सस्ता डाटा के मामले में भारत पांचवें नंबर पर, डिजिटल ट्रांजेक्शन में नंबर 1, ऑनलाइन शिक्षा 170% बढ़ी
बीते दो दशकों में टेलीकॉम मार्केट में आए बूम ने ऐसा धमाल मचाया कि डाटा और कॉलिंग दरें भी दुनिया के शीर्ष देशों के मुकाबले किफायती हैं। 2021 में भारत में 1 जीबी डाटा के लिए कंपनियां 10.93 रुपये चार्ज कर रही थीं।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।मोबाइल फोन सेवा की जब शुरुआत हुई तब कॉल दरें काफी महंगी थीं। आउटगोइंग के साथ इनकमिंग कॉल के लिए भी तब पैसे चुकाने पड़ते थे। मोबाइल हैंडसेट भी महंगा था। इसलिए शुरुआत में इसका विस्तार बहुत धीमी गति से हुआ। लेकिन बीते दो दशकों में टेलीकॉम मार्केट में आए बूम ने ऐसा धमाल मचाया कि आज हर हाथ में मोबाइल तो ही है, डाटा और कॉलिंग दरें भी दुनिया के शीर्ष देशों के मुकाबले किफायती हैं। संसद में सरकार की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार भारत में 80.19 करोड़ मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ता हैं।
साल 2021 में भारत में 1 जीबी डाटा के लिए टेलीकॉम कंपनियां 10.93 रुपये चार्ज कर रही थीं। यह दुनिया के बड़े देशों में सबसे कम है, जबकि 2014 से पहले तक भारतीयों को प्रति जीबी डेटा के लिए औसतन 269 रुपये देने पड़ते थे।
टेलीकॉम जगत की दुनिया की सबसे बड़ी कंसल्टेंसी फर्म केबल.को.यूके की रिपोर्ट के अनुसार सस्ता डाटा मुहैया कराने वाले देशों की सूची में भारत पांचवें स्थान पर है। पहले स्थान पर इजरायल, दूसरे स्थान पर इटली, तीसरे स्थान पर सैन मेरिनो और चौथे स्थान पर फिजी है।
केबल.को.यूके के विश्लेषक डैन हाउडल कहते हैं कि सबसे सस्ता डाटा वाले कई देशों में उत्कृष्ट मोबाइल और फिक्स्ड ब्रॉडबैंड इंफ्रास्ट्रक्चर है जिससे उपभोक्ताओं को सस्ते दामों पर डाटा मिलता है। कुछ देशों में आर्थिक परिस्थितियाँ कीमत निर्धारित करती हैं। वहां दरें कम रखनी पड़ती हैं ताकि लोग इसे वहन कर सकें।
इन बातों पर निर्भर करती है डाटा की कीमत
नेटवर्क का ढांचा
जिन देशों में टेलीकॉम का बुनियादी ढांचा अच्छा है वो देश सस्ती कीमत पर लोगों को डाटा देने में सक्षम हैं। भारत और इटली में ऐसा ही है। वहीं जिन देशों में बुनियादी ढांचा मजबूत नहीं है, वहां पर उपग्रह जैसे महंगे विकल्पों पर निर्भर होना पड़ता है इससे लागत बढ़ जाती है और डाटा महंगा हो जाता है।
डाटा का कम खर्च
जिन देशों में बुनियादी ढांचा कमजोर है, वहां लोग कम डाटा का इस्तेमाल करते हैं। इसके चलते मोबाइल प्लान भी कम डाटा वाले होते हैं। इस कारण से प्रति जीबी लागत ज्यादा हो जाती है। मलावी जैसे देशों के जरिए इसे समझा जा सकता है।
मोबाइल डाटा पर निर्भरता
जब किसी क्षेत्र में मोबाइल डाटा, इंटरनेट का प्राथमिक स्नोत होता है तो इसका उपयोग सभी करते हैं। इससे कपनियों में खपत बढ़ाने को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। इसके कारण कीमत में कमी आती है। किर्गिस्तान इसका अच्छा उदाहरण है।
उपभोक्ताओं की आय
अमीर देश मोबाइल सेवाओं के लिए ज्यादा शुल्क लेते हैं, क्योंकि उनके पास ज्यादा पैसा होता है। कई बार एक ही नेटवर्क प्रदाता होने के कारण भी कीमत अधिक होती है। जर्मनी, स्विट्जरलैंड और कनाडा में इसी कारण एक जीबी की कीमत काफी ज्यादा है।
सस्ता डाटा के फायदे
डिजिटल इंडिया
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और क्वांटम कंप्यूटिंग की दौड़ में आगे बने रहने के लिए कई देश भारी भरकम निवेश कर रहे हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि जो देश डिजिटल क्षेत्र में कामयाबी पा लेगा, उसका बड़ा दबदबा विश्व पर होगा। भारत सरकार भी देश में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है। डिजिटल इंडिया योजना ने ऐसा इकोसिस्टम तैयार किया है, जिसने सभी मंत्रालयों, सरकारी विभागों और आम आदमी को डिजिटली रूप से जोड़ा है।
डिजिटल लर्निंग
यूजीसी के आंकड़े बताते हैं कि कोरोना से पहले की तुलना में ऑनलाइन शिक्षा के लिए नामांकन में 170 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। यह दर्शाता है कि भारत में डिजिटल लर्निंग किस तेजी से बढ़ रही है। कोरोना काल में ऑनलाइन एजुकेशन में काफी वृद्धि दर्ज की गई।
इंटरनेट पर समय बिताना भी बढ़ा
