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    रालेगण में अन्ना का विरोध, सूखे का सामना करने वाले मॉडल को बताया नाकाम

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Sun, 08 May 2016 11:48 AM (IST)

    अन्ना हजारे की मुहिम को उनके गांव के लोगों ने भरपूर समर्थन दिया। लेकिन सूखे से निपटने के लिए उनके मॉडल का रालेगण के लोग विरोध कर रहे हैं।

    रालेगण सिद्धि(अहमद नगर)। भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाने वाले मशहूर सामाजिक नेता अन्ना हजारे का उनके गांव के लोग विरोध कर रहे हैं। दरअसल भ्रष्टाचार से जुड़े किसी मामले पर उनका विरोध नहीं हो रहा है। बल्कि सूखे का सामना कर रहे गांव वालों का मानना है कि अन्ना का पानी संरक्षण का मॉडल फेल हो चुका है। और वो लोगों से जबरन उस मॉडल को अपनाने का दबाव बना रहे हैं।

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    नदी की गोद में सूखा

    रालेगण के एक किसान का कहना है कि हमेशा लोग उनकी बात क्यों सुनें। हम लोगों ने बोरवेल के लिए 50 हजार रुपए खर्च किए हैं। ये बात सही है कि अभी पानी की किल्लत है लेकिन मॉनसून के दस्तक के बाद हालात बदल जाएंगे। किसानों ने कहा कि अन्ना के वॉटरशेड मैनेजमेंट का क्या फायदा है जब हम लोगों की फसलें सूख चुकी हैं। रालेगण सिद्धि भी भयंकर सूखे का सामना कर रहा है। और लोगों को दिनचर्या जारी रखने के लिए टैंकरों की मदद लेनी पड़ रही है। ऐसे में अन्ना की मुहिम की विरोध की वजह से उन लोगों को हैरानी हो रही है जो उनके मॉडल को देखने के लिए लोग रालेगण सिद्धि आया करते हैं।

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    जलसंकट से फैक्ट्रियों पर ताले

    महाराष्ट्र में जलसंकट की वजह से राज्य को कितने बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ रहा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समय तक कई कारखानों और फैक्ट्रियों में काम करके विभिन्न उत्पादनों का निर्माण करने वाले मजदूर आज सबकुछ छोड़कर अपने घर वापस लौटने पर मजबूर हो गए हैं। जो फैक्ट्रियां कभी हजारों लोगों की भीड़ देखा करती थी आज वहां एक आदमी भी नजर नहीं आता। आइए, आपको महाराष्ट्र के ही एक इलाके लातूर के बारे में बताते हैं कि कैसे ये इलाका देखते ही देखते खंडर हो गया।

    1700 लोगों को रोजगार देने वाला स्टील प्लांट बंद

    साल 20111 तक स्टील कारोबारी महेश मलंग का महाराष्ट्र के लातूर में बड़ा और संमृद्ध व्यापार हुआ करता था। मलंग ने लातूर में 100 करोड़ रूपये की लागत से तीन स्टील प्रोजेक्ट लगाए थे जोकि हर रोज 300 टन स्टील का उत्पादन करते थे। इस प्लांट में 1700 लोगों को रोजगार भी मिलता था। लेकिन आज प्लांट बंद हो चुका है, प्लांट के कर्मचारी नौकरी छोड़कर जा चुके हैं क्योंकि वहां पानी ही नहीं है।

    मलंग पिछले आठ महीनों से बाजार में आ रही चीन के स्टील उत्पादों से पहले ही परेशान थे और अब उन्होंने अपना प्लांट ही बंद कर दिया है क्योंकि हर रोज 3 लाख लीटर पानी के खर्च को वहन करना उनके लिए बहुत मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि 5000 से 6000 लीटर पानी के टैंकर के लिए उन्हें 1000 रूपये चुकाने पड़ते हैं।

    प्लांट में बचे हैं सिर्फ दो ही कर्मचारी

    अब इस फैक्ट्री में मलंग के अलावा सिर्फ दो ही लोग बचे हैं। एक हैं लातूर के ही रहने वाले प्लांट के मैनेजर सुधीर वाड़गांवकर और दूसरे हैं प्लांट के चौकीदार दिगंबर दयाना जोकि सोलापुर के रहने वाले हैं। इनके अलावा प्लांट में काम करने वाले ज्यातर लोग जोकि बिहार या उत्तर प्रदेश के थे वो पानी की समस्या की वजह से प्लांट को छोड़कर जा चुके हैं।

    लक्ष्मण जाधव प्लांट के पास ही कैंटीन चलाता था जहां हर रोज प्लांट के कर्मचारी और बाहर से आने वाले ट्रकों के ड्राइवर और उसके साथ चलने वाले हैल्पर खाना खाने या चाय-नाश्ता करने उसकी कैंटीन में आते थे। लक्ष्मण जाधव के मुताबिक उस दौर में वो हर रोज 10 से 15 हजार रूपये प्रतिदिन की बिक्री कर लिया करता था लेकिन आज वो दिन भर में 200 से 300 रूपये तक का ही सामान बेच पाता है।


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