एस.के. सिंह, नई दिल्ली। भारत मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में चीन की जगह लेता जा रहा है। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और नेशनल मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक मोबाइल फोन बनाने वाला देश बन चुका है। फोन के अलावा ऑटोमोबाइल और सेमीकंडक्टर सेक्टर में भी देसी-विदेशी कंपनियां यहां अपना मैन्युफैक्चरिंग बेस बना रही हैं। लक्ष्य 2025 तक जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 25% तक ले जाने का है। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के अनुसार भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर 2025 तक एक लाख करोड़ डॉलर का हो सकता है।

लेकिन कुछ स्याह तथ्य भी हैं। इन उपायों के बावजूद जीवीए (ग्रॉस वैल्यू एडेड) में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी कम हुई है। यह 2015-16 में 17.1% थी, जो 2020-21 में 14.5% रह गई। नवंबर में मैन्युफैक्चरिंग में 6.1% ग्रोथ रही, लेकिन उससे पहले अक्टूबर में 5.6% और अगस्त में 0.5% गिरावट भी हुई थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार मैन्युफैक्चरिंग की ग्रोथ पिछले साल के 9.9% के मुकाबले इस साल सिर्फ 1.6% रहने के आसार हैं। ऐसे में जागरण प्राइम ने विशेषज्ञों से बात कर यह जानना चाहा कि कमियां कहां हैं और उन्हें दूर करने के लिए 2023-24 के आम बजट में क्या किया जा सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार नई वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कंपनियां 'चाइना प्लस' की नीति अपना रही हैं। भारत को इसका पूरा फायदा उठाना चाहिए। नया बजट भारत को दुनिया की सबसे तेज इकोनॉमी बनाए रखने वाला बजट होना चाहिए। इसके लिए खपत और निवेश दोनों बढ़ाने पर फोकस करना पड़ेगा। निर्यात संगठन फियो के महानिदेशक और सीईओ डॉ. अजय सहाय के अनुसार, हमारी नीति यह होनी चाहिए कि चीन में जो नया निवेश नहीं हो रहा है या जो निवेशक वहां से निकल रहे हैं, उन्हें हम भारत कैसे लाएं।

इलेक्ट्रॉनिक्स पर टैरिफ घटाना फायदेमंद

इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) ने कई तरह के प्रोडक्ट और कंपोनेंट पर टैरिफ कम या खत्म करने की मांग की है। एसोसिएशन के चेयरमैन पंकज मोहिंद्रू ने जागरण प्राइम को बताया, “हाई-एंड ग्रे मार्केट 10 से 12 हजार करोड़ रुपये का है। इन पर सरकार को 4 से 5 हजार करोड़ रुपये के रेवेन्यू का नुकसान होता है। ग्रे मार्केट का सामान वैध तरीके से बिकेगा या आयात होगा तो सरकार का रेवेन्यू बढ़ेगा।” पीएलआई स्कीम के बारे में उन्होंने कहा कि कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, कंपोनेंट और वियरेबल्स पर भी पीएलआई दी जानी चाहिए। आईटी हार्डवेयर लैपटॉप, डेस्कटॉप के लिए इन्सेंटिव स्कीम के रिवीजन की जरूरत है।

मैन्युफैक्चरिंग के लिए निर्यात बढ़ाना जरूरी

हाल में मैन्युफैक्चरिंग में कमी का एक प्रमुख कारण निर्यात में गिरावट है। निर्यात संगठन फियो के महानिदेशक और सीईओ डॉ. अजय सहाय ने जागरण प्राइम से बातचीत में कहा, निर्यात में गिरावट को देखते हुए शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म, दोनों उपायों की जरूरत है। शॉर्ट टर्म उपाय के तहत कर्ज की लागत कम की जानी चाहिए। रिजर्व बैंक ने पिछले साल जो ब्याज दरें बढ़ाईं, उससे कर्ज काफी महंगा हो गया है। इंटरेस्ट इक्विलाइजेशन स्कीम में पहले एमएसएमई को 5% और अन्य को 3% की रियायत मिलती थी। जब ब्याज दरें कम हुईं तो इसे घटाकर क्रमश 3% और 2% कर दिया गया। इसे पुराने स्तर पर लाया जाना चाहिए क्योंकि अब कर्ज पर ब्याज की दर कोविड-19 से पहले से भी अधिक हो गई है।

