एग्रो फॉरेस्टी, वाटरशेड मैनेजमेंट और ग्रीन एरिया को संरक्षित करने जैसे उपायों को मजबूती से अपनाना आवश्यक: माधव पई
इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ाना होगा। तकनीक बनाकर कॉर्बन को कैप्चर करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। बिजली को कार्बन मुक्त करने के लिए जीवाश्म ईंधन से बनने वाली बिजली में भी तेजी से कमी की जरूरत होगी। हमें ध्यान रखना है कि इस प्रक्रिया में प्रकृति को किसी तरह का नुकसान न हो। कोयले और गैस को चरणबद्ध तरीके से खत्म करना होगा।
बाढ़, सूखा, गर्मी की लहरें और अन्य जलवायु संबंधी खतरे अधिक तीव्र, लंबे और अधिक लगातार होते जा रहे हैं। मौसम में बदलाव के तौर पर गर्मी का मौसम लंबा खिंचना, इस कारण बारिश और सर्दी का असर भी ज्यादा समय तक दिखने लगा है। इन खतरों से स्वास्थ्य और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जलवायु की विविधताओं वाले देश भारत में इस चुनौती का असर अब मौसम में बदलाव के साथ साथ क्षेत्रीय आधार पर जलवायु के बदलते रूप में दिखने लगा है। इसकी वजह से जलचक्र, खाद्य चक्र और बारिश का चक्र प्रभावित होने लगा है। पर्यावरण के विविध पहलुओं को लेकर जागरण न्यू मीडिया ने डब्ल्यूआरआई इंडिया के सीईओ माधव पई से बात की।
भारत में तेजी से शहरीकरण हो रहा है और 2050 तक शहरी आबादी दोगुनी हो जाएगी। वे कौन सी प्रमुख उपाय हैं जिन्हें अपनाकर शहर निम्न कॉर्बन बन सकते हैं? वहीं कृषि में मृदा क्षरण, कीटनाशकों का अधिक इस्तेमाल हुआ है जो कि एक बड़ी समस्या है। चरम घटनाओं में लगातार ईजाफा हो रहा है। ऐसे में चीजों को क्रमबद्ध बेहतर करने के लिए किस तरह के तरीकों को अपनाए जाने की आवश्यकता है ?
अगर शहरीकरण की बात वैश्विक संदर्भ में करें तो इकोनॉमी का मुख्य आधार फिलहाल शहरीकरण है। नि: सेदह कृषि में आजीविका अधिक है लेकिन अर्थव्यवस्था को नए आयाम शहरीकरण से ही मिलेंगे। अपने रिसोर्स का बेहतर इस्तेमाल करने के लिहाज से शहरीकरण एक बड़ा अवसर है। भारत तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है लेकिन दुनिया के मुकाबले जमीन के परिप्रेक्ष्य में फिलहाल भारत में अभी शहरीकरण कम है। शहरीकरण को एक नियोजित तरीके से करने की आवश्यकता है। ग्रीन एरिया को संरक्षित करना है। बिल्डिंग मैटीरियल में इनोवेशन की आवश्यकता है। हमें ऐसी चीजें इनोवेशन करनी होगी जिससे क्लाइमेट पर प्रतिकूल असर कम हो। शहरीकरण को लो-कॉर्बन बनाना है, इसे एक अवसर की तरह देखना है। इसे सस्टेनेबल बनाना है। भारत में चरम घटनाएं बहुत ज्यादा बढ़ी है। 365 में से 310 दिन चरम घटनाएं हुई है। सबसे ज्यादा उसका असर शहरी एरिया में हुआ है। पानी का संरक्षण बेहद आवश्यक है। हरियाली को बढ़ाना भी काफी अहम है। वाटर मैनेजमेंट, फ्लड मैनेजमेंट भी जरूरी है। मौजूदा समय में इनोवेशन के लिए अवसर है। साथ ही हमें चीजों को बेहतर करने के लिए लचीलापन भी अपनाना होगा।
मिट्टी का क्षरण होना भी एक बड़ी समस्या है। फर्टिलाईजर के इस्तेमाल को कम करना है। हमारे कार्यक्रम में एक एक्सपर्ट आए थे, उन्होंने बताया था कि अब 140 किग्रा प्रति हेक्टेयर फर्टिलाइजर इस्तेमाल होता है, जबकि पहले 13 किग्रा प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल होता था। क्रॉप डायवर्सिफिकेशन, सॉइल हेल्थ इंप्रूवमेंट को बेहतर करना होगा। ग्रीन एरिया को संरक्षित करना है, फ्लडिंग का सही से प्रबंधन करना है। एग्रो फॉरेस्टी (एक भूमि उपयोग प्रणाली है जो वृक्षारोपण, फसल उत्पादन और पशुपालन को इस तरह से एकीकृत करती है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अत्यंत उपयुक्त हो), रूरल इकोनॉमी को सुधारना, वाटर शेड मैनेजमेंट, रेनवाटर हार्वेस्टिंग पर काम करने की आवश्यकता है।
क्लाइमेट चेंज का प्रभाव दिखने लगा है। सितंबर में बारिश अधिक होने लगी। बारिश अधिक हो रही है या काफी कम हो रही है। आईसीएआर ने क्लाईमेट प्रतिरोधी फसलें बनाई है। फरवरी में गर्मी अधिक पड़ने लगी है। वहीं खाने की न्यूट्रिशनल वैल्यू कम होने के कारकों में से एक है। इन्हें सुधारने के लिए किस तरह के उपाय किए जाने की जरूरत है ?
