'विवादों के समाधान का पसंदीदा तरीका बन रही मध्यस्थता', SC के जज ने कहा- ये अब वैकल्पिक तंत्र नहीं
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत मध्यस्थता केंद्रों की बराबरी करने के साथ-साथ इसकी पुनर्कल्पना भी कर रहा है। मध्यस्थता अब विवादों के समाधान का पसंदीदा तरीका बन रही है न कि केवल एक गौण तंत्र। उन्होंने मध्यस्थता के निर्णयों को लागू करने में आने वाली चुनौतियों का जिक्र किया और संस्थागत विकास के लिए सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की भागीदारी की वकालत की।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत अब केवल स्थापित मध्यस्थता केंद्रों की बराबरी करने का प्रयास नहीं कर रहा है, बल्कि सक्रिय रूप से इस बात की ''पुनर्कल्पना'' कर रहा है कि एक गतिशील और बहुध्रुवीय कानूनी व्यवस्था में मध्यस्थता कैसी हो सकती है और होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि मध्यस्थता का भविष्य न केवल अंतरराष्ट्रीय है, बल्कि भारतीय भी है। मध्यस्थता को अब एक गौण या वैकल्पिक तंत्र के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि यह विवादों के समाधान का एक पसंदीदा तरीका बनता जा रहा है। वह 10 जुलाई को स्वीडन के गोथेनबर्ग में आयोजित 'अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की पुनर्कल्पना: एक वैश्विक मध्यस्थता स्थल के रूप में भारत का उदय' विषय पर एक गोलमेज वार्ता में बोल रहे थे।
इन चुनौतियों का भी किया जिक्र
उन्होंने मध्यस्थता के निर्णयों को लागू करने की प्रक्रिया में आने वाली अड़चनों जैसी गंभीर चुनौतियों का भी जिक्र किया, जिनका देश को समाधान करना होगा। उन्होंने संस्थागत विकास को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की भागीदारी की भी वकालत की।
विवादों के समाधान का पसंदीदा तरीका बन रही मध्यस्थता
उन्होंने कहा कि मध्यस्थता को अब एक गौण या वैकल्पिक तंत्र के रूप में नहीं देखा जाता। बल्कि, यह विवादों के समाधान का एक पसंदीदा तरीका बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि लक्षित सुधारों, न्यायिक पुनर्संतुलन, संस्थागत विकास और मध्यस्थता के प्रति गहरी होती सांस्कृतिक प्रतिबद्धता के माध्यम से भारत एक ऐसा माडल गढ़ रहा है जो न केवल वैश्विक मानकों के अनुरूप है, बल्कि अपने विशिष्ट कानूनी और आर्थिक संदर्भ को भी प्रतिबिंबित करता है।
सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा, ''मैं आपको जो संदेश देना चाहता हूं वह स्पष्ट है। भारत अब केवल स्थापित मध्यस्थता केंद्रों की बराबरी करने का प्रयास नहीं कर रहा है, बल्कि वह सक्रिय रूप से इस बात की पुनर्कल्पना कर रहा है कि एक गतिशील, बहुध्रुवीय कानूनी व्यवस्था में मध्यस्थता कैसी हो सकती है और कैसी होनी चाहिए।''
सुप्रीम कोर्ट के जज ने बताया कैसे आ सकता है परिवर्तन?
उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन केवल कानून और बुनियादी ढांचे से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए सरकारों, मध्यस्थता संस्थानों, पेशेवरों और शिक्षाविदों द्वारा भारत के मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित करने, भरोसे का निर्माण करने और अंतरराष्ट्रीय संवाद को बढ़ावा देने में सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, ''यदि हम विचारशील सहभागिता और निरंतर नवाचार के साथ इस गति को बनाए रख सकें, तो न केवल भारत मध्यस्थता के लिए एक सक्षम स्थल के रूप में कार्य करेगा, बल्कि इससे इसके भविष्य को आकार देने में भी मदद मिलेगी।''
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