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    जानिए कौन हैं कवि कनियन पुंगुनद्रनार, PM Modi ने UNGA में दोहराई जिनकी पंक्तियां

    By Digpal SinghEdited By:
    Updated: Sat, 28 Sep 2019 06:55 AM (IST)

    PM Narendra Modi Speech in UN पीएम मोदी ने जिन तमिल कवि कनियन पुंगुनद्रनार की पंक्तियां दोहराई जानिए उनके बारे में सबकुछ...

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    जानिए कौन हैं कवि कनियन पुंगुनद्रनार, PM Modi ने UNGA में दोहराई जिनकी पंक्तियां

    यूएन, [जागरण स्पेशल]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने UNGA में अपने संबोधन के दौरान भारत की उदार और शांति के दूत के रूप में छवि को सबके सामने रखा। उन्होंने कहा, भारत ने बुद्ध दिए हैं युद्ध नहीं। अपने इस संबोधन में उन्होंने स्वामी विवेकानंद को याद किया और तमिल दार्शनिक व कवि कनियन पुंगुनद्रनार को याद करते हुए उनके शब्दों को भी दोहराया।

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    PM Modi ने जब वैश्विक समस्याओं का जिक्र करते हुए उनके समाधान के लिए एकजुट होकर काम करने की बात कही तो उन्हें यह तमिल दार्शनिक याद आए। उन्होंने कवि पुंगुनद्रनार की मशहूर कविता 'याधुम उरे यावरम केलिर' का जिक्र किया। तमिल में लिखी इस कविता का हिंदी में अनुवाद करें तो वह होगा - हम सभी जगहों से संबंधित हैं और हर किसी से जुड़े हैं। PM Modi ने कहा, भारत का यह भाव किसी सीमा रेखा को नहीं देखता और यह अद्वितीय भी है। बता दें कि करीब 3000 साल पहले महान कवि कनियन पुंगुनद्रनार ने यह पंक्तियां लिखी थीं।

    पुंगुनद्रनार संगम काल के महान तमिल कवि थे। उनकी इस कविता को शिकागो में आयोजित हुई 10वीं वर्ल्ड तमिल कॉन्फ्रेंस का थीम सॉन्ग चुना गया था। अमेरिकी कंपोजर राजन सोमासुंदरम ने इस कविता के लिए संगीत दिया था। ऑस्कर के लिए नामित गायक बॉम्बे जयश्री और कार्तिक ने अन्य अंतरराष्ट्रीय गायकों के साथ इसे गाया था।

    खगोलशास्त्री भी थे कनियन!

    कनियन पुंगुनद्रनार संभवत: उस काल के खगोलशास्त्री भी थे। तमिल में उनके नाम कनियन का हिंदी में शाब्दिक अर्थ गणित होता है। उनका जन्म महिबालनपट्टी में हुआ था। महिबालनपट्टी तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में तिरुप्पटुर तालुक की एक ग्राम पंचायत है।  

    सब इंसान एक हैं

    कनियन इंसानों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटने के खिलाफ थे। उनका मानना था कि पूरी मानवजाति एक है। पुंगुनद्रनार और उनके कालखंड के तमाम बुद्धिजीवी मानते थे कि सभी लोग, फिर चाहे वे किसी भी श्रेणी के हों, किसी भी समाज के हों वे सब एक हैं। 

    प्राकृतिक नियम

    जिस तरह से पानी में गिरा हुआ लकड़ी का भारी भरकम लठ (Wooden Log) पानी की धारा के साथ ही बहता है, यानि पानी उसे अपनी ही दिशा में बहाकर ले जाते है। उसी तरह जीवन में हर चीज प्राकृतिक नियम से चलती है। पुंगुनद्रनार इसे 'वे ऑफ ऑर्डर' कहते थे।

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