दिवालिया कानून पर सरकार की चुप्पी से बढ़ी बैंकों बेचैनी, कानून में संशोधन से ही सुधार की जताई जा रही उम्मीद
दिवालिया कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बैंकिंग सेक्टर को हतप्रभ कर दिया है। बैंकों को उम्मीद है कि आरबीआई और वित्त मंत्रालय मिलकर इस मामले में स्पष्टता लाएंगे। बैंकों के अनुसार दिवालिया कानून का उद्देश्य कर्ज वसूली में कानूनी जटिलता को दूर करना था पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इसे उलझा दिया है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जिंदल समूह की जेएसडब्ल्यू स्टील ने भूषण पावर एंड स्टील का अधिग्रहण किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस रद कर दिया था। इस बात को दो महीने से ज्यादा बीत चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देश में दिवालिया कानून के भविष्य पर जिस तरह से सवालिया निशान लगाया है, उसे कैसे दूर किया जाएगा, इसको लेकर हर तरफ चुप्पी है। इस चुप्पी से देश का बैंकिंग सेक्टर हतप्रभ है।
आइबीसी को लागू करने के लिए लानी चाहिए स्पष्टता
दैनिक जागरण ने इस बारे में देश के दो सरकारी बैंकों के प्रमुखों से बात की और इन दोनों ने कहा है कि सरकार को वर्ष 2016 में संसद में पारित इन्साल्वेंसी बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) को लागू करने को लेकर और स्पष्टता लानी चाहिए। यह भी बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले के बाद कुछ बड़ी कंपनियों में चल रही दिवालिया प्रक्रिया की रफ्तार और धीमी हो गई है।
बैंकों ने जताई ये उम्मीद
बैंकों को उम्मीद है कि आरबीआइ और वित्त मंत्रालय मिलकर जल्दी से इस मामले में स्पष्टता लाएंगे। बता दें कि जिंदल स्टील ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है। एक सरकारी बैंक के शीर्ष अधिकारी ने बताया कि दिवालिया कानून (आइबीसी) को बनाते हुए यह कहा गया था कि यह कर्ज वसूलने या कर्जदारों पर बकाये राशि की वसूली में आने वाली कानूनी जटिलता को दूर करेगा और शीघ्रता से कर्ज की राशि की वसूली सुनिश्चित की जाएगी।
बैंक ने आगे कहा कि ऐसा हो भी रहा था, लेकिन भूषण पावर और स्टील मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस गणित को सिर के बल खड़ा कर दिया है। इस फैसले ने पुराने मामले को भी न्यायालय में चुनौती देकर मामले को और उलझाने का रास्ता खोल दिया है। इससे निकलने के दो ही रास्ते हैं। या तो सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करते हुए उसमें संशोधन करे या फिर सरकार आइबीसी में एक बार फिर संशोधन करे।
पूरे बैंकिंग सेक्टर पर पड़ा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर
एक अन्य सरकारी बैंक के प्रमुख ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर पूरे बैंकिंग सेक्टर पर पड़ा है। बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) को खरीदने को लेकर जो उत्साह पहले एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों (एआरसी) में था, वह अब नहीं है। एआरसी वह कंपनियां होती हैं जो बैंकों से एनपीए खातों को खरीदकर बाद में उनसे वसूली करती हैं।
हाल ही में यह सूचना आई है कि भारत में एनपीए खातों को खरीदने का कारोबार शुरू करने वाले विदेशी फंड्स ने यहां से बोरिया बिस्तर समेट लिया है। इस कारोबार में कानूनी जटिलता को देखते हुए उन्होंने यह फैसला किया है।
दिवालिया कानून के तहत पूरी प्रक्रिया की रफ्तार भी लगातार धीमी होती जा रही है। वर्ष 2016 में जब कानून बना था, तब 270 दिनों में प्रक्रिया को पूरा करने का समय दिया गया था लेकिन आरबीआइ की ताजा रिपोर्ट बताती है कि मार्च, 2025 तक प्रक्रिया पूरी होने में 597 दिनों का समय लग रहा है।
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