उन्होंने बताया कि दूसरे देशों में मंदी की आशंका को देखते हुए एमएसएमई एक्सपोर्टर विदेश में मार्केटिंग नहीं करना चाहते। उन्हें लगता है कि मार्केटिंग के बावजूद तुरंत ऑर्डर नहीं मिलेंगे। ऐसे में जरूरी है कि उन्हें मार्केट में अपने प्रोडक्ट दिखाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। वे कहते हैं, “अगर खरीदार आपका प्रोडक्ट नहीं देख रहा है तो मंदी का दौर खत्म होने पर वह उसके पास सामान खरीदने जाएगा जिसके प्रोडक्ट का उसे अनुभव है।”

सहाय के मुताबिक समाधान के तौर पर सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग के लिए दो तरह की स्कीम ला सकती है। एक तो यह हो सकता है कि 2030 तक, जब निर्यात एक लाख करोड़ डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य है, तब तक मार्केटिंग के खर्च के लिए सरकार कोई स्कीम बनाए। दूसरा, मार्केटिंग पर होने वाले खर्च के बदले में टैक्स में छूट दी जा सकती है। उदाहरण के लिए, सिंगापुर में नियम है कि अगर किसी ने मार्केटिंग पर 100 डॉलर खर्च किया तो उसे 200 डॉलर का टैक्स डिडक्शन मिलता है। ऐसा ही कुछ प्रावधान भारत में भी किया जा सकता है।

भारत अपनी शिपिंग लाइन तैयार करे

सहाय के अनुसार लॉन्ग टर्म उपायों के तहत भारत को अपनी शिपिंग लाइन विकसित करनी चाहिए। पिछले साल हमने फ्रेट बिल के तौर पर 85 अरब डॉलर की रकम दूसरे देशों की कंपनियों को दी। निर्यात बढ़ने पर यह रकम 100-125 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है। भारत में अंतरराष्ट्रीय स्तर का शिपिंग लाइन बनने के कई फायदे होंगे। एक तो यह कि फ्रेट के तौर पर जो रकम हम विदेश भेजते हैं, उसमें बचत होगी। मान लीजिए 100 अरब डॉलर में से 25% हिस्सा भी भारतीय कंपनी को मिले तो 25 से 30 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा बचाई जा सकती है। अभी भारतीय निर्यातक पूरी तरह विदेशी शिपिंग लाइन पर निर्भर करते हैं। भारतीय शिपिंग लाइन होने पर उनकी निर्भरता कम होगी और विदेशी शिपिंग कंपनियां मनमाना रवैया नहीं अपना सकेंगी। सहाय कहते हैं, “यह हमारी आत्मनिर्भरता के लिए भी जरूरी है।”

ग्रमीण क्षेत्रों में मांग बढ़ाने के उपाय करने होंगे

डेलॉय इंडिया के पार्टनर और कंज्यूमर इंडस्ट्री लीडर पोरस डॉक्टर का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में कम मांग एफएमसीजी इंडस्ट्री के लिए चिंता की बात है। महंगाई और सप्लाई में कमी भी इसकी वजह है। वहां लोगों की आय बढ़ने पर खपत भी बढ़ेगी। फर्म की तरफ से जारी बजट उम्मीदों में उन्होंने लिखा है कि भारत का ग्रामीण FMCG बाजार 2025 तक 100 अरब डॉलर का हो सकता है। लेकिन इसके लिए वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने की जरूरत है। प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (PLI) और स्पेशल इकोनॉमिक जोन जैसी पहल से वेयरहाउस, ट्रांसपोर्टेशन और सड़क सुविधाएं बेहतर हो सकती हैं।

अभी तक मोबाइल फोन, सेमीकंडक्टर, टेक्नोलॉजी, टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल और फार्मा समेत 15 सेक्टर के लिए पीएलआई स्कीम घोषित की गई हैं। इन्हें 2.7 लाख से तीन लाख करोड़ रुपये का इन्सेंटिव मिलेगा। उद्योग चैंबर एसोचैम के अनुसार इससे रोजगार भी पैदा हुए हैं, इसलिए इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। चैंबर को बजट में पूंजीगत खर्च 10% बढ़ने की उम्मीद है। केंद्र सरकार ने 2022-23 में 10.68 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत खर्च का प्रावधान किया, जो जीडीपी का 4.1% है।

