क्वांटम टेक्नोलॉजी से कम समय में नई दवाएं बन सकेंगी, बैंकिंग और रक्षा संबंधी सूचनाओं को भेद पाना असंभव होगा
वैज्ञानिक कंप्यूटर पर ही सिमुलेशन के जरिए देखते हैं कि दवा बनाने में क्या कॉम्बिनेशन संभव हैं। अभी यह क्लासिकल कंप्यूटर पर किया जाता है जिस पर वैज्ञानिकों को विकल्प तलाशने में कई साल लग जाते हैं। क्वांटम कंप्यूटर से यह समय बहुत कम हो जाएगा।
एस.के. सिंह, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों 6003 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय क्वांटम मिशन को मंजूरी दी। इसका उद्देश्य देश में क्वांटम टेक्नोलॉजी का ईकोसिस्टम तैयार करना है, ताकि विभिन्न क्षेत्रों में विकास तथा अनुसंधान कार्यों में तेजी लाई जा सके। क्वांटम टेक्नोलॉजी अभी किस अवस्था में है, इसकी जरूरत क्यों है और इसके प्रयोग से किस तरह के नए काम किए जा सकते हैं, इन सब सवालों के साथ जागरण प्राइम ने क्वांटम मैकेनिक्स के क्षेत्र में देश के जाने-माने संस्थानों के विशेषज्ञों से बात की। इस बातचीत के निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि इस टेक्नोलॉजी की मदद से दवा बनाने से लेकर कम्युनिकेशन और नेविगेशन तक, अनेक क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव संभव हैं।
क्वांटम टेक्नोलॉजी की जरूरत क्यों?
बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (IISc) में सेंटर फॉर हाइ एनर्जी फिजिक्स के प्रो. अपूर्व पटेल कहते हैं, वैज्ञानिकों को पदार्थ में कुछ ऐसे गुण मिले जिनकी क्लासिकल सिद्धांत के आधार पर पूरी तरह व्याख्या नहीं की जा सकती थी। उन गुणों की व्याख्या के लिए नए सिद्धांत की जरूरत महसूस की गई। इस तरह क्वांटम मैकेनिक्स का आविष्कार हुआ। ऐसा नहीं कि हमने अब तक जो कुछ हासिल किया है वह पूरी तरह अतीत बन जाएगा और उसकी जगह नई चीजें आ जाएंगी, बल्कि नई टेक्नोलॉजी की मदद से उनमें नए फीचर्स जुड़ जाएंगे। क्वांटम पूरी तरह समस्या के समाधान पर आधारित टेक्नोलॉजी है- आप इसका इस्तेमाल कहां और कैसे करते हैं।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के प्रो. आर. विजयराघवन के अनुसार, दुनिया में चार क्वांटम क्षेत्रों में काम हो रहा है- क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम कम्युनिकेशन, क्वांटम सेंसिंग तथा मेट्रोलॉजी और क्वांटम मैटेरियल्स। भारत ने भी इनमें आगे बढ़ने का फैसला किया है। इनमें से क्वांटम मैटेरियल्स को थोड़ा अलग रख सकते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में काम करने वाले जो मैटेरियल तैयार करेंगे उनका बाकी तीनों क्षेत्रों में इस्तेमाल होगा।
क्वांटम मिशन से कैसे फायदा मिलेगा?
