स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। राजस्थान से शुरू हुआ ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) अपनाने का सिलसिला सालभर के अंदर पांच राज्यों तक पहुंच गया है। कुछ अन्य राज्य भी इसे लेकर विचार-विमर्श कर रहे हैं। लेकिन इसे बैकडेट यानी 2004 से लागू करने पर पेंच फंस गया है। दरअसल, पेंशन नियामक पीएफआरडीए ने साफ कर दिया है कि वह अपने पास जमा कॉर्पस राज्य सरकारों को नहीं लौटा सकता।

नई पेंशन स्कीम (NPS) 2004 में पेश की गई थी। इसमें सरकारी कर्मचारियों को अपने कार्यकाल के दौरान अपनी बेसिक सेलरी का 10 फीसदी योगदान करना होता है, जबकि सरकार बतौर नियोक्ता 14% भुगतान करती है। ओल्ड पेंशन स्कीम में सरकारी कर्मचारियों को कोई योगदान किए बिना पेंशन मिलती थी।

एनपीएस लागू होने के लगभग दो दशक बाद राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश सहित पांच राज्यों ने वापस ओपीएस अपनाने का फैसला किया है। ये पांच राज्य अब 79,684 करोड़ रुपए से अधिक के एनपीएस योगदान को वापस मांग कर रहे हैं। जबकि केंद्र ने पीएफआरडीए अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए उनके अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया है।

पेंशन फंड विनियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के चेयरमैन दीपक मोहंती ने जागरण प्राइम से कहा कि राज्य सरकार भी एक नियोक्ता है। एनपीएस के नियमों में नियोक्ता को पैसा लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है। हम एनपीएस खाताधारकों का पैसा उनके नियोक्ता को नहीं लौटा सकते। उस पैसे पर खाताधारकों का हक है और नियमानुसार उन्हें उनका पैसा लौटाया जाएगा।

कर्मचारी भविष्य निधि (epf) का उदाहरण देते हुए मोहंती ने कहा कि ईपीएफ में भी कर्मचारी और नियोक्ता दोनों योगदान करते हैं। लेकिन वह पैसा कर्मचारी का होता है। ऐसा नहीं हो सकता कि नियोक्ता आकर अपना योगदान वापस मांग ले।

इधर, हिमाचल सरकार ने इस साल अप्रैल में एनपीएस के लिए अपना योगदान देना बंद कर दिया। जबकि 2021-22 के दौरान 1200 करोड़ रुपये और 2022-23 के दौरान 1,700 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। राजस्थान सरकार ने कहा है कि वह जीपीएफ खातों में एनपीएस योगदान को स्थानांतरित करेगी।

पुरानी पेंशन योजना एक तरफ जहां सरकारी कर्मचारियों को बड़ी राहत देती है, वहीं शॉर्ट टर्म में यह राज्य सरकारों के लिए भी फायदेमंद है। दरअसल, बतौर नियोक्ता उन्हें हर महीने बड़ी रकम पीएफआरडीए में जमा करनी होती है। जबकि ओल्ड पेंशन स्कीम में ऐसा नहीं है।

गैर-सरकारी संगठन पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने अपनी 'स्टेट ऑफ स्टेट फाइनेंस : 2022-23' रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र और राज्य सरकारों के वित्त पर बोझ को कम करने के लिए लगभग दो दशक पहले पेंशन सुधार लागू किए गए थे। पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौटने से राज्य छोटी अवधि के लिए अपने पेंशन खर्चे व्यय को कम कर सकते हैं, लेकिन लांग टर्म में उन्हें भारी लागत उठानी होगी।

जानकारों की मानें तो पीएफआरडीए से पैसा वापस लेने के लिए राज्य सरकारों के पास सिर्फ अदालत जाने का रास्ता बचा हुआ है। हालांकि, कोर्ट से भी राहत मिलने की उम्मीद कम है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग गुप्ता कहते हैं, एनपीएस का पैसा एक अलग अथॉरिटी के पास है, जिसके लिए अलग तरीके का अनुबंध हो चुका था। वह वैसा मिले बगैर पुरानी पेंशन स्कीम कैसे लागू होगी, वह पैसा कैसे मिलेगा, क्योंकि वह पैसा कहीं निवेशित है। इस मुद्दे पर अदालतों का सीमित हस्तक्षेप ही हो सकता है, क्योंकि ये प्रॉपर डिजीसन मेकिंग से गया था। पीएफआरडीए चेयरमैन ने कानूनी लड़ाई की तैयारियों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

बहरहाल, ओल्ड पेंशन स्कीम का दबाव बढ़ता देख केंद्र सरकार ने एनपीएस की समीक्षा करने और राजकोषीय विवेक बनाए रखते हुए सरकारी कर्मचारियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वित्त सचिव के नेतृत्व में एक समिति का गठन कर दिया है। अब निगाहें इस समिति की सिफारिशों पर टिकी हैं।