कहा है कि उनके पास पर्याप्त लिक्विडिटी है और जोखिम का कोई खतरा नहीं है। लेकिन इसे स्थिति को संभालने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जब मौद्रिक नीति में लगातार इतनी सख्ती बरती जा रही है, तो कुछ न कुछ तो टूटना ही था। यह सिलिकॉन वैली बैंक के टूटने के रूप में सामने आया। इससे पहले की स्थिति ज्यादा बिगड़े, सरकारों को आवश्यक कदम उठाने चाहिए। बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि आने वाले समय में दुनिया के प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों का क्या रुख रहता है। हालांकि अमेरिका की वित्त मंत्री और पूर्व फेड प्रमुख जेनेट येलेन तथा व्हाइट हाउस दोनों ने कहा है कि 2008 के मुकाबले बैंकिंग सिस्टम अब बहुत मजबूत है। लेकिन यह भी सच है कि सरकारें तब तक अपनी कमजोरियां छिपाती रहती हैं जब तक स्थिति पूरी तरह न बिगड़ जाए।

भारतीय स्टार्टअप्स के लिए सुझाव

क्रिप्टो प्लेटफॉर्म कॉइनडीसीएक्स (CoinDCX) के सीईओ सुमित गुप्ता कहते हैं, “स्टार्टअप्स को अपने बैंकिंग पार्टनर के साथ लगातार संपर्क में रहना चाहिए। उन्हें इस संक्रमण के और फैलने को लेकर भी सचेत रहना चाहिए। मैं उन्हें प्रोएक्टिव और सावधानीपूर्वक तरीके से कदम उठाते हुए अपने रिजर्व को डायवर्सिफाई करने का भी सुझाव दूंगा।”

कई राउंड की फंडिंग जुटा चुके भारतीय स्टार्टअप आर्य.एजी के संस्थापक और सीईओ प्रसन्ना राव कहते हैं, “मौजूदा परिस्थिति में पहली प्राथमिकता स्टार्टअप की जमा पूंजी को सुरक्षित करना होनी चाहिए। साथ ही उन्हें अथॉरिटी के साथ संपर्क करना चाहिए ताकि उनका जो भी इंश्योर्ड डिपॉजिट है, वह जल्दी मिल सके।”

गायतोंडे कहते हैं, “फिलहाल उन्हें अपने निवेशकों के साथ ब्रिज लोन या ब्रिज इक्विटी राउंड के लिए बात करनी चाहिए ताकि उनका कामकाज जारी रहे। अनेक वेंचर कैपिटल फंड ने आगे बढ़कर अपने पोर्टफोलियो की कंपनियों के लिए ऐसा किया भी है।” समस्या संकटग्रस्त टेक्नोलॉजी कंपनियों की पहचान की भी है। सेठ के अनुसार, “जाहिर है कि ऐसे माहौल में प्रभावित स्टार्टअप अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि इससे उनका बिजनेस प्रभावित हो सकता है।”

अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे टेक्नोलॉजी स्टार्टअप जो अभी तक घाटा सहकर अपना मार्केट शेयर बढ़ाने की नीति पर चल रहे थे, उन पर जल्दी से जल्दी मुनाफे में आने का दबाव बनेगा। उन्हें तत्काल इक्विटी बेचकर अथवा कर्ज के जरिए फंड भी जुटाना पड़ सकता है।

स्टार्टअप्स को भी सावधानी बरतने की सलाह देते हुए प्रसन्ना राव कहते हैं, “एक उद्यमी होने के नाते हमारे ऊपर अपने निवेशक के फंड के कस्टोडियन के तौर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। हमें अपने फंड का इस्तेमाल करने और डिपॉजिट इंश्योरेंस नियमों का आकलन करते वक्त बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है।”

मौजूदा माहौल में भारत को बेहतर विकल्प बताते हुए गायतोंडे कहते हैं, “इस संकट से इतर स्टार्टअप्स को यह भी समझना होगा कि दुनिया भर में केंद्रीय बैंक महंगाई कम करने और ग्रोथ रेट बढ़ाने के लिए हस्तक्षेप कर रहे हैं। इससे बैंकों के सामने कुछ चुनौतियां आ सकती हैं, जैसा सिलिकॉन वैली बैंक के मामले में हुआ। इसलिए भारतीय स्टार्टअप्स को अपनी बैंकिंग को अमेरिका के साथ-साथ भारत में भी डायवर्सिफाई करना चाहिए।” वे कहते हैं, “ऐसे भारतीय संस्थापक जिनकी कंपनियां अमेरिका में रजिस्टर्ड हैं, उन्हें लॉन्ग टर्म में भारत में कंपनी खोलने के फायदों पर विचार करना चाहिए। यहां ग्रोथ और महंगाई का दबाव दूसरे देशों से कम है।”