प्रो. विजयराघवन बताते हैं, क्लासिकल कंप्यूटर में कोई भी सूचना 0 और 1 के रूप में स्टोर होती है, लेकिन क्वांटम कंप्यूटर में 0 और 1 के अलावा और विकल्प भी हो सकते हैं। लेकिन 50 या 60 क्यूबिट (क्वांटम बिट) तक जाते-जाते इतनी अधिक संभावनाएं स्टोर करने की जरूरत पड़ जाती है कि वह सामान्य कंप्यूटर में संभव ही नहीं है। क्वांटम कंप्यूटर संभी संभावनाओं की एक साथ प्रोसेसिंग करता है, जबकि क्लासिकल कंप्यूटर एक-एक कर सभी संभावनाओं की प्रोसेसिंग करता है। इसके अलावा, अभी जो क्वांटम कंप्यूटर बन रहे हैं उनकी सुपरपोजिशन स्टेट (अवस्था) बहुत जल्दी खराब हो जाती है और वे क्लासिकल कंप्यूटर की तरह काम करने लगते हैं। इसलिए वे कई बार गलत जवाब भी देते हैं। अभी वैज्ञानिक इस समस्या पर काम कर रहे हैं। जैसे-जैसे हम इसमें बेहतर होंगे, क्वांटम कंप्यूटर भी उतने बेहतर होते जाएंगे।
कोलकाता स्थित एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज के फिजिक्स ऑफ कॉम्प्लेक्स सिस्टम्स विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मानिक बनिक के अनुसार, सबसे पहले कुछ बुनियादी बातों को समझना जरूरी है। आज हम जो कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं, वे क्लासिकल मैकेनिक्स के नियमों से संचालित होते हैं। क्लासिकल तरीके में कहा जाता है कि कोई भी ‘सूचना’ हां या ना हो सकती है। इसे ‘0’ अथवा ‘1’ से डिनोट किया जाता है। लेकिन क्वांटम सिद्धांत के अनुसार इसकी अनेक अवस्थाएं हो सकती हैं। सवाल है कि इन अवस्थाओं से क्या कंप्यूटेशन में कोई मदद मिलेगी? थ्योरीसियन्स ने दिखाया है कि यह संभव है। अगला सवाल उठता है कि इस मदद से क्या हासिल होगा? इसी सवाल के जवाब में क्वांटम टेक्नोलॉजी का भविष्य छिपा है। आज भी अनेक प्रोसेस या प्रॉब्लम ऐसी हैं जिनका समाधान निकालने में सुपर कंप्यूटर को भी काफी समय लगता है। अगर हम क्वांटम कंप्यूटर बना सके तो यह काम बहुत कम समय में किया जा सकता है।
विजयराघवन कहते हैं, क्वांटम मैकेनिक्स को शुरू हुए 100 साल से अधिक हो गए हैं। आज भी अनेक प्रॉब्लम के समाधान में क्वांटम सिद्धांत का प्रयोग होता है, हालांकि उसके लिए बिल्कुल मौलिक स्तर पर जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन अगर हम मौलिक स्तर पर उन समीकरणों का समाधान कर पाए तो चीजों को और बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। इससे हम बेहतर केमिकल और दवाएं तैयार कर सकते हैं। आज हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं या उसमें बहुत अधिक समय लगता है। इसका कारण यह है कि क्वांटम मैकेनिक्स के समीकरणों का जब हम साधारण क्लासिकल कंप्यूटर से समाधान निकालने की कोशिश करते हैं, तो प्रॉब्लम जटिल होने के कारण कंप्यूटर की मेमोरी और प्रोसेसिंग पावर जल्दी खत्म हो जाती है। अगर उस प्रॉब्लम को क्वांटम कंप्यूटर में समाधान तलाशा जाए तो उतनी अधिक मेमोरी और प्रोसेसिंग पावर की जरूरत नहीं पड़ेगी।
मेडिकल क्षेत्र में कैसा बदलाव आ सकता है?
पटेल के अनुसार, क्वांटम मैकेनिक्स एटॉमिक और मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर में मदद कर सकता है। जैसे, किसी मॉलिक्यूल को अलग तरीके से अरेंज किया जाए तो उससे नई चीजें हासिल की जा सकती हैं। फार्मा इंडस्ट्री पूरी तरह मॉलिक्यूल पर आधारित है। अगर हम यह जान सकें कि कुछ खास तरह के मॉलिक्यूल खास बीमारी में काम आ सकते हैं, तो हम वह मॉलिक्यूल बना सकते हैं।
सेंसिंग में भी क्वांटम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो सकता है। जैसे, डायग्नोस्टिक मेडिकल टेस्ट में। उदाहरण के लिए खून की जांच को लें। खून को मॉलिक्यूल में तोड़ा जाता है, उसके पैटर्न को देखकर समझा जाता है कि उसमें क्या हो रहा है। चिकित्सा के क्षेत्र में इमेजिंग का बड़ा महत्व है। हम जो एमआरआई स्कैन करते हैं, वह मॉलिक्यूलर लेवल पर काम करता है। इस तरह के इंस्ट्रूमेंट में क्वांटम टेक्नोलॉजी से बहुत सुधार किया जा सकता है। ज्यादा रिजॉल्यूशन वाले एक्स-रे और एमआरआई स्कैन हासिल किए जा सकते हैं।
विजयराघवन कहते हैं, ड्रग डिजाइनिंग क्वांटम कंप्यूटिंग के तहत आता है। फिजिक्स हो या केमिस्ट्री, सबके मौलिक सिद्धांत में क्वांटम मैकेनिक्स है। क्वांटम मैकेनिक्स ही बताती है कि इलेक्ट्रॉन या अन्य पार्टिकल किस तरह व्यवहार करते हैं। क्वांटम मैकेनिक्स से ही किसी भी दवा के मौलिक गुणों का पता चलता है।
डॉ. बनिक कहते हैं, विभिन्न तरह के मॉलिक्यूल के कॉम्बिनेशन से दवाएं बनाई जाती हैं। इस कॉम्बिनेशन की अनेक संभावनाएं हैं। वैज्ञानिक कंप्यूटर पर ही सिमुलेशन के जरिए देखते हैं कि क्या कॉम्बिनेशन संभव हैं। अभी यह क्लासिकल कंप्यूटर पर किया जाता है, जिस पर वैज्ञानिकों को विकल्प तलाशने में कई साल लग जाते हैं। क्वांटम कंप्यूटर से यह समय बहुत कम हो जाएगा।
कंप्यूटेशन में क्वांटम का क्या महत्व है?
