56 घंटे तक चला डिजिटल अरेस्ट, अस्पताल जाने की आ गई थी नौबत; कैसे साइबर अपराधियों ने बनाया शिकार?
नोएडा की 60 वर्षीय सुशीला (बदला हुआ नाम) 56 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट का शिकार हुईं। साइबर अपराधियों ने उन्हें फर्जी पार्सल और पुलिस अधिकारी का डर दिखाकर ...और पढ़ें

56 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट रही थी महिला
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। डिजिटल अरेस्ट के आए दिन मामले सामने आते रहते हैं, लेकिन तमाम खबरें छपने और जागरुकता कैंपेन के बावजूद लोग साइबर अपराधियों के चंगुल में फंस जाते हैं। नोएडा की रहने वाले 60 वर्षीय सुशीला (बदला हुआ नाम) भी एक ऐसे ही मामले की पीड़ित हैं। उन्होंने अनजान नंबर से आए एक फोन को रिसीव किया और फिर 56 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट रहीं।
साइबर अपराधी सुशीला के दिमाग पर इस कदर हावी हो गए थे कि वह समझ ही नहीं पाईं कि उनके साथ क्या हो रहा है। सुशीला ने अपने अकाउंट से 65 लाख रुपये साइबर ठगों को ट्रांसफर कर दिए। गनीमत रही कि अंतिम वक्त में उनकी बेटी ने जोर देकर पूछा और सच सामने आते ही फोन काट दिया।
जुलाई का है मामला
मामला जुलाई का है। एक रोज सुबह करीब 11 बजे सुशीला के नंबर पर फोन आया। कॉल करने वाले ने सुशीला से कहा कि उनके नाम से एक पार्सल मिला है, जिसमें एक पासपोर्ट, क्रेडिट कार्ड, 200 ग्राम MDMA, 4 किलो कपड़े और एक लैपटॉप है। कॉलर ने कहा कि ये पार्सल ताइवान भेजा जाना था, लेकिन पकड़ लिया गया। सुशीला ने जब इसे खारिज किया, तो उसने कहा कि पार्सल पर आपका नाम और कॉन्टैक्ट डिटेल्स हैं।
इसके बाद सुशीला ने पूछा कि अब वह क्या करें, तो कॉलर ने उन्हें झांसे में लिया। उनसे कहा कि वह एक अधिकारी से उनका संपर्क करवाएगा। इसे बाद सुशीला को एक वीडियो कॉल आती है। कॉल करने वाला खुद को मुंबई पुलिस का अधिकारी बताता है। वह कहता है कि कमरे का दरवाजा बंद कर दो, न बाहर जाओ, न किसी को अंदर आने दो।
एफडी तोड़ने का बनाया दबाव
फिर वह डिटेल लेना शुरू करता है, जैसे सुशीला किसके साथ रहती हैं, उनके बार कितने बैंक अकाउंट है, उसमें कितना पैसा है। साइबर अपराधी की मंशा से अनजान सुशीला उसे सारी डिटेल दे देती हैं। वह बताती हैं कि उनके पास एक्सिस और HDFC में दो FD हैं। कॉलर कहता है कि उन्हे अपना पैसा वेरिफिकेशन के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में ट्रांसफर करना होगा। सुशमा ने कहा कि एफडी समय से पहले तोड़ने पर पेनल्टी लगेगी, लेकिन कॉलर ने कहा कि आरबीआई इसका मुआवजा देगा।
इस बीच सुशीला की तबियत खराब होने लगती है, वह अस्पताल जाने को कहती हैं, तो कॉलर उन्हें कॉल डिस्कनेक्ट न करने की चेतावनी देता है। डर के कारण सुशीला कहीं नहीं जाती। कॉलर कहता है कि उन पर नजर रखी जा रही है। सुशीला मान लेती हैं। कॉलर रात में उन्हें फोन चालू रखकर सोने के लिए कहता है। अगले दिन सुशीला अपनी बेटी के साथ बैंक जाती हैं और एफडी तोड़कर पैसे स्कैमर को ट्रांसफर कर देती हैं।
बेटी को हुआ शक
लेकिन इस दौरान वह न तो अपनी बेटी और न ही बैंक कर्मचारी को कुछ बताती हैं। कॉलर फिर से उन पर एक और एफडी तोड़ने का दबाव बनाता है। इस पर सुशीला कहती हैं कि उनकी बेटी को शक हो जाएगा, लेकिन स्कैमर नहीं मानते। हारकर सुशीला अपनी बेटी से फिर बैंक जाने की बात करती हैं। इस बार उनकी बेटी पूछ लेती है कि बात क्या है। पहले सुशीला फुसफुसाकर बताती हैं।
उनकी बेटी एक पेन और कागज देती है और कहती है कि वह अपनी बात लिखकर बता दें। जब सुशीला की बेटी को सारी कहानी पता चलती है तो वह कहती है कि यह स्कैम है। वह फोन काट देती है और इस तरह करीब 56 घंटों का डिजिटल अरेस्ट समाप्त हो जाता है।

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