प्रीडायबिटीज को नियंत्रित करने से कम हो सकता है दिल की बीमारियों का खतरा

दुनियाभर में डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है, जिससे करोड़ों लोग पीड़ित हैं। एक नए अध्ययन के अनुसार, प्रीडायबिटीज वाले व्यक्ति अपने ब्लड शुगर को नियंत्रित ...और पढ़ें
विवेक तिवारी जागरण न्यू मीडिया में एसोसिएट एडिटर हैं। लगभग दो दशक के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार् ...और जानिए
प्रीडायबिटीज नियंत्रण से दिल की बीमारी का खतरा आधा।
ब्लड शुगर सामान्य करने पर हार्ट अटैक का जोखिम कम।
जलवायु परिवर्तन भी मधुमेह रोगियों की मुश्किलें बढ़ाता है।
नई दिल्ली, जागरण प्राइम । दुनियाभर में डायबिटीज एक गंभीर बीमारी बन चुकी है। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के डायबिटीज एटलस (2025) की रिपोर्ट के मुताबिक हर 9 में से 1 वयस्क व्यक्ति को डायबिटीज की बीमारी है। खास बात ये है कि 10 में से लगभग 4 मरीजों को ये पता ही नहीं कि उन्हें डायबिटीज है। गौरतलब है कि डायबिटीज कई अन्य बीमारियों को भी जन्म देती है। लैंसेट के एक ताजा अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में दावा किया गया है कि प्रीडायबिटीज वाले व्यक्ति अपने ब्लड शुगर को नियंत्रित कर दिल की बीमारियों से काफी हद तक बच सकते हैं। ब्लड शुगर को नियंत्रित कर दिल की बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती होने के खतरे को 50 फीसदी या उससे ज्यादा कम किया जा सकता है।
दुनिया भर में 2024 में मधुमेह से पीड़ित वयस्कों की संख्या 50 करोड़ से अधिक हो गई। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के मुताबिक 2050 तक प्रत्येक 8 वयस्कों में से 1, यानी लगभग 853 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित होंगे, जो कि 46 फीसदी की वृद्धि है।
किंग्स कॉलेज लंदन और यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ट्यूबिंजन के डॉक्टर एंड्रियास बिर्केनफेल्ड के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रीडायबिटीज के रूप में चिन्हित लोगों में ब्लड ग्लूकोज को सामान्य सीमा (लगभग 97 mg/dL से कम) तक लाने पर दिल के रोगों या हार्ट अटैक के चलते अस्पताल में भर्ती होने का खतरा लगभग आधा हो जाता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि शोध में आए ये परिणाम पूरी दुनिया के लोगों पर लागू होते हैं। अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों का प्रीडायबिटीज पूरी तरह से ठीक हो गया उनमें दिल की बीमारी से होने वाली मौत या हार्ट अटैक के कारण अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम 58% कम था। खून में ग्लूकोज का स्तर सामान्य होने के दशकों बाद भी दिल की बीमारी का खतरा कम रहा। अध्ययन में पाया गया कि प्रीडायबिटीज से मुक्ति पाने वालों में दिल का दौरा, स्ट्रोक और अन्य दिल की बीमारियों का जोखिम 42% तक कम हो गया था।

वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि वजन कम करना, नियमित व्यायाम और बेहतर आहार स्वस्थ जीवनशैली के लिए जरूरी हैं, लेकिन अकेले इनसे दिल की बीमारी के खतरे को कम करने के सबूत नहीं मिलते। ऐसे में प्रीडायबिटीज लोगों में ब्लड शुगर को नियंत्रित करने को दिल की बीमारियों की रोकथाम के तरीके के तौर पर अपनाया जाना चाहिए। इस तरीके से पूरी दुनिया में दिल की बीमारियों के मामलों में कमी आएगी।
डायबिटीज कई सारी बीमारियों की जड़ है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की एएमआर कमेटी के अध्यक्ष डॉक्टर नरेंद्र सैनी कहते हैं कि डायबिटीज का सबसे ज्यादा असर किडनी और दिल पर पड़ता है। मधुमेह के मरीजों में देखा गया है कि उनकी धमनियां संकरी होती जाती हैं। उनमें फैट जमा होने लगता है कई बार क्लॉट बनने लगते हैं। कई मामलों में मरीज में लिपिड प्रोफाइल गड़बड़ होने लगता है। इसे डिसलिपिडेमिया कहते हैं। इससे भी दिल पर दबाव बढ़ता है। मधुमेह के मरीजों में खून का सर्कुलेशन प्रभावित होता है। इससे दिल को ब्लड की सप्लाई प्रभावित होती है। ऐसे में दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यदि कोई व्यक्ति प्रीडायबिटीक है तो उसे सावधान हो जाने की जरूरत है। प्रीडायबिटीक व्यक्ति अपने खानपान और दिनचर्या को बेहतर बना कर डायबिटीज को जड़ से खत्म कर सकता है।

ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन अकेडेमिक गिल्ड के सेक्रेटरी जनरल डॉ ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि डायबिटीज के मरीजों में मोटापे और खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है। इससे धमनियों में वसा जमा होने लगता है जो खून के प्रवाह को प्रभावित करता है और हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक के खतरे को बढ़ाता है। ऐसे में अगर प्रीडायबिटीज को समय रहते नियंत्रित कर लिया जाए तो कई बीमारियों के खतरे से बचा जा सकता है। लेकिन किसी व्यक्ति को डायबिटीज हो चुकी है तो उसे बेहद सावधान रहने की जरूरत होती है। उसे नियमित तौर पर ब्लड शुगर की निगरानी करनी चाहिए।
जलवायु परिवर्तन भी मधुमेह के खतरे को बढ़ा रहा है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया में जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ती गर्मी से डायबिटीज (टाइप 2) के मरीजों पर किए जा रहे अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक चार्ल्स लियोनार्ड, सीन हेनेसी और पेन के पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिक केसी बोगर ने अपने अध्ययन में पाया कि क्लाइमेट चेंज के चलते मौसम में बेहद गर्मी या ठंड जैसे बदलावों के चलते डायबिटीज (टाइप 2) मरीजों की मुश्किल काफी बढ़ जाती है। मौसम में बदलाव के साथ ही इन मरीजों में लो ब्लड शुगर,एसिडिटी और अचानक कार्डियक अरेस्ट / वेंट्रिकुलर अतालता (हृदय की कार्यक्षमता में कमी / बहुत तेज़ हृदय गति) जैसी बीमारियां सामने आई हैं। अध्ययन के मुताबिक 38 डिग्री से ज्यादा या 10 डिग्री से कम तापमान होने पर डायबिटीज (टाइप 2) के लिए मुश्किल ज्यादा बढ़ जाती है।
जेएनयू के स्कूल ऑफ बायो टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर डॉक्टर रुपेश चतुर्वेदी कहते हैं कि ज्यादा गर्मी या सर्दी उन सभी मरीजों की मुश्किल बढ़ा देती है जिन्हें कार्डियो वैस्कुलर मेटाबॉलिक डिजीज होती है। ज्यादा गर्म होने पर डायबिटीज के मरीजों की सेहत पर सीधे तौर पर असर पड़ता है। वहीं उनमें इम्यूनिटी कम होने के कारण उनमें संक्रमण का भी खतरा बना रहता है। तापमान में बदलाव के समय हाइपरटेंशन के मरीजों को भी काफी सावधान रहने की जरूरत होती है। ज्यादा गर्मी होने पर रक्त वाहिकाओं और नसों को नुकसान पहुंचता है। वहीं डायबिटीज शरीर से पसीना निकलने को भी प्रभावित करता है। इससे ज्यादा गर्मी महसूस होती है।

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