Caste Survey: कर्नाटक हाईकोर्ट का जाति सर्वेक्षण पर रोक से इनकार, लेकिन क्यों लगाई ये शर्त?
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने अधिकारियों को डेटा का खुलासा ना करने और प्रतिभागियों को स्वैच्छिक जानकारी देने का आदेश दिया है। चीफ जस्टिस विभु बाखरू की खंडपीठ ने कहा कि सर्वेक्षण पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं है। कोर्ट ने डेटा को सुरक्षित रखने और सार्वजनिक नोटिफिकेशन जारी करने का निर्देश दिया है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण यानी जाति सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने अधिकारियों को इस प्रक्रिया में शामिल होने वालों से प्राप्त किसी भी डेटा का खुलास ना करने और प्रतिभागियों को इसकी जानकारी देने का आदेश दिया।
लाइवलॉ ने चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस सीएम जोशी की खंडपीठ के हवाले से कहा, "उपरोक्त के मद्देनजर, हम चल रहे सर्वेक्षण पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं पाते हैं।"
डेटा का खुलासा नहीं होगा- कोर्ट
कोर्ट ने कहा "हम इकठ्ठा किए गए डेटा का खुलासा किसी भी व्यक्ति को नहीं किया जाएगा। आयोग यह सुनिश्चित करे कि डेटा पूरी तरह सुरक्षित और गोपनीय रखा जाए। हम आयोग को एक सार्वजनिक नोटिफिकेशन जारी करने का निर्देश देते हैं कि इस सर्वे में स्पष्टीकरण स्वैच्छिक है और किसी भी व्यक्ति को कोई भी जानकारी देने को लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है साथ ही खुलासा की गई जानकारी स्वैच्छिक है।"
सर्वे में भाग लेना पूरी तरह स्वैच्छिक- कोर्ट
पीठ ने यह भी कहा कि सर्वे में खुलासा स्वौच्छिक होने की जानकारी शुरुआत में ही देनी होगी। यदि कोई प्रतिभागी इसमें शामिल होने से इनकार करता है तो अधिकारी प्रतिभागियों को जानकारी देने या मनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाएंगे। आयोग एक कार्यदिवस के अंदर एक हलफनामा दायर करेगा जिसमें इकठ्ठा किए गए आंकड़ों की गोपनीयता के लिए उठाए गए कदमों की स्पष्ट जानकारी होगी।
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