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    त्रिपुरसुंदरी मंदिर परिसर के विस्तार से सांस्कृतिक समृद्धता को मिलेगी नई पहचान, सांस्कृतिक रूप से भी जुड़ रहा है पूर्वोत्तर

    Updated: Mon, 22 Sep 2025 07:40 PM (IST)

    पूर्वोत्तर भारत में स्थित माता त्रिपुरसुंदरी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर प्रसाद परियोजना के अंतर्गत मंदिर परिसर का आधुनिकीकरण किया गया है। माता त्रिपुरसुंदरी के नाम पर ही इस स्थान का नाम त्रिपुरा पड़ा। मंदिर का विकास और सुविधा सुनिश्चित कर देश-विदेश से अधिक से अधिक श्रद्धालुओं को त्रिपुरा की ओर आकर्षित करना इस योजना का प्रमुख उद्देश्य था।

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    2021 में मंदिर को भव्यता प्रदान करने का कार्य शुरू हुआ (फाइल फोटो)

    बिप्लब कुमार देब। 51 शक्तिपीठों में पूर्वोत्तर भारत का माता त्रिपुरसुंदरी मंदिर एक प्रमुख शक्तिपीठ है। माता त्रिपुरसुंदरी को दस महाविद्याओं की अग्रणी देवी भी माना जाता है। आस्था और श्रद्धा का यह पुण्यस्थल और तीर्थाटन की विशाल संभावनाओं वाला धार्मिक पर्यटन केंद्र अब नये रूप में बन कर तैयार हो चुका है।

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    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर प्रसाद परियोजना के अंतर्गत 2021 में मंदिर परिसर आधुनिकीकरण तथा श्रद्धालुओं की सुविधा को प्राथमिकता देते हुए व मुख्य मंदिर और गर्भगृह को यथावत रखते हुए मंदिर को भव्यता प्रदान करने का कार्य शुरू हुआ।

    माता त्रिपुरसुंदरी के नाम पर ही इस स्थान का नाम त्रिपुरा पड़ा। इसीलिए माता त्रिपुरसुंदरी त्रिपुरा की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक पहचान भी हैं। ये मंदिर पूरे देश के हिंदू धर्मावलंबियों के लिए ही नहीं, बल्कि त्रिपुरा समेत पूर्वोत्तर के जनजातीय समाज व बांग्लाभाषी लोगों की आस्था व एकता का केंद्र हैं।

    भारतवर्ष में विभिन्न जातीय-धार्मिक व भाषाई समूह हैं। अलग-अलग विचारधाराओं व पूजा पद्धतियों को मानने वाले लोग रहते हैं। परंतु एक चुने हुए जनप्रतिनिधि के लिए आवश्यक है कि वो जनता की इच्छा-भावनाओं को प्राथमिकता दे। उनकी श्रद्धा-आस्था का सम्मान करें।

    परंतु मेरी स्मृति के अनुसार मुझे कभी याद नहीं आता कि कम्युनिस्ट पार्टी के शासन के दौरान उनके किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी माता त्रिपुरासुंदरी के मंदिर में जाकर दर्शन किए हों? जो जनप्रतिनिधि जनता की श्रद्धा, आस्था और त्रिपुरा की पहचान के प्रति सम्मान प्रदर्शित नहीं कर सके, उनकी सोच भी स्वभावतः जन विरोधी ही रही।

    जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं माता के मंदिर में पूजा करने और व उनके नवरूप का उद्धाटन करने आए। त्रिपुरासुंदरी का मंदिर एक ओर शांति, स्थिरता और जाति-जनजाति के मेल-मिलाप का संदेश देता है, तो दूसरी ओर तीर्थाटन के जरिए धार्मिक पर्यटन की संभावनाएँ आर्थिक विकास का मार्ग भी खोलती हैं, किंतु कम्युनिस्टों ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया।

    2018 में त्रिपुरा में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही प्रदेश में विशिष्ट पर्यटन संभावनाओं के विकास का रोडमैप तैयार हुआ।

    माता त्रिपुरेश्वरी मंदिर का विकास और सुविधा सुनिश्चित कर देश-विदेश से अधिक से अधिक श्रद्धालुओं को त्रिपुरा की ओर आकर्षित करना इस योजना का प्रमुख उद्देश्य था। मंदिर केवल आध्यात्मिक शक्ति व शांति का संदेश नहीं देता बल्कि इसमें प्रदेश की समृद्धि की भी अपार संभावना छिपी है। परंतु कम्युनिस्टों के लिए जनता की भावनाओं से अधिक उनकी विचारधारा ही महत्वपूर्ण रही और वो अपनी दूषित विचारधारा लोगों की आस्था, उनकी श्रद्धा व प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान पर थोपते रहे।