डॉ. बनिक के अनुसार, मूर का नियम (Moore's Law) कहता है कि किसी भी इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसी) में ट्रांजिस्टर की संख्या हर दो साल में दोगुनी हो जाएगी। अर्थात हर दो साल में चिप का आकार छोटा होता जाएगा। यही कारण है कि पहला कंप्यूटर एक कमरे के आकार का था जो अब लैपटॉप तक सिमट कर रह गया है। हम कम जगह में हम ज्यादा मेमोरी रख पा रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में यह स्थिति सैचुरेशन पर पहुंच गई है। अब कंप्यूटर का आकार और अधिक छोटा नहीं कर पा रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इनकी कंप्यूटेशन क्षमता अब बहुत अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती। इसलिए हमें विकल्प तलाशने होंगे। एक विकल्प है क्वांटम (quantum) कंप्यूटेशन और दूसरा है न्यूरल (neural) कंप्यूटेशन। क्वांटम में तो हमने कुछ प्रगति की है, लेकिन न्यूरल शुरुआती चरण में है, वैज्ञानिक अभी इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं।
विजयराघवन के अनुसार, अभी तक कम क्षमता वाले क्वांटम कंप्यूटर बनाए गए हैं। ऐसे क्वांटम कंप्यूटर अभी नहीं बने जिन्हें हम नियमित रूप से इस्तेमाल कर सकें। छोटे प्रॉब्लम का सॉल्यूशन तो क्लासिकल कंप्यूटर में भी निकाला जा सकता है।
बनिक कहते हैं, क्वांटम कंप्यूटर बनाना काफी चुनौतीपूर्ण काम है। दुनिया में अनेक देश और संस्थान प्रयास कर रहे हैं। कुछ संस्थानों ने कम क्यूबिट (qubit) अथवा क्वांटम बिट (quantum bit) वाले कंप्यूटर बनाए हैं, लेकिन अभी तक किसी को पूरी सफलता नहीं मिली है। अभी वैज्ञानिक क्यूबिट कंप्यूटर तैयार करने का आर्किटेक्चर समझ रहे हैं। इसके भी कई विकल्प हैं और सबके अपने फायदे और नुकसान भी हैं। वैज्ञानिक इनमें से सर्वश्रेष्ठ विकल्प तलाशने की कोशिश में हैं। बनिक के अनुसार, इस कार्य में स्केलिंग काफी चुनौतीपूर्ण है। स्केलिंग का मतलब है- हमने 10 क्यूबिट वाला कंप्यूटर बनाया, तो कितनी जल्दी 20 क्यूबिट वाला और फिर 40 क्यूबिट वाला कंप्यूटर बना सकते हैं। राष्ट्रीय मिशन में आठ वर्षों के दौरान 50 से 1000 क्यूबिट वाले क्वांटम कंप्यूटर बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
कम्युनिकेशन के क्षेत्र में बदलाव कैसे आएगा?