जेनिथ मीडिया कंज्मपशन रिपोर्ट के अनुसार यूजर ने 2021 में मोबाइल इंटरनेट डिवाइस पर 930 घंटे बिताए। जेनिथ ने यह सर्वे 57 देशों में किया था। रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में इन देशों में लोगों ने 4.5 ट्रिलियन घंटे मोबाइल इंटरनेट डिवाइस पर बिताए थे। दुनिया भर में 2015 में लोग औसतन मोबाइल इंटरनेट पर एक दिन में 80 मिनट बिताते थे जो अब बढ़कर 130 मिनट हो गया है। स्मॉर्टफोन की उपलब्धता, तेज कनेक्शन, बेहतर स्क्रीन और एप इनोवेशन के कारण मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है।
रिपोर्ट के अनुसार लोगों का अखबार पढ़ने का समय भी कम हुआ है। 2014 से 2019 के दौरान यह 17 मिनट से घटकर 11 मिनट रह गया। वहीं मैगजीन पढ़ने का समय 8 मिनट से 4 मिनट हो गया। जेनिथ के हेड ऑफ फॉरकॉस्टिंग जोनाथन बर्नार्ड कहते हैं कि अपने करीबियों के साथ चुटकले साझा करने, मैसेज भेजने आदि ने मोबाइल इंटरनेट डिवाइस पर लोगों का समय बढ़ाया है।
2027 तक 5जी के 50 करोड़ ग्राहक
इरिक्सन के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसीडेंट और हेड ऑफ नेटवर्क फ्रेडिक जेडलिंग कहते हैं कि 2027 तक भारत में 5जी के 500 मिलियन सब्सक्रिप्शन होंगे। 2021 में जहां भारत में 810 मिलियन मोबाइल फोन थे जो 2027 तक बढ़कर 1.2 बिलियन हो जाएंगे। 2027 तक 4जी तकनीक का दबदबा रहेगा।
सोशल मीडिया पर रोजाना दो घंटे बिता रहे भारतीय
ग्लोबल वेब इंडेक्स की रिपोर्ट में सामने आया है कि युवा आबादी (16-24) वाले देशों में सोशल मीडिया लगातार ग्रोथ कर रहा है। फिलीपींस में लोग सबसे अधिक, करीब चार घंटे सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं। नाइजीरिया के लोग तीन घंटे 42 मिनट, जबकि भारत और चीन के लोग क्रमश: 2.5 घंटे और दो घंटे सोशल मीडिया पर समय देते हैं। वहीं जापान के लोग सोशल मीडिया पर सिर्फ 46 मिनट बिताते हैं। जर्मनी का औसत एक घंटा बीस मिनट का है।
तेजी से बढ़ रहा डिजिटल ट्रांजेक्शन
नैस्कॉम की रिपोर्ट कहती है कि भारत में बीते बीस सालों में डिजिटल ट्रांजेक्शन की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है। वर्ष 2000 में डिजिटल इकोनॉमी का योगदान सिर्फ तीन प्रतिशत का था तो 2025 में यह 58 प्रतिशत तक होने की उम्मीद है। रिपोर्ट के मुताबिक स्मॉर्टफोन का बाजार भारत में 2005 में 2 प्रतिशत था तो 2015 में यह 26 प्रतिशत हो गया। 2022 में इसके 36 फीसदी तक होने की उम्मीद है। यूपीआई में साल दर साल 143 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। आने वाले समय में यूपीआई की बढ़ोतरी की दर तेज रहने की संभावना है। सेमी अर्बन और ग्रामीण क्षेत्रों में भी सक्रिय उपभोक्ता बढ़े हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में एक्टिव यूजर 227 मिलियन तो अर्बन यूजर 205 मिलियन हो गए हैं। यही नहीं इसकी वजह से 2025 तक डिजिटल पेमेंट का बाजार 1 ट्रिलियन का होने की उम्मीद है।
2025 तक भारत में प्रति व्यक्ति मासिक डेटा खपत 25 जीबी तक पहुंच सकती है
टेलीकॉम इक्विपमेंट बनाने वाली प्रमुख कंपनी एरिक्सन ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में प्रति व्यक्ति मासिक डेटा खपत 2025 तक प्रति माह 25 जीबी तक पहुंच सकती है। वर्ष 2019 में यह 12 जीबी प्रति माह थी जो वैश्विक स्तर पर इंटरनेट (डेटा) का सबसे अधिक उपयोग है।
कहां कितने इंटरनेट उपभोक्ता
30 सितंबर, 2021 तक ग्रामीण क्षेत्रों में 302.35 मिलियन और शहरी क्षेत्रों में 474.11 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता थे। ग्रामीण इलाकों में प्रति 100 लोगों पर 33.99 इंटरनेट उपभोक्ता थे। शहरी इलाकों में यह अनुपात 101.74 का था। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक सबसे अधिक इंटरनेट उपभोक्ता महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में हैं। महाराष्ट्र में 66.72 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 26.86 मिलियन और शहरी क्षेत्रों में 39.86 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता है। वहीं आंध्र प्रदेश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 61.12 मिलियन उपभोक्ता हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 26.69 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता हैं तो शहरी क्षेत्रों में 34.43 मिलियन उपभोक्ता है। उत्तर प्रदेश पूर्व में जहां 56.88 मिलियन उपभोक्ता तो उत्तर प्रदेश पश्चिम में 39.04 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता हैं। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, गुजरात में क्रमश: 41.84 मिलियन, 34.84 मिलियन और 47.41 मिलियन उपभोक्ता हैं।