आरएंडडी पर खर्च बढ़ाना जरूरी

फियो के अजय सहाय कहते हैं, हमें रिसर्च एवं डेवलपमेंट पर फोकस करना होगा। भारत में आरएंडडी पर जीडीपी का 1% भी खर्च नहीं होता है। तुलनात्मक रूप से देखें तो दक्षिणी पूर्वी देश 3% खर्च करते हैं। दक्षिण कोरिया और इजरायल तो जीडीपी का 4.5% से 5% तक आरएंडडी पर खर्च करते हैं। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आरएंडडी पर निवेश में जोखिम अधिक होता है और नतीजे मिलने में भी समय लगता है। इसलिए इस सेक्टर को मदद की बहुत जरूरत है। सहाय के अनुसार इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सरकार का फोकस रहा है और इस बजट में भी वैसा ही रहने की पूरी उम्मीद है। इन्फ्रास्ट्रक्चर जितना बेहतर होगा, लॉजिस्टिक्स खर्च में उतनी कमी आएगी। पारदर्शिता के लिए उन्होंने डिजिटाइजेशन प्रक्रिया में तेजी लाने की बात भी कही।

सनराइज और श्रम सघन दोनों सेक्टर पर ध्यान जरूरी

फियो के सहाय के मुताबिक भारत को सनराइज (उभरते) और लेबर इन्टेंसिव दोनों सेक्टर को साथ लेकर चलना पड़ेगा। सनराइज सेक्टर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उनमें ग्लोबल ट्रेड बहुत बढ़ रहा है। दुनिया के कुल ट्रेड में 35% हिस्सा इलेक्ट्रिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स मशीनरी और ऑटोमोबाइल का है। इनका ग्लोबल बाजार सात लाख करोड़ डॉलर का है, लेकिन इसमें भारत की हिस्सेदारी 1% से भी कम है। लेबर इन्टेंसिव सेक्टर इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करते हैं। निर्यात में टेक्सटाइल, लेदर, जेम्स एंड ज्वैलरी जैसे श्रम सघन सेक्टर का हिस्सा धीरे-धीरे कम हो रहा है, लेकिन रोजगार के नजरिए से ये बड़े महत्वपूर्ण सेक्टर हैं।

डेलॉय इंडिया के एक सर्वे में 73% कंपनियों ने उम्मीद जताई कि बजट उनके सेक्टर को बढ़ावा देने वाला होगा। इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में 88%, कैपिटल गुड्स में 85%, टेक्सटाइल में 80% और फूड प्रोसेसिंग में 76% लोगों ने बजट में सकारात्मक कदमों की उम्मीद जताई।

औद्योगिक क्षेत्रों के विस्तार के लिए स्कीम लाई जाए

एमएसएमई संगठन फिस्मे (FISME) फिस्मे के अनुसार ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग अनिधिकृत क्षेत्रों में काम करने वाले गैर-पंजीकृत एमएसएमई करते हैं। उन्हें न तो बैंकों से कोई कर्ज मिल पाता है, न किसी सरकारी योजना का लाभ। मुश्किल से 10% MSME अधिकृत औद्योगिक क्षेत्रों में हैं। फिस्मे महासचिव अनिल भारद्वाज के अनुसार औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार करने और मौजूदा क्षेत्रों को युद्ध स्तर पर अपग्रेड करने की जरूरत है। इसके लिए एक व्यापक 'फाइनेंसिंग इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट स्कीम' लाई जा सकती है।

संगठन ने बैंकों के कामकाज में खामियों की बात कही है। उसका कहना है कि अगर मझोले और छोटे उद्यमी किसी बैंक के कामकाज से खुश नहीं है और बैंक बदलना चाहते हैं, तो कुछ निजी बैंक प्री-पेमेंट पर 4% तक पेनल्टी लगाते हैं। यह एमएसई कोड का उल्लंघन है। संगठन ने सरकार से इसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने की मांग की है।