विजयराघवन के मुताबिक, अभी फोन पर बातचीत को आरएसए टेक्निक के तहत इंक्रिप्ट किया जा सकता है। आरएसए इंक्रिप्शन के लिए 2048 बिट का इस्तेमाल होता है, जिसे तोड़ना सुपर कंप्यूटर के लिए भी असंभव है। पीटर शोर नाम के वैज्ञानिक ने 1994 में एक एल्गोरिदम बनाया और कहा कि क्वांटम कंप्यूटर में इस एल्गोरिदम के जरिए इंक्रिप्शन को बहुत कम समय में तोड़ा जा सकता है। हालांकि उस एल्गोरिदम को प्रोसेस करने वाला क्वांटम कंप्यूटर बनाने में अभी काफी समय लगेगा।
वे कहते हैं, आरएसए इंक्रिप्शन को तोड़ने के साथ क्वांटम मैकेनिक्स नए तरह के इंक्रिप्शन की सुविधा भी देता है। इस इंक्रिप्शन में अगर कोई घुसने की कोशिश करता है तो क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन से उसका पता चल जाता है। यह संभव नहीं है कि कोई आपका इंक्रिप्शन तोड़ दे और आपको उसका पता ना चले। क्वांटम की के प्रयोग से पावर ग्रिड जैसे सिस्टम को भी हैक प्रूफ बनाया जा सकता है।
प्रो. पटेल के अनुसार, कम्युनिकेशन में कई लेयर होते हैं। जैसे, दो लोगों को जोड़ने के लिए सीधी लाइन, एक नेटवर्क, मैसेज एनकोडिंग-डिकोडिंग सिस्टम होता है जो वॉयस को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में और फिर उस सिग्नल को वॉयस में बदलता है। इन सब कार्यों के लिए अलग-अलग डिवाइस होती हैं। क्वांटम टेक्नोलॉजी ट्रांसमिशन लाइन को सुरक्षित बना सकती है। लेकिन नेटवर्क में कई तरह के रिले और स्विच होते हैं, जिन्हें कम्युनिकेशन लाइन के बीच स्थापित किया जाता है। ये सब नहीं बदलेंगे। इसलिए इसे हर बीमारी की एक दवा के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। यह टारगेटेड यूज सिस्टम है।
बनिक के अनुसार, क्वांटम टेक्नोलॉजी से इस क्लासिकल इन्क्रिप्शन को तोड़ा जा सकता है। लेकिन यह टेक्नोलॉजी क्वांटम क्रिप्टोग्राफी की सुविधा भी देती है। अगर किसी सूचना को क्वांटम क्रिप्टोग्राफी से इन्क्रिप्ट किया गया है, तो क्वांटम कंप्यूटर से भी उसका इन्क्रिप्शन तोड़ा नहीं जा सकता है। वह सूचना पूरी तरह सुरक्षित होगी। क्वांटम क्रिप्टोग्राफी का पहला प्रोटोकॉल BB84 नाम से जाना जाता है। यह चार्ल्स बेनेट (Charles Bennett) और गाइल्स ब्रासार्ड (Gilles Brassard) के नाम पर आधारित है। इनका पहला शोध पत्र बेंगलुरु में एक कॉन्फ्रेंस के दौरान पब्लिश हुआ था। बाद में इसमें संशोधन करके नए प्रोटोकॉल भी बने।
कम्युनिकेशन में ‘क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन’ का क्या महत्व है?
क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन का काम किसी सूचना को इन्क्रिप्ट करना है। बीच में अगर कोई उसमें हस्तक्षेप करना चाहे तो वह समझ नहीं पाएगा कि मैसेज क्या है। यह ‘की’ सिर्फ मैसेज भेजने और प्राप्त करने वाले के पास उपलब्ध होगा। कोई उसका डुप्लीकेट भी तैयार नहीं कर सकेगा। क्वांटम टेक्नोलॉजी हमें यह ‘की’ तैयार करने की क्षमता देती है। क्लासिकल तरीके में भी सूचनाएं एन्क्रिप्ट की जाती हैं, लेकिन उसे हैक किया जा सकता है। क्वांटम क्रिप्टोग्राफी को किसी भी तरीके से हैक नहीं किया जा सकेगा।
बनिक कहते हैं, बैंकिंग ट्रांजैक्शन में हमेशा क्रिप्टो ‘की’ की जरूरत पड़ती है ताकि लेन-देन की सूचनाओं को सुरक्षित रखा जा सके। इसी तरह रक्षा के क्षेत्र में भी अनेक सूचनाएं होती हैं जिन्हें हम पूरी तरह गोपनीय रखना चाहते हैं। सिद्धांत रूप से देखा जाए तो क्वांटम टेक्नोलॉजी का इन सब जगहों पर इस्तेमाल संभव है।
क्वांटम कम्युनिकेशन में दूरी की क्या समस्या है?
