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    Supreme Court: 'शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में नहीं आ सकता है। कोर्ट ने एक महिला के खिलाफ आरोपपत्र खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। इस महिला पर एक युवती को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा है। बताया जाता है कि मृत युवती इस महिला के बेटे बाबू दास से प्यार करती थी।

    By Jagran News Edited By: Abhinav Tripathi Updated: Sun, 26 Jan 2025 11:30 PM (IST)
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    शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: SC

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि विवाह से इनकार करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं है।

    जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एक महिला के खिलाफ आरोपपत्र खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। इस महिला पर एक युवती को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है, जो कथित तौर पर उसके बेटे बाबू दास से प्यार करती थी।

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    समझिए क्या था विवाद

    इस मामले में आरोप मृत युवती और याचिकाकर्ता महिला के बेटे के बीच विवाद पर आधारित था। महिला के बेटे ने युवती से शादी करने से इनकार कर दिया था। महिला पर शादी का विरोध करने और युवती के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था।

    कोर्ट ने क्या कहा?

    अदालत ने कहा कि यदि आरोपपत्र और गवाहों के बयान सहित रिकार्ड पर मौजूद सभी साक्ष्यों को सही मान लिया जाए, तब भी महिला के खिलाफ एक भी सुबूत नहीं है। हमें लगता है कि महिला के कृत्य इतने दूरगामी और अप्रत्यक्ष हैं कि वे आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध नहीं बनते। महिला के खिलाफ इस तरह का कोई आरोप नहीं है कि युवती के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

    सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी

    पीठ ने कहा कि रिकार्ड से यह पता चलता है कि याचिकाकर्ता महिला और उसके परिवार ने युवती पर संबंध खत्म करने के लिए कोई दबाव डालने की कोशिश नहीं की। वास्तव में युवती का परिवार ही इस रिश्ते से नाखुश था।

    भले ही महिला ने अपने बेटे और युवती की शादी से असहमति व्यक्त की हो, लेकिन यह आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आरोप के स्तर तक नहीं पहुंचता है। इसके अलावा युवती से यह कहना कि यदि वह अपने प्रेमी से विवाह किए बिना जीवित नहीं रह सकती तो न रहे, जैसी टिप्पणी भी उकसावे की श्रेणी में नहीं आएगी।

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