जानें कहां से आया Vaccination शब्द और कब से हुई इसकी शुरुआत, है बेहद रोचक इतिहास
क्या आप जानते हैं कि Vaccination शब्द और कब और कहां से आया। कोरोना को लेकर दुनियाभर में आज टीके की खोज की जा रही है ऐसे में इसका रोचक इतिहास भी जानना जरूरी है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। National Vaccination Day 2020, कोरोना इंसानों के अस्तित्व पर भले ही संकट बना हो, लेकिन इंसान हमेशा से अपने अस्तित्व को लेकर बहुत सजग और सतर्क रहा है। मानव कल्याण या खुद के अस्तित्व को बरकरार रखने को जब-जब इसे जिस-जिस चीज की जरूरत महसूस हुई, उसकी खोज की। दिनों, महीनों और वर्षों भले ही लगे हों लेकिन हमारे खोजी विदों का प्रयास रंग लाया है। और इंसानियत जिंदाबाद रही है। चीन से पैदा हुआ कोरोना वायरस महामारी बन चुका है