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Gandhi Jayanti 2022: गुजरात की वह चर्चित घटना जब पत्नी से नाराज हो गए थे महात्मा गांधी, बातचीत तक हो गई थी बंद

Gandhi Jayanti 2022 गुजरात के आश्रम में अस्पृष्यता को लेकर महात्मा गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा से बेहद आहत हो गए थे। सितंबर 1915 में हुई इस घटना का जिक्र लेखक गिरिराज किशोर ने उपन्यास बा में भी किया है।

By Jp YadavEdited By: Published: Sun, 02 Oct 2022 11:57 AM (IST)Updated: Sun, 02 Oct 2022 12:09 PM (IST)
Gandhi Jayanti 2022: गुजरात की वह चर्चित घटना जब पत्नी से नाराज हो गए थे महात्मा गांधी, बातचीत तक हो गई थी बंद
Gandhi Jayanti 2022: महात्मा गांधी और कस्तूरबा की फाइल फोटो।

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। Gandhi Jayanti 2022: देश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले मोहनदास करमचंद गांधी को उनकी जयंती पर लोग याद कर रहे हैं।

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2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्में मोहनदास करमचंद गांधी के महात्मा गांधी बनने के बीच एक लंबा संघर्ष रहा है। इसमें महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा की भी अहम भूमिका रही है। यह अलग बात है कि कई बार दोनों के बीच मतभेद भी उभरे।

 गांधी भी स्वीकारते थे कस्तूरबा का योगदान

महात्मा गांधी की सफलता और उनके लंबे संघर्ष में पत्नी कस्तूरबा के योगदान को कभी नहीं नकारा जा सकता है। महात्मा गांधी भी कई बार यह मानते थे कि अगर कस्तूरबा गांधी का समर्पित सहारा नहीं मिलता तो वह इतने कामयाब कभी नहीं हो पाते।

 बेहद कम पढ़ी लिखी थीं कस्तूरबा

महात्मा गांधी जहां विदेश से वकालत की पढ़ाई करके आए थे, तो वहीं पत्नी कस्तूरबा की पढ़ाई बेहद कम थी। उस समय का समाज और परिस्थितियां ऐसी थीं कि लड़कियों के लिए अध्ययन एक सपना सरीखा हुआ था। ऐसे में महात्मा गांधी और कस्तूरबा के विचारों में अंतर था।

मतभेद हुए थे गांधी और कस्तूरबा में

परिवेश के चलते दोनों में यह अंतर आया था। यही वजह थी कि जब देशभर में अस्पृष्यता के खिलाफ महात्मा गांधी मुखर हुए तो शुरुआत में महात्मा गांधी और कस्तूरबा के बीच जाने-अनजाने और चाहे-अनचाहे मतभेद सामने आ गए। 

अहमदाबाद में बनाया था आश्रम

अस्पृष्यता के चलते महात्मा गांधी बेहद दुखी और चिंतित थे। वह यह भी जानते थे कि सदियों पुरानी इस मानसिकता को समाप्त करना आसान नहीं है। बावजूद इसके उन्होंने आश्रम बनने के साथ ही 9 सिद्धांत तय किए, जिनमें सत्य, अहिंसा, जिह्वा पर संयम, अपरिग्रह और चोरी का पूर्ण बहिष्कार। इसमें विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, निर्भयता और अस्पृष्यता का विरोध शामिल था। 

दलित परिवार भी आया आश्रम में

अहमदबाद में आश्रम के बनने के बाद महात्मा गांधी और कस्तूरबा के साथ सभी खुश थे। सितंबर, 2015 में मुंबई का एक ईमानदार और सम्मानित दलित परिवार आश्रम में रहने के लिए आया। पति-पत्नी के साथ एक बच्ची भी थी। वहीं, पति स्कूल में शिक्षक थे तो पत्नी विशुद्ध रूप से गृहिणी। नाम था दूधा भाई और दीना बेन।

दलित परिवार के आश्रम में आने से यहां का स्टाफ सहज नहीं था। यहां पर स्टाफ दीना बेन को रसोई में नहीं जाने देते थे। दूधा भाई को बाहर ही रोक लिया जाता था। बच्ची लक्ष्मी अगर बर्तन छू लेती तो दोबारा धोया जाता था। रसोई की भी धुलाई होती थी। महात्मा गांधी को यह समझते देर नहीं लगी कि इस पूरे प्रकरण में मगन लाल की पत्नी और कस्तूरबा दोनों शामिल थीं। 

गांधी से नजरें चुराने लगी थीं कस्तूरबा

कस्तूरा के आचरण से महात्मा गांधी इसलिए भी दुखी थे, क्योंकि वह दक्षिण अफ्रीका में रह चुकीं थी फिर भी अस्पृष्यता को मान्यता देना, समझ से परे था। उसी शाम महात्मा गांधी एक संक्षिप्त बैठक में कहा कि दलितों को आश्रम में रहने की मान्यता दे दी गई है। इस प्रसंग के बाद कस्तूरा आते-जाते महात्मा गांधी से नजरें चुराने से भी बचती थीं।

अचानक हो गया हृदय परिवर्तन

एक दिन बरामदे में बैठी कस्तूरबा की नजर दूधा भाई और दीना बेन की बेटी लक्ष्मी पर पड़ी। वह निश्चिंत भाव से वहां पर खेल रही थी। कस्तूरता सोच में पड़ गईं कि आश्रम में सब लोग उन्हें बा बुलाते है, तो वह इस बच्ची के प्रति वह इतना संकुचित कैसे हो गईं। उन्होंने पास जाकर लक्ष्मी को गले लगा लिया। उन्होंने खुद से सवाल किया और खुद जवाब पाया कि बापू ठीक हैं और वह गलती थी। इस प्रसंग का जिक्र गिरिराज किशोर के उपन्यास 'बा' में विस्तार से किया गया है।

दुनिया मानती है गांधी के अहिंसा के सिद्धांत को

20वीं और 21वीं सदी के वह ऐसे भारतीय थे, जिनके विचारों को देश के बाहर भी लोग मानते हैं और कोशिश करते हैं कि महात्मा गांधी के दिखाए-बताए मार्ग पर चल कर बेहतर इंसानी समाज और देश निर्मित किया जा सके। जब कोई संकट आता है तो उसके निदान के चरण में अहिंसा के मार्ग का जिक्र जरूर होता है।

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