फोनः भारत में नहीं बनने वाले पार्ट्स पर ड्यूटी खत्म हो

भारत 2014-15 में 80% स्मार्टफोन का आयात करता था। लेकिन 2021-22 में बिकने वाले 98.5% मोबाइल फोन देश में ही बने थे। हालांकि अब भी भारत दुनिया का सिर्फ 6 प्रतिशत फोन बना रहा है। ग्लोबल ट्रेड में भारत की हिस्सेदारी अभी सिर्फ 1.6% है। इससे पता चलता है कि भविष्य में कितनी गुंजाइश है। लेकिन भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने में कई मुश्किलें आ रही हैं।

ICEA के अनुसार इनपुट और कंपोनेंट पर जो टैरिफ है, वह लोकलाइजेशन बढ़ाने में बड़ी बाधा है। सिर्फ 2.75% टैरिफ का फायदा तो ज्यादा नहीं मिलता, लेकिन इससे मैन्युफैक्चरर्स की दिक्कतें बढ़ जाती हैं। इसके अलावा रेजिन, लेंस, स्पंज, फिल्म जैसे कच्चे माल (मेकैनिक्स) पर टैरिफ बहुत ज्यादा है। यह रेजिन पर 8.25% और अन्य रॉ मैटेरियल पर 16.5% है।

एसोसिएशन का कहना है कि इससे इंडस्ट्री गैर-प्रतिस्पर्धी हो रही है। मेकैनिक्स पर सभी तरह की ड्यूटी खत्म की जानी चाहिए। जो पार्ट्स भारत में नहीं बनते, उन पर ड्यूटी पूरी तरह खत्म करना बेहतर होगा। काउंटरवेलिंग डयूटी (CVD) उन्हीं प्रोडक्ट पर लगे जो भारत में भी बनते हैं। महंगे फोन पर 20% बेसिक कस्टम ड्यूटी जारी रहे, लेकिन इसकी अधिकतम सीमा 4,000 रुपये हो। इससे स्मगलिंग रुकेगी और जीएसटी कलेक्शन 1,000 करोड़ रुपये बढ़ सकता है। एसोसिएशन की शिकायत है कि इन पर लगने वाले आईजीएसटी का प्रोडक्ट पर जीएसटी रिफंड में समायोजन नहीं होता। इसलिए आईजीएसटी में काफी रकम फंसी हुई है।

टीवीः सेल और चिप पर ड्यूटी हटे

टीवी में ओपन सेल का हिस्सा लगभग 60% होता है। ओपन सेल में 85% कीमत सेल और चिप की होती है। ICEA का कहना है कि इस पर 5% ड्यूटी खत्म की जानी चाहिए। दरअसल, ओपन सेल के मामले में भारत आयात पर ज्यादा निर्भर है। यह ज्यादा पूंजी की जरूरत वाली इंडस्ट्री है। अभी इस पर इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर बन गया है। अभी मोबाइल फोन बनाने के लिए कैपिटल गुड्स पर ड्यूटी में छूट है। एसोसिएशन ने कंपोनेंट इंडस्ट्री पर भी यह छूट देने की मांग की है।

टैरिफ के कारण भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री कई मामलों में वियतनाम, थाइलैंड, मेक्सिको तथा अन्य कई देशों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रही है। इसलिए ICEA का कहना है कि फिनिश्ड प्रोडक्ट, सब-असेंबली और कंपोनेंट पर मौजूदा टैरिफ ढांचे की समीक्षा की जानी चाहिए। किसी भी इंडस्ट्री के लिए इनपुट पर टैरिफ में स्थिरता महत्वपूर्ण है। इसमें लगातार बदलाव से मैन्युफैक्चरर्स को परेशानी होती है। इसलिए एसोसिएशन ने कहा है कि कोई भी छूट कम से कम पांच साल के लिए होनी चाहिए।

टैक्सेशनः रिफंड और पेनल्टी में समानता हो

अभी असेसी कंपनी को रिफंड में देरी होने पर 0.5% की दर से ब्याज मिलता है, लेकिन जब असेसी टैक्स जमा करने में देर करता है तो उसे 1% प्रति माह की दर से पेनल्टी देनी पड़ती है। ICEA का कहना है कि दोनों में समानता होनी चाहिए। इसके अलावा रिफंड पर ब्याज टैक्सेबल होता है, जबकि पेनल्टी पर कोई डिडक्शन नहीं मिलता।

कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स (अपील) के फैसला सुनाने के लिए एक साल की अवधि की सिफारिश है। लेकिन इस समय सीमा में केस नहीं निपटने पर क्या होगा, इसका कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए मामले लंबे समय तक टलते रहते हैं। एसोसिएशन का कहना है कि अपील फाइल होने के दो साल के भीतर फैसले का प्रावधान होना चाहिए। नए कर्मचारी रखने पर कंपनी के लिए धारा 80JJAA के तहत डिडक्शन का प्रावधान है। लेकिन इसके लिए वेतन की सीमा 25,000 रुपये प्रतिमाह है, इसे बढ़ाकर 40,000 रुपये की जानी चाहिए।

GST: फोन, टीवी और एसी पर टैक्स का ढांचा बदले

पहले मोबाइल फोन पर जीएसटी 12% था, इसे मार्च 2020 में बढ़ाकर 18% किया गया। जीएसटी से पहले अनेक राज्यों में एक्साइज और वैट मिलाकर 6% था और औसत शुल्क 7.2% था। ICEA के अनुसार जीएसटी वापस 12% की जानी चाहिए। इससे ग्रामीण इलाकों में भी लोगों के हाथ में मोबाइल फोन पहुंचाने में मदद मिलेगी। 32 इंच से बड़े कलर टीवी पर 28% और इससे कम पर 18% जीएसटी है। भारत में 43 इंच के मॉडल की मांग ज्यादा है। ज्यादा टैक्स के कारण बड़ा ग्रे मार्केट बनता जा रहा है। इसलिए सभी आकार के टीवी पर 18% जीएसटी का प्रावधान किया जाना चाहिए। ICEA ने सभी तरह के एयर कंडीशनर पर भी जीएसटी की दर 28% से घटाकर 18% करने की मांग की है।

इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात बढ़ाने पर हो फोकस

इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ELCINA) का कहना है कि सरकार को निर्यात बढ़ाने पर फोकस करना चाहिए। भारत में प्रोडक्ट ज्यादा बनेंगे तो इकोनॉमी ऑफ स्केल का फायदा मिलेगा। वर्ष 2026 तक देश में सालाना 300 अरब डॉलर की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसने कुछ सुझाव दिए हैंः-

-300 अरब डॉलर के प्रोडक्ट में 40% यानी 120 अरब डॉलर के कंपोनेंट होंगे। भारत में अभी सिर्फ 10.7 अरब डॉलर के कंपोनेंट बनते हैं। आधी जरूरत भी देश से पूरी करें तो 60 अरब डॉलर के कंपोनेंट तैयार करने पड़ेंगे।

-सेमीकंडक्टर के लिए 2022 में 76,000 करोड़ रुपये की स्कीम घोषित की गई। अन्य इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट के लिए सरकार को 8 वर्षों तक हर साल एक अरब डॉलर का प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव देना चाहिए।

-इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट एवं सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग की प्रमोशन स्कीम (SPECS) को चार साल के लिए बढ़ाया जाए, इसके लिए 16,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाए। इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट में निवेश करने वाले वेंचर कैपिटल फंड को इनकम टैक्स में छूट मिले।

-मार्केट डेवलपमेंट फंड से इस इंडस्ट्री को मदद दी जाए। आरएंडडी बढ़ाने के लिए इनकम टैक्स में छूट हो। चुनिंदा प्रोडक्ट पर प्री तथा पोस्ट शिपमेंट एक्सपोर्ट क्रेडिट पर इंटरेस्ट इक्वलाइजेशन का लाभ मिले।

-10 किलो से अधिक क्षमता वाली वाशिंग मशीन पर आयात शुल्क 7.5% और ड्रायर पर 10% है, इसे 15% किया जाए क्योंकि ये प्रोडक्ट देश में भी बनते हैं। 32 से 55 इंच के एलईडी टेलीविजन पर जीएसटी की दर घटाकर 18% की जाए।