2021 काफी गर्म था, 2022 इससे अधिक रहा। 2024 भी गर्म है और 2025 इससे अधिक गर्म हो जाएगा। अगर हम सारे प्रयास करते हैं तो हम चरम स्थितियों के पीक पर जाकर वापस आ सकते हैं। नेट जीरो के लिए अभी अगर शिद्दत से काम करें तो संभव है बीस से तीस वर्ष के बाद पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल स्थितियां होना शुरू हो जाएगी। हम आने वाले समय में आपदाओं को लेकर अधिक सटीक जानकारी दे सकने में सक्षम होंगे। इसमें लोगों को यह जानकारी दे सकते हैं कि इस साल बारिश का स्तर इस तरह का होगा, उसके अनुरूप फसल को बोएं। तापमान प्रतिरोधी फसलों को कम बोना है, इसके बारे में लोगों को जानकारी दे सकते हैं। गर्मी पर लेबर प्रोडक्टिवटी का असर आने वाले समय में पड़ेगा। बढ़ती गर्मी के अनुरूप हमें वर्करों के काम के घंटे कम करने होंगे। आने वाले समय में संभव है कि हम वर्किंग घंटों में बदलाव करें, फ्री घंटे बढ़ाएं। व्यवस्थित तरीके से इसके लिए योजना बनाने की आवश्यकता है। पानी का पूरी तरह सूखा नहीं हुआ है।
गुजरात में इस बार बारिश अधिक हुई। कई क्लाइमेट साइंटिस्ट कह रहे हैं कि यह बदलते जलवायु परिवर्तन की तरफ ईशारा कर रहा है। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि बीते पांच सालों में यह अधिक तीव्रता से बढ़ा है। हमारे महानगर भी जीरो डे की तरफ जा रहे हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है।
मैं इससे सहमत हूं। महाराष्ट्र में कहा जाता है कि भारी बादल है, वेस्टर्न घाट में टकराते हैं, कोंकण में फ्लैश फ्ल़ड्स होता है। मराठवाड़ा में इसका प्रतिकूल होता है। चेन्नई ने अच्छे उपायों को अपनाकर पानी की कमी को सही तरीके से संभाला है। मेरा मानना है कि जीरो डे को ठीक किया जा सकता है। बेंगलुरू, दिल्ली हर जगह किया जा सकता है।
क्या आप इस वर्ष की कनेक्ट कारो थीम 'लोगों, प्रकृति और जलवायु के लिए' के बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक सीमित रखने के लिए भारत समेत पूरी दुनिया में जद्दोजहद चल रही है। नेट जीरो के लिए चरणबद्ध तरीके से काम किए जा रहे हैं।इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ाना होगा। तकनीक बनाकर कॉर्बन को कैप्चर करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। बिजली को कार्बन मुक्त करने के लिए जीवाश्म ईंधन से बनने वाली बिजली में भी तेजी से कमी की जरूरत होगी। हमें ध्यान रखना है कि इस प्रक्रिया में प्रकृति को किसी तरह का नुकसान न हो। कोयले और गैस को चरणबद्ध तरीके से खत्म करना होगा और नवीकरणीय ऊर्जा का तेजी से विस्तार करना होगा। लोगों का साथ में लेकर हमें पर्यावरण को बेहतर करने की प्रक्रिया में काम करना होगा 2070 तक नेट ज़ीरो हासिल करने की भारत की प्रतिबद्धताओं का समर्थन करना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है और हमें ऊर्जा प्रणालियों, खाद्य प्रणाली और शहरीकरण के लिए हमारे वर्तमान दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता होगी।
फूड लॉस को लेकर काफी चर्चा हो रही है। आपने भी इस बारे में काफी बात की है। फूड लॉस को कैसे सुधारा जा सकता है ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इससे मजबूती प्रदान की जा सकें।
फूड लॉस और फूड वेस्ट में फर्क है। हम खाना फेंकते हैं उसे फूड वेस्ट कहते हैं। खेत से मंडी तक पहुंचने में जो लॉस होता है उसे फूड लॉस कहते हैं। इसमें स्टोरेज फैसिलिटी, प्रोसेसिंग प्रक्रिया को दुरूस्त करने की आवश्यकता है। हम खाद्य पदार्थों की प्रोसेसिंग नहीं करते हैं। हमारे यहां सॉसेज भी बाहर से ही आते हैं। इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटी और लोगों की मानसिकता में बदलाव करने की आवश्यकता है। जिलेवार योजना बनानी होगी। टारगेटेड कैपिसिटी बिल्डिंग करनी होगी।