राष्ट्रीय क्वांटम मिशन में देश में 2000 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राउंड स्टेशन के बीच सुरक्षित कम्युनिकेशन स्थापित करने के साथ दूसरे देशों के साथ भी ऐसी व्यवस्था करने का लक्ष्य है। चीन ने इससे पहले 2,600 किमी दूर स्थित ग्राउंड स्टेशन के बीच क्वांटम कम्युनिकेशन स्थापित करने का दावा किया है। पटेल कहते हैं, चीन ने ट्रांसमिशन लाइन सिस्टम का परीक्षण किया है। उसके बारे में जो चीजें प्रकाशित हुई हैं उनमें कहा गया है कि लाइन तो सुरक्षित है लेकिन नोड नहीं। नोड का मतलब अंतिम छोर से है। उन्हें अलग तरीके से सुरक्षित करना पड़ेगा, वरना उस सिस्टम का कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलेगा। अर्थात नोड को एक तरीके से सुरक्षित करना पड़ेगा तो ट्रांसमिशन लाइन को दूसरे तरीके से। नोड मौजूदा क्लासिकल डिजाइन तरीके से ही सुरक्षित किए जा सकते हैं, जबकि ट्रांसमिशन लाइन को क्वांटम तरीके से सुरक्षित किया जा सकता है।
दूरी के बारे में बनिक कहते हैं, “दरअसल, सिग्नल को नॉयज तथा अन्य डिस्टरबेंस का सामना करना पड़ता है। दूरी जितनी अधिक होगी, डिस्टरबेंस उतना अधिक होगा। इस डिस्टरबेंस को नियंत्रित करके सूचना एक जगह से दूसरी जगह तक भेजना चुनौतीपूर्ण है।”
सेंसिंग में क्वांटम का क्या प्रयोग संभव है?
मिशन का एक लक्ष्य बेहद संवेदनशील मैग्नेटोमीटर विकसित करना है। आईआईएससी के पटेल कहते हैं, क्वांटम की मदद से हम सेंसिंग भी बेहतर तरीके से कर सकते हैं। इसका मतलब है कि बहुत बारीक बदलाव होने पर भी वह पकड़ में आ जाएगा। जितनी अच्छी सेंसिंग होगी, उसका इस्तेमाल उतना बेहतर होगा। क्वांटम टेक्नोलॉजी की मदद से हमें ज्यादा रिजॉल्यूशन वाली तस्वीरें मिल सकती हैं। इससे सेना को हाई-रिजॉल्यूशन सर्विलांस की सुविधा मिल सकती है।
विजयराघवन बताते हैं, एटॉमिक पार्टिकल बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं। बेहद सामान्य मैग्नेटिक फील्ड में भी उनकी प्रॉपर्टी काफी बदल जाती है। अगर इस प्रॉपर्टी का इस्तेमाल सेंसिंग में किया जाए तो अभी की तुलना में सेंसिंग काफी बेहतर हो जाएगी। इसके प्रयोग से हम बेहतर अल्ट्रासाउंड या एमआरआई मशीन बना सकते हैं। संभव है कि इसके प्रयोग से एमआरआई मशीन सस्ती तथा छोटी हो जाए और एमआरआई बहुत कम समय में हो। जमीन के नीचे तेल की खोज करने में इसका प्रयोग संभव है। सेना बहुत दूर से पता लगा सकती है कि कोई सबमरीन आपकी तरफ आ रही है। जीपीएस की क्वालिटी भी काफी अच्छी हो जाएगी।
क्वांटम मैटेरियल और डिवाइस क्या है?
