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    उन्नत तकनीक से कर रहे गाजर की खेती से मालामाल हुए यहां के किसान

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Thu, 04 Jan 2018 12:25 PM (IST)

    गाजर मंडी में तब्दील हुआ अलीगढ़ का जिजाथल गांव कभी दूसरे राज्यों में मजदूरी करने को मजबूर थे, आज दे रहे रोजगार, उन्नत कृषि, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग की बेहतरीन मिसाल

    उन्नत तकनीक से कर रहे गाजर की खेती से मालामाल हुए यहां के किसान

    अलीगढ (प्रवीन तिवारी)। अलीगढ़ का जिजाथल गांव और इसके आस पास का पूरा इलाका गाजर उत्पादन का एक बड़ा केंद्र बन कर उभरा है। गाजर की खेती ने इलाके की सूरत बदल दी है। उन्नत कृषि और प्रोसेसिंग से लेकर मार्केटिंग तक सब कुछ पूरी तरह व्यवस्थित है।

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    गाजर की खेती के कारण अब खुशहाल जिंदगी जी रहे ये किसान कुछ बरस पहले तक रोजी-रोटी के लिए पलायन करने को मजबूर हुआ करते थे। मजदूरी की तलाश में हरियाणा जाते थे। वहां खेतों में काम करते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। इनका यह प्रयास किसानों के लिए एक मिसाल बनकर सामने है। खेती का मतलब केवल गेहूं और धान की खेती नहीं है। खेती तो वही है जो फायदे का सौदा साबित हो। 

     

    हरियाणा से सीखी गाजर की खेती 

    हरियाणा जाकर कृषि मजदूरी करने के दौरान ही इस गांव के लघु किसानों ने गाजर की खेती के तौर-तरीके देखे और सीखे। गांव लौटकर उसे आजमाया। और फिर कभी मजदूरी करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। आज जिजाथल सहित इलाके के आधा दर्जन गांवों इतना गाजर पैदा करने लगे हैं कि छह से अधिक राज्यों को आपूर्ति हो रही है। यह इलाका मानो गाजर मंडी में तब्दील हो गया है।

     

    कुछ साल पहले तक यहां के किसान शकरकंद व गेहूं बोया करते थे। पर धीरे-धीरे लागत बढ़ती गई और उत्पादन गिरता चला गया। हालात यहां तक बदतर हुए कि इन्हें मजदूरी करनी पड़ गई। अब हालात बदल चुके हैं। जिजाथल में आज हर कोई गाजर ही पैदा कर रहा है। पड़ोसी गांव बाईंकलां, बाईं खुर्द, डोरई, लोधई, धनसारी, रुखाला, भगौसा व बहादुरपुर के अधिकांश किसान भी गाजर का उत्पादन करने में जुटे हुए हैं।

     

     

    ऐसे बनी बात 

    गाजर की खेती में लागत प्रति बीघा ढाई से तीन हजार रुपये आती है। औसतन पैदावार 20-25 क्विंटल तक रहती है। थोक में दाम 700-800 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल जाता है। इस तरह प्रति बीघा 12-14 हजार रुपये तक का मुनाफा होता है। शुरुआत में किसानों को दो चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पहली तो यह कि गाजर में चिपकी हुई मिट्टी को कैसे धोया जाए। और दूसरी यह कि इसे बेचा कहां जाए। 

     

     

    पहले तो किसानों ने हाथों से ही धुलाई करना शुरू किया, लेकिन सर्दी में क्विंटलों गाजर की धुलाई करना बेहद कठिन था। इसमें समय और श्रम बहुत लगता था। धुलाई ठीक से न होने पर रेट ठीक नहीं मिलते थे। लोगों ने साझे प्रयास से धुलाई की मशीनें खरीदीं और यह काम चुटकियों का हो गया। इसके बाद उन्होंने बड़े बाजारों में संपर्क शुरू किया। 

     

    धीरे-धीरे थोक व्यापारी यहां से माल उठाने लगे। अब तो हर सीजन यहां 1500 टन से ज्यादा गाजर पैदा होती है। व्यापारी रोजाना 70-80 ट्रक गाजर ले जाते हैं। उप्र, दिल्ली, बिहार, असम, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, और पंजाब को आपूर्ति हो रही है।

     

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