    वर्ष 2017–18 में आखिरी वाममोर्चा सरकार का बजट लगभग 15 हजार करोड़ था। परंतु आज 7 वर्षों में त्रिपुरा सरकार का बजट लगभग दोगुना हो चुका है। जनता को भ्रमित कर विकास को पीछे रखने की राजनीति करने वाले कम्युनिस्ट स्वयं ही पीछे रह गये। त्रिपुरा में लेफ्ट का शासन प्रदेश को अंधेरे व अराजकता में धकेलने के लिए याद किया जाएगा।

    मैं सौभाग्यशाली हूं कि मेरा जन्म माता त्रिपुरसुंदरी की पुण्यभूमि में हुआ। जब भी मैं माता के दर्शन करने गया तो मन में ये प्रश्न उठता कि आख़िर इतने विख्यात मंदिर का समुचित विस्तार क्यों नहीं किया गया? जनसुविधाएं क्यों नहीं बढ़ाई जा रहीं? और आख़िर हमारी त्रिपुरसुंदरी माता का परिसर देश के अन्य धार्मिक स्थलों की तरह भव्य और विशाल क्यों नहीं हो सकता ?

    शायद इसी कारण मन में हमेशा यह आकांक्षा भी रही कि किस प्रकार इस मंदिर का समुचित प्रचार-प्रसार हो, और इसके परिसर का विस्तार कर, विश्व स्तरीय सुविधाएं तैयार कर इस पावन धाम को भारत की सीमाओं से बाहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायी जाए। शायद इसीलिए माता की कृपा, त्रिपुरावासियों के आशीर्वाद और पार्टी के विश्वास से जब मुझे मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी मिली, तो माता त्रिपुरसुंदरी का मंदिर मेरी प्राथमिकताओं में शामिल रहा।

    7 जून 2018 को जब तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने त्रिपुरासुंदरी मंदिर परिसर के विकास की आधारशिला रखने हेतु राज्य का दौरा किया, तभी त्रिपुरा सरकार की ओर से इसे केंद्र सरकार की प्रसाद परियोजना में शामिल करने की मांग रखी गयी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों से वर्ष 2021 में मंदिर परिसर के विकास हेतु केंद्र सरकार की तरफ से 37.8 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए।

    जब मुझे बतौर संसद सदस्य त्रिपुरा की आवाज़ बनने का मौका मिला, तब भी मैने इस प्रोजेक्ट के लिए अतिरिक्त राशि की माँग की। वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मानिक साहा ने भी पूरी ऊर्जा के साथ इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया अंततः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में व राज्य की भाजपा सरकार के प्रयास से आज क़रीब 51 करोड़ रुपये की लागत से माता त्रिपुरासुंदरी मंदिर के नये स्वरूप का उद्घाटन संपन्न हो गया है।

    स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंदिर के इस विस्तारित हिस्से और आधुनिक सेवाओं का शुभारंभ किया है। ये पूर्वोत्तर भारत व यहां के निवासियों की आस्था व श्रद्धा के प्रति उनके सम्मान को प्रदर्शित करता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि जिस प्रकार काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उज्जैन के महाकाल कॉरिडोर व अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद वहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है, उसी प्रकार त्रिपुरा में भी देश और दुनिया से बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता त्रिपुरसुंदरी के दर्शनों के लिए आएंगे व पूर्वोत्तर भारत के साथ अपना जुड़ाव भी महसूस करेंगे।

    इसके अतिरिक्त उदयपुर में 97.70 करोड़ रुपये की लागत से 51 शक्तिपीठों के स्वरूप बनाए जा रहा है साथ ही क़रीब 180 करोड़ रुपये की लागत से सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व के कई स्थानों को विकसित करने का कार्य भी जारी है।

    ज़ाहिर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वोत्तर को सिर्फ सड़कों, रेल व हवाई नेटवर्क के ज़रिए नहीं जोड़ रहे हैं, वरन सांस्कृतिक रूप से भी जोड़ रहे हैं और नवरात्रि के प्रथम दिन त्रिपुरा व मां त्रिपुरसुंदरी के भक्तों के लिए उनका ये उपहार यही दर्शाता है।

    लेखक त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री हैं व वर्तमान में प्रदेश की त्रिपुरा पश्चिम लोकसभा सीट से सांसद हैं

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