ग्रामीण बनाम शहरी विकास: खपत बढ़ी, आय में भी इजाफा; फिर क्यों गांव और शहर वालों की कमाई में है जमीन-आसमान का अंतर?
देश में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खपत और आय में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं लेकिन असमानता अभी भी एक चुनौती है। ग्रामीण क्षेत्रों में खपत तेजी से बढ़ी है लेकिन आय में स्थिरता की कमी है। क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने और संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण विकास योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है ताकि समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके।

जागरण टीम, नई दिल्ली। भारत बदल रहा है और तेजी से बदल रहा है। ग्रामीण और शहरी इलाकों में बदलते भारत की गुलाबी तस्वीर सहज देखी जा सकती है, लेकिन विकसित भारत का जो सपना हम सबने देखा है, उसके लिए इस बदलाव को और तेज-संतुलित किए जाने की जरूरत महसूस होती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, शहर हमारे समृद्धि के केंद्र हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में खपत की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है। लिहाजा शहर और गांव के विकास में संतुलन साधने की जरूरत है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में विकास का चक्र खपत की बड़ी और बढ़ी मांग पर ही निर्भर करता है। मत भूलिए आबादी का एक बड़ी हिस्सा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है।
लिहाजा शहर के साथ ही ग्रामीण इलाकों में बुनियादी सुविधाओं के साथ वहां के लोगों की आय बढ़ाने वाले उपक्रमों पर ध्यान देने की जरूरत है।
इस आशय के प्रतिकूल संसदीय समिति की यह रिपोर्ट उदासीन तस्वीर दिखाती है, जिसमें बताया गया है कि ग्रामीण विकास को समर्पित योजनाओं के आवंटन का 35 फीसद हिस्सा खर्च ही नहीं हो पाया है।
ऐसे में विकसित भारत के लक्ष्य को जल्दी हासिल करने में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के संतुलित विकास की पड़ताल आज बड़ा मुद्दा है।
शहरों की तुलना में गांवों में तेजी से बढ़ी खपत
पिछले दो दशकों में ग्रामीण और शहरी खपत दोनों में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। 1999-2,000 से 2022-23 के बीच शहरी खपत में 655 प्रतिशत का इजाफा हुआ है वहीं समान अवधि में ग्रामीण खपत 676 प्रतिशत बढ़ी है। ग्रामीण इलाकों में खपत की वृद्धि दर थोड़ा अधिक रही है। हालांकि, ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच असमानता काफी अधिक है।
गांव में तेजी से बढ़ी आय
भारतीय स्टेट बैंक की 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल के वर्षों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच अंतर कम हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति आय वृद्धि दर शहरी क्षेत्र से अधिक रही है। 2017-18 और 2021- 22 के बीच ग्रामीण क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय 13 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, वहीं समान अवधि में शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय 10.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। यह सकारात्मक संकेत है।
किस मोर्चे पर बनी हुई हैं चुनौतियां?
हालांकि, आय के मोर्चे पर ग्रामीण क्षेत्र में चुनौतियां बनी हुई हैं। कोविड 19 महामारी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ज्यादा प्रभावित किया है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के 2022 के एक अध्ययन के मुताबिक, महामारी के दौरान ग्रामीण परिवारों की आय में 20 प्रतिशत गिरावट आई है, वहीं शहरी इलाकों में 15 प्रतिशत गिरावट आई है।
इन वजहों से है असमानता
- आय में अंतर : शहरी क्षेत्रों में आम तौर पर आईटी, फाइनेंस और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ज्यादा सैलरी वाली नौकरियां देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरी या कारोबार से शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम कमाई होती है।
- रहने की लागत: शहरों में आवास, परिवहन और दूसरी सेवाओं पर खर्च अधिक होता है। ऐसे में शहरों में ज्यादा खर्च लोगों की मजबूरी बन जाती है।
- वस्तु एवं सेवाओं तक पहुंच: शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ता वस्तुओं एवं सेवाओं की व्यापक रेंज आसानी से उपलब्ध है। इसकी वजह से भी यहां लोग ज्यादा खर्च करते हैं।
- बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर : शहरी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन सहित दूसरी सुविधाओं के लिए बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर है। इससे लोगों जीवन की गुणवत्ता अच्छी है। ऐसे में इससे जुड़ी लागत भी अधिक है।
कहां हो रही ज्यादा खपत?
घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) के अनुसार अगस्त 2023 से जुलाई 2024 के दौरान गांव में रहने वाले लोगों की खपत एक वर्ष पहले के मुकाबले नौ प्रतिशत बढ़ी है, जबकि शहरों में रहने वाले लोगों की खपत में सिर्फ आठ प्रतिशत की ग्रोथ देखने को मिली है।
खपत की असमानता में गिरावट
ग्रामीण भारत में खपत का स्तर तेजी से बढ़ा है, जिससे खपत असमानता में कमी आई है। ग्रामीण और शहरी भारत में खपत का अंतर पहले की तुलना में घटा है। ग्रामीण क्षेत्रों का गिनी गुणांक 0.266 से घटकर 0.237 हो गया, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 0.314 से कम होकर 0.284 पर आ गया।
गिनी गुणांक किसी समाज में आय या खपत की असमानता को मापता है। इसमें गिरावट से यह संकेत मिलता है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खपत का वितरण अधिक संतुलित हुआ है।
बनी हुई है क्षेत्रीय असमानता
सर्वेक्षण में क्षेत्रीय असमानताएं स्पष्ट दिखीं । सिक्किम में सबसे अधिक मासिक व्यय ( ग्रामीण: 9,377 रुपये, शहरी : 13,927) दर्ज किया गया, जबकि छत्तीसगढ़ में यह सबसे कम (ग्रामीण: 2,739, शहरी: 4,927) है।
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