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सर्दियों के इस बदलते मौसम में सांस के रोगी अपनी सेहत का ऐसे रखें ख्‍याल, पढ़े एक्सपर्ट की राय

डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी ने बताया कि इस बदलते मौसम में सुबह-शाम पानी उबालकर भाप लें। इससे सांस की नलियों की सूजन कम हो जाती है तथा गाढ़ा बलगम पतला हो जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 05 Feb 2020 03:06 PM (IST)Updated: Thu, 06 Feb 2020 09:49 AM (IST)
सर्दियों के इस बदलते मौसम में सांस के रोगी अपनी सेहत का ऐसे रखें ख्‍याल, पढ़े एक्सपर्ट की राय
सर्दियों के इस बदलते मौसम में सांस के रोगी अपनी सेहत का ऐसे रखें ख्‍याल, पढ़े एक्सपर्ट की राय

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। Respiratory Disease सर्दियों के इस बदलते मौसम में बढे़ हुए वायु प्रदूषण के अतिरिक्त इस ऋतु में जीवाणु एवं वायरस भी अधिक मात्रा में सक्रिय हो जाते हैं। इसलिए मौजूदा मौसम में दमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), टीओपीडी यानी टीबी एसोसिएटेड पल्मोनरी डिजीज) और आईएलडी (इंटरस्टीसियल लंग डिजीजेज) जैसे रोगों की समस्या बढ़ जाती है। यही नहीं इस दौरान दमा और निमोनिया का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसे लोगों को सांस फूलने, बलगम बढ़ने या बुखार आने पर डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। जानें क्‍या कहते है लखनऊ के प्रमुख रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग, किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी। 

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बसंत पंचमी के बाद बदलते मौसम में तापमान में परिवर्तन तेजी से होता है। नए-नए फूल खिलते हैं। इस कारण कई तरह के परागकण वातावरण में आने लगते हैं। ऐसे में फेफडे़ का कार्य बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। इस दौरान सांस के रोगी खासकर दमा के रोगी तो प्रभावित होते ही हैं स्वस्थ व्यक्तियों के लिए भी चुनौतियां बढ़ जाती हैं। अब मौसम भी अंगड़ाई लेने लगा है। धीरे-धीरे तापमान बढ़ रहा है। इस कारण इस बदलते मौसम में सांस रोगियों को सजगता बरतने की जरूरत है। बदलते मौसम में कुछ बातों का ध्यान रखकर सांस रोगी स्वस्थ रह सकते हैं।

इन बातों पर दें ध्यान

  • गर्भवती महिलाओं में भी फेफड़े की कार्यक्षमता कम हो जाती है। इसलिए उन्हें भी इस मौसम में विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • सांस के रोगी डॉक्टर से मिलकर अपने इनहेलर की डोज सुनिश्चित करवा लें। डॉक्टर के परामर्श के अनुसार नियमित रूप से इनहेलर का प्रयोग करें।
  • 30 वर्ष की उम्र के बाद फेफड़ों के कार्य करने की क्षमता धीरे-धीरे घटने लगती है। इसलिए उम्रदराज एवं बुजुर्ग व्यक्तियों को भी विशेष बचाव करना चाहिए।
  • फेफड़े का संपूर्ण विकास एवं परिपक्वता बारह वर्ष की उम्र में आती है। इसलिए बारह वर्ष के कम उम्र के बच्चों में फेफड़ों के कमजोर होने के कारण इस मौसम में सर्दी से विशेष बचाव करना चाहिए।
  • इस मौसम में ऐसे रोगी जो डायबिटीज, हृदय रोग, किडनी संबंधी समस्या, लिवर संबंधी समस्या, कैंसर और अन्य पुराने रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें भी निमोनिया तथा फेफड़ों के अन्य संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए ऐसे लोगों को भी इस बदलते मौसम में ध्यान रखना चाहिए।

बचाव

इस मौसम में बचाव के लिए तथा फेफड़ों को मजबूत करने के लिए इन उपायों पर अमल करें...

  • धूमपान से बचें।
  • सुबह की सैर धूप निकलने पर ही करें।
  • सांस रोगी इंफ्लूएंजा की वैक्सीन लगवाएं।
  • योग, प्राणायाम और अन्य व्यायाम करें। इससे फेफड़े मजबूत होते हैं।
  • बच्चों को फर वाले खिलौनों जैसे टेडी बियर आदि से दूर रखना चाहिए। बदलते मौसम में भी समुचित गर्म कपड़े पहनें व सिर, कान व गला विशेष रूप से ढककर रखें।
  • सुबह-शाम पानी उबालकर भाप लें। इससे सांस की नलियों की सूजन कम हो जाती है तथा गाढ़ा बलगम पतला हो जाता है।
  • दोपहर के समय घर के दरवाजे व खिड़कियां बंद रखें, क्योंकि इस समय वातावरण में परागकणों की संख्या बहुत अधिक होती है।
  • बच्चे, गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग, सांस, दिल, किडनी, लिवर व अन्य पुराने रोगों से पीड़ित रोगी समय-समय पर अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
  • सोते समय कमरे के अंदर हीटर व वार्मर का प्रयोग न करें। इससे कमरे के अंदर ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है तथा विषाक्त गैसों की मात्रा बढ़ जाती है।
  • इस मौसम में खाने में हरी सब्जियां, फल, सूप तथा तिल से बनी हुई चीजें, खिचड़ी व गुड़ का सेवन करना चाहिए। तुलसी, सोंठ तथा अदरक का इस्तेमाल जरूर करें। फास्ट फूड, कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम तथा तली हुई चीजों का प्रयोग न करें।

पिछले दो दशकों से वायरसजनित रोगों जैसे स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, ईबोला तथा कोरोना वायरस संक्रमण का काफी प्रभाव देखा गया है। इन सभी विषाणुओं के संक्रमण की शुरुआत अनेक प्रकार के पक्षी या पशुओं से होती है। इसलिए कोशिश करें कि शाकाहारी भोजन ही लें।

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