बनिक के अनुसार, अभी हमें यह नहीं मालूम कि कौन सा तरीका अपनाने से स्केलिंग बेहतर हो सकेगी। इसे समझने के लिए विभिन्न मैटेरियल की क्वांटम प्रॉपर्टी का अध्ययन करना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो वह कौन सा मैटेरियल है जिसे हम आसानी से मैनिपुलेट कर सकते हैं। एलिमेंटरी पार्टिकल तापमान, चुंबकीय क्षेत्र आदि को लेकर काफी संवेदनशील होते हैं। तापमान थोड़ा बढ़ने पर भी मैटेरियल की क्वांटम प्रॉपर्टी खत्म हो सकती है। अभी हम जो प्रयोग करते हैं उनके लिए लगभग एब्सोल्यूट जीरो (-273 डिग्री सेल्सियस) तापमान पर जाना पड़ता है। यह बहुत मुश्किल काम होता है। अगर किसी मैटेरियल में एब्सोल्यूट जीरो से अधिक तापमान पर वही गुण मिल जाएं तो काम बहुत आसान हो जाएगा। इसे हम जितना बेहतर समझेंगे उतना ही बेहतर डिवाइस तैयार कर सकेंगे। विजयराघवन कहते हैं, क्वांटम मैटेरियल के क्षेत्र में भारत में कई वर्षों से काम हो रहा है। अब लोगों को उसे नेक्स्ट लेवल पर ले जाना होगा, जहां ऐसे मैटेरियल बन सकें जिनमें अशुद्धता बिल्कुल न हो।
क्वांटम टेक्नोलॉजी का और कहां प्रयोग हो सकता है?
पटेल कहते हैं, क्वांटम मैकेनिक्स की शुरुआत नए गुणों को समझने के लिए हुई थी। ये नए गुण मॉलिक्यूल स्तर पर थे। पेस्टिसाइड और फर्टिलाइजर जैसे क्षेत्रों में इसका व्यापक इस्तेमाल संभव है। मैटेरियल साइंस में इसके प्रयोग से नए तरह के कंपाउंड बनाए जा सकते हैं। यह हमारी कल्पना पर निर्भर करता है कि हम किस तरह के कंपाउंड बनाना चाहते हैं।
विजयराघवन बताते हैं, हम किसी नए मॉलिक्यूल से ऐसा ईंधन बना सकते हैं जिससे प्रदूषण कम होता हो, ऐसा केमिकल बना सकते हैं जो वातावरण से कार्बन को सोख ले, ऐसा मैटेरियल जो इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी की लाइफ बढ़ा दे या उसकी लागत कम कर दे, बैटरी में कुछ ऐसे तत्वों का इस्तेमाल होता है जो दुनिया में बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हैं, उनका विकल्प तलाशा जा सकता है। आम लोगों को सीधे नहीं, बल्कि परोक्ष रूप से इसका फायदा मिलेगा। जैसे बहुत कम समय में बाजार में नई दवा आ जाए, वातावरण में प्रदूषण कम हो जाए, गाड़ियों की बैटरी सस्ती हो जाए।
एयर ट्रैफिक का उदाहरण देते हुए बनिक कहते हैं, एयरपोर्ट कनेक्टिविटी को कैसे सुधारा जाए कि ट्रैफिक नियंत्रण बेहतर हो सके। इससे समय के साथ ईंधन की भी बचत होगी। इसे संसाधनों का ऑप्टिमाइजेशन कहते हैं। आमतौर पर ऑप्टिमाइजेशन की समस्या बहुत कठिन होती है। इसके अनेक मॉडल होते हैं। क्लासिकल कंप्यूटर पर हम इनका समाधान निकालने की कोशिश करते हैं। क्वांटम टेक्नोलॉजी की मदद से एयर ट्रैफिक के लिए हम बेहतर एल्गोरिदम तैयार कर सकते हैं।
पटेल के अनुसार, इस्तेमाल अनेक क्षेत्रों में हो सकता है, लेकिन वह अभी बहुत दूर की कौड़ी है। किसी भी टेक्नोलॉजी में डिजाइनर और यूजर, दोनों के लिए अलग नजरिया होता है। क्वांटम टेक्नोलॉजी अभी डिजाइनिंग की अवस्था में है। अभी हमें देखना है कि विभिन्न कंपोनेंट को कैसे बनाएं, उन्हें कैसे साथ लाएं, कैसे अपनी जरूरत के मुताबिक उनसे काम लें। उसके बाद ही उसका इस्तेमाल हो सकेगा।
अभी तक भारत में क्या प्रगति है?
