जी-राम जी से राज्यों की वित्तीय स्थिति पर नहीं पड़ेगा असर, SBI की रिपोर्ट में किया गया दावा
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, मनरेगा को 'वीबी-जी राम जी' में बदलने से राज्यों की वित्तीय स्थिति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया ...और पढ़ें

नये बदलाव के आधार पर एक आकलन किया गया है
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जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को 'विकसित भारत - ग्रामीण रोजगार एवं आजीविका मिशन गारंटी' (वीबी-जी राम जी) में बदलने से राज्यों की वित्तीय स्थिति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की तरफ से सोमवार को जारी रिपोर्ट में इस बदलाव की आलोचना को निराधार बताया गया है और साफ तौर पर कहा है कि इससे राज्य कुल मिलाकर 'नेट गेनर' यानी फायदे में रहेंगे।
यह आकलन भी इसमें किया गया है कि केंद्र सरकार जिस तरह से राज्यों से अपने राजस्व को शेयर कर रही है उसे देखते हुए राज्यों को 17 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन प्राप्त होगा। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि नई व्यवस्था में फंडिंग पैटर्न को 60:40 यानी केंद्र का हिस्सा 60 व राज्य का 40 फीसद करने से राज्यों के उधार या वित्तीय बोझ को नहीं बढ़ने जा रहा बल्कि इससे राज्यों को वित्त व्यवस्था को बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करेगा और उन्हें बराबरी करने का मौका देगा।
राज्यों पर नहीं पडे़गा बोझ
मनरेगा में यह अनुपात 90:10 का था। रिपोर्ट ने पिछले सात वर्षों के आवंटन और अब नये बदलाव के आधार पर एक आकलन किया है और इसके आधार पर इस चर्चा को भी भ्रामक बताता है कि खराब वित्तीय स्थिति वाले राज्यों पर ज्यादा बोझ बढ़ेगा। असलियत में सिर्फ दो राज्यों (आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु) को नुकसान होता दिख रहा है जबकि शेष अन्य राज्यों के आवंटन में कोई बदलाव नहीं होगा बल्कि उन्हें ज्यादा आवंटन की तस्वीर बनती है।
सबसे ज्यादा फायदा होने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश (5,568 करोड़ रुपये), महाराष्ट्र (4,284 करोड़ रुपये), बिहार (1,152 करोड़ रुपये), छत्तीसगढ़ (1,609 करोड़ रुपये) और गुजरात (1,336 करोड़ रुपये) हैं। यह भी कहा है कि राज्य अपनी सकल घरेलू उत्पाद की तीन फीसद की उधार सीमा से बंधे है। जबकि 28 में 20 राज्यों पर अभी उनकी अधिकतम सीमा से कम उधारी है। यानी ये राज्य जरूरत पड़ने पर और उधारी ले सकते हैं।
औसत रोजगार दिनों में वृद्धि की व्यवस्था
रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि राज्यों को अपनी व्यय को उत्पादक जरूरतों पर ही खर्च करना चाहिए। रिपोर्ट यह भी कहती है कि योजना से काम करने वाले परिवारों की संख्या मौजूदा 5.78 करोड़ से ज्यादा होगी। अभी ऐसे परिवार वालों की संख्या प्री-कोविड स्तर (औसत 5 करोड़) की ओर लौट रही है। जी-राम जी के तहत औसत रोजगार दिनों में वृद्धि की व्यवस्था है। योजना की चार प्रमुख क्षेत्रों (जल सुरक्षा, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर, आजीविका इंफ्रास्ट्रक्चर, जलवायु परिवर्तन) पर फोकस किया जाएगा।
नई योजना में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन, स्पेशल टेक्नोलॉजी-बेस्ड प्लानिंग, डिजिटल मॉनिटरिंग, साप्ताहिक पब्लिक डिस्क्लोजर और मजबूत सोशल ऑडिट की व्यवस्था की प्रशंसा की गई है। गवर्नेंस के लिए केंद्रीय और राज्य स्तर पर ग्रामीण रोजगार गारंटी काउंसिल बनाए जाने और योजना को पीएम गति-शक्ति से जोड़ने को काफी आधुनिक बताया गया है। मजदूरी संबंधी चिंताओं के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्षों से मजदूरी वृद्धि असमान रही है, जिसके कारण मांग-आपूर्ति का संतुलन खराब हुआ है। नई योजना का डिजाइन इस असंतुलन को दूर करने की क्षमता रखता है।

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