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कंप्यूटर के सामने ज्यादा देर बैठकर काम करना हो सकता है घातक, ये होते हैं लक्षण

आर्टीफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट की प्रक्रिया के अंतर्गत क्षतिग्रस्त इंटर वर्टिब्रल डिस्क को आर्टीफिशियल डिस्क के जरिए बदल दिया जाता है- दिल्ली के स्पाइन सर्जन डॉ.सुदीप जैन।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 10 Jan 2020 01:34 PM (IST)Updated: Sat, 11 Jan 2020 07:42 AM (IST)
कंप्यूटर के सामने ज्यादा देर बैठकर काम करना हो सकता है घातक, ये होते हैं लक्षण
कंप्यूटर के सामने ज्यादा देर बैठकर काम करना हो सकता है घातक, ये होते हैं लक्षण

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) में स्थित इंटर वर्टिब्रल डिस्क (आईवीडी) पर ज्यादा दबाव पड़ने से कालांतर में डीजनरेटिव डिस्क डिजीज (डीडीडी) की समस्या उत्पन्न हो जाती है, लेकिन आर्टीफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट तकनीक के प्रचलन में आने से इस समस्या का इलाज संभव है। क्या आपको मालूम है कि सीधे खड़े होने या झुकने की सभी स्थितियों को सुचारुरूप से संचालित करने में डिस्क का महत्वपूर्ण योगदान है। ऐसी डिस्क को इंटर वर्टिब्रल डिस्क कहते हैं। रीढ़ की हड्डी में स्थित होने वाली ये इंटर वर्टिब्रल डिस्क हमारी गर्दन से लेकर कमर के निचले हिस्से के दाहिनी ओर तक जाती है। जानें क्‍या कहते है दिल्ली के मशहूर स्पाइन सर्जन डॉ. सुदीप जैन

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आईवीडी के प्रमुख कार्य

इंटर वर्टिब्रल डिस्क का प्रमुख कार्य कमर या रीढ़ पर पड़ने वाले भार को बर्दाश्त करना है साथ ही चलने-फिरने पर विभिन्न झटकों को बर्दाश्त करना है। रीढ़ में लचीलेपन और गतिशीलता की स्थितियां आईवीडी पर निर्भर है। आईवीडी पर पड़ने वाले लगातार दबाव के कारण इसकी क्षीण व कमजोर होने की प्रक्रिया कहींज्यादा तेजी से होती है। शरीर के अन्य जोड़ों की तुलना में आईवीडी 15 से 20 साल पहले ही क्षतिग्रस्त हो सकती है।

रोग के कारण

ऑफिस में डेस्क वर्क या कंप्यूटर के सामने बैठकर देर तक काम करना और भारी वजन उठाना आईवीडी में आए विकारों (डिफेक्ट्स) का एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा शारीरिक व्यायाम का अभाव और मादक पदार्थों का अधिक सेवन युवा वर्ग में भी डिस्क की समस्या बढ़ने का एक प्रमुख कारण है।

खूबियां कृत्रिम डिस्क की

  • मरीज को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है।
  • डिस्क रिप्लेसमेंट सर्जरी में संक्रमण का खतरा भी कम होता है।
  • इस डिस्क के प्रत्यारोपण के बाद मरीज 40 साल बाद भी सुचारु रूप से कार्य कर सकता है।
  • डिस्क रिप्लेसमेंट में एंडोस्कोपी की मदद से एक छोटा चीरा लगाकर आर्टीफिशियल डिस्क प्रत्यारोपित की जाती है।
  • कृत्रिम या आर्टीफिशियल डिस्क के लग जाने के बाद डीजनरेटिव डिस्क डिजीज से पीड़ित व्यक्ति आगे-पीछे झुक सकता है।
  • रीढ़ की हड्डी पर पड़ने वाले झटकों को बर्दाश्त करने की क्षमता बढ़ जाती है। सच तो यह है कि क्षतिग्रस्त आईवीडी का यह एक कारगर समाधान है।

इसके लक्षण

  • रोग की गंभीर स्थिति में बांहों और पैरों में लकवा लग सकता है।
  • हाथों और पैरों में सुन्नपन और भारीपन महसूस होना। इसके साथ ही जलन और फटन महसूस होना।
  • कुछ लोगों में यह दर्द बांहों के निचले भाग से पैरों के निचले भाग तक होता है, जिसे सियाटिका के दर्द का एक प्रकार कह सकते हैं।

जानें आधुनिक इलाज के बारे में

डॉ.सुदीप जैन ने बताया कि अभी तक डीजनरेटिव डिस्क डिजीज (डीडीडी) की समस्या से छुटकारा पाने के लिए फ्यूजन सर्जरी का सहारा लिया जाता है। इस सर्जरी से मरीज को आराम तो मिलता है, लेकिन यह इस समस्या का स्थाई और कारगर समाधान नहीं है। इसकी समस्या का आधुनिक इलाज आर्टीफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट या डिस्क रिप्लेसमेंट आर्थोप्लास्टी है। इस सर्जिकल प्रक्रिया के अंतर्गत क्षतिग्रस्त इंटर वर्टिब्रल डिस्क को आर्टीफिशियल डिस्क के जरिए बदल दिया जाता है।

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