विजयराघवन कहते हैं, भारत में हम किसी नई टेक्नोलॉजी में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर प्रवेश करने जा रहे हैं। क्वांटम क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। देश में आने वाले समय में अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी वाले अनेक लैब बनेंगी, नई कंपनियां आएंगी, उनके साथ नौकरियां भी आएंगी। भारत में इस फील्ड में करीब 10 साल से काम हो रहा है, लेकिन अभी तक यह छोटे पैमाने पर हुआ है। तीन-चार साल पहले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने एक बड़ा प्रोग्राम लांच किया था जिसमें करीब 50 वैज्ञानिकों को फंडिंग दी गई थी, उसके कारण इसमें तेजी आई है।
बनिक बताते हैं, अहमदाबाद स्थित पीआरएल (फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी) ने डीआरडीओ के साथ मिलकर तथा बेंगलुरु स्थित रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट ने क्वांटम क्रिप्टोग्राफी की दिशा में कुछ प्रयोग किए हैं। हालांकि अभी यह सीमित दूरी के लिए है।
अमेरिका में 30-40 वर्षों से इस क्षेत्र में काम हो रहा है। शुरुआत में वहां भी छोटे स्तर पर काम हुआ, बाद में तेजी आई। चीन 15-20 साल से इस क्षेत्र में काफी निवेश कर रहा है। यूरोप में भी इस पर दो दशक से ज्यादा समय से काम चल रहा है।
अन्य देशों की तुलना में भारत
विजयराघवन कहते हैं, किसी भी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू होने से पहले अनेक वर्षों तक उस पर काम होता है। कह सकते हैं कि इस बुनियादी अध्ययन में हम पीछे हैं। लेकिन ग्लोबल स्थिति देखें तो आईबीएम ने अभी तक का सबसे बड़ा 433 क्यूबिट वाला क्वांटम कंप्यूटर बनाया है। लेकिन इन कंप्यूटर का सुपरपोजिशन स्टेट बहुत जल्दी खराब हो जाता है। वे क्वांटम कंप्यूटर से अभी तक ऐसी कोई काम नहीं कर पाए हैं जो क्लासिकल कंप्यूटर नहीं कर सकते। क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन में जरूर हम काफी आगे बढ़े हैं। चीन ने इसके लिए अलग सैटेलाइट लॉन्च किया है। क्वांटम कम्युनिकेशन में चीन सबसे आगे है। उसने कई नोड बनाए हैं जिनके बीच कम्युनिकेशन क्वांटम तरीके से पूरी तरह सुरक्षित है। फिर भी क्वांटम टेक्नोलॉजी अभी परिपक्व नहीं हुई है। उस लिहाज से देखें तो भारत ज्यादा पीछे नहीं है। क्वांटम अपने आप में बहुत बड़ा क्षेत्र है। कुछ क्षेत्रों में हम लीडर भी बन सकते हैं। यह मौका भारत के सामने है।
चीन में तेज प्रगति कैसे
क्वांटम बहुत ही विशेषज्ञता वाला क्षेत्र है। इसके लिए स्किल्ड लोगों की आवश्यकता है। फोर्ब्स पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन अपने यहां विश्वस्तरीय टैलेंट ला रहा है। वह अमेरिका से भी विशेषज्ञों को लेकर आया। अमेरिकी शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को आकर्षित करने के लिए चीन की सरकार ने रिक्रूटमेंट प्रोग्राम चलाएं हैं। अमेरिकी सीनेट की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन सरकार ने दो लाख करोड़ डॉलर खर्च किए हैं और यह विज्ञान की प्रगति के लिए नहीं, बल्कि चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए है। चीन को न सिर्फ अमेरिकी रिसर्च का फायदा मिला, बल्कि अमेरिकी शोधकर्ताओं के चले जाने से अमेरिका में ऐसे लोगों की कमी हो गई है। एक अध्ययन के अनुसार चीन के 56% से ज्यादा विशेषज्ञों ने अमेरिका में अध्ययन किया है या वहां पहले रह चुके हैं। क्वांटम कंप्यूटिंग में चीन की तेज गति को देखते हुए पिछले दिनों अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक समझौता भी हुआ है।
चीन में पैन जिनवेइ (pan jinwei) को क्वांटम साइंस का ‘फादर’ कहा जाता है। जिनवेइ की अगुवाई में चीन के शोधकर्ताओं ने काफी प्रगति की है। 2016 में उसने इसके लिए अलग से micius सैटेलाइट लॉन्च किया। सितंबर 2017 में चीन और ऑस्ट्रिया के अकादमिशियन के बीच 7600 किलोमीटर दूर क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन के जरिए वीडियो कॉल भी किया गया। चीन की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री भी क्वांटम टेक्नोलॉजी में काफी पैसा लगा रही है।