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    क्रिटिकल मिनरल्स में आत्मनिर्भर बनेगा भारत, पढ़ें क्या है मोदी सरकार का प्लान

    Updated: Sat, 09 Aug 2025 09:14 PM (IST)

    ट्रंप की शुल्क नीति ने वैश्विक कारोबार को बिगाड़ा है जिससे भारत क्रिटिकल मिनरल्स में आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। खनन मंत्रालय ने टाटा स्टील जेएसडब्लू वेदांता अदाणी और हिंडाल्को के साथ बैठक की है। सरकार निजी कंपनियों को सहूलियत देगी और कूटनीतिक प्रयास करेगी यहाँ तक कि विदेशों में विशेष अधिकारियों की नियुक्ति पर भी विचार किया जा रहा है।

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    क्रिटिकल मिनरल्स में देश को आत्मनिर्भर बनाना सबसे बड़ी प्राथमिकता।(फाइल फोटो)

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। ट्रंप की शुल्क नीति ने तो वैश्विक कारोबार के गणित को बिगाड़ दिया है लेकिन इसने बहुमूल्य धातुओं को लेकर भारत की सोच में भी भारी बदलाव कर दिया है। भारत सरकार क्रिटिकल मिनिरल्स में देश को आत्मनिर्भर बनने के काम को सर्वाधिक प्राथमिकता पर रखने का फैसला किया है।

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    पिछले हफ्ते खनन मंत्रालय ने इस उद्देश्य से खनन क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों टाटा स्टील, जेएसडब्लू, वेदांता, अदाणी, हिंडाल्को आदि के साथ उच्चस्तरीय बैठक की और इनसे वो सुझाव मांगे जो भारत को दुर्लभ खनिज आपूर्ति में देश को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाएंगे।

    केंद्रीय कोयला व खनन मंत्री जी कृष्णन रेड्डी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में प्राप्त सुझावों के आधार पर कई स्तरों पर सुधार किये जाने पर सहमति बनी है।

    भारत में नहीं हैं क्रिटिकल मिनरल्स के भंडार

    आगामी सुधारों के तहत निजी कंपनियों को इस सेक्टर में ज्यादा सहूलियत मिलेगी। इसके लिए खनन मंत्रालय और उद्योग व वाणिज्य मंत्रालय के अलावा विदेश मंत्रालय भी अहम इस कार्ययोजना में अहम भूमिका निभाने वाला है। चूंकि कई तरह से क्रिटिकल मिनरल्स ऐसे हैं जिनके भंडार भारत में नहीं है, उनकी आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई स्तरों पर कूटनीतिक प्रयास करने होंगे।

    इसके लिए खनन मंत्रालय का यह सुझाव है कि जिन देशों में इस तरह से धातु हैं वहां भारतीय दूतावासों में विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की जाए। ये अधिकारी दोनों देशों की सरकारों के साथ ही निजी कंपनियों के बीच एक पुल का काम करेंगे। वैसे पिछले एक वर्ष के दौरान दुर्लभ धातुओं का मुद्दा भारत की कूटनीति का एक अहम अंग हो चुका है।

    पीएम मोदी में कई देशों में उठाया दुर्लभ धातुओं के खनन का मुद्दा

    पिछले महीने पीएम नरेन्द्र मोदी जब घाना, अर्जेंटीना और नामीबिया की यात्रा पर गये थे तब वहां इन देशों की सरकारों के साथ जो वार्ता हुई उसमें दुर्लभ धातुओं के खनन व आपूर्ति का मुद्दा बहुत ही प्रमुखता से उठा। आस्ट्रेलिया और रूस जैसे अहम रणनीतिक साझेदार देशों के साथ मिल कर भी दुर्लभ धातुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने पर बातचीत काफी आगे बढ़ी है।

    मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार की तत्परता का पता आप इस तथ्य से लगा सकते हैं कि क्रिटिकल मिनरल्स से जुड़े शोध व अनुसंधान को लेकर पूरे देश में क्रांति की शुरुआत हो गई है।

    पिछले कुछ महीनों में क्रिटिकल मिनिरल्स से जुड़े पेटेंट देने की रफ्तार बढ़ हो गई है। जनवरी, 2025 में हमने नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन (एनसीएम) की घोषणा की जिसके तहत वर्ष 2030-31 तक 1000 नये पेटेंट हासिल करने का लक्ष्य रखा था।

    मई माह में 25 और जून माह में 41 पेटेंट दिए गए हैं। ये पेटेंट लिथियम, निकेल, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनेडियम, टैंटलम जैसे दुर्लभ धातुओं के क्षेत्र मे दिए गए हैं। ये शोध भारत को इलेक्टि्रक वाहनों और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।

    भारत ने 30 क्रिटिकल मिनरल्स की पहचान की है, जिनमें लिथियम, कोबाल्ट, निकल, ग्रेफाइट, टाइटेनियम, रेयर अर्थ एलिमेंट्स, बिस्मथ, तांबा, गैलियम, और टंगस्टन शामिल हैं। भारत अगर इन धातुओं के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं बनेगा तो पेट्रोलियम सेक्टर जैसी ही स्थिति हो सकती है। यानी भारत में रिफाइनिंग क्षमता तो बहुत होगी लेकिन कच्चे माल के लिए बाहर पर निर्भर रहना होगा।

    इससे रक्षा, सौर ऊर्जा व दूसरे स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रोनिक्स व अन्य उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों को विदेशों पर निर्भर रहना होगा। वर्तमान में भारत 60 से 80 फीसद दुर्लभ धातुओं (विशेष रूप से लिथियम, कोबाल्ट आदि) के लिए चीन पर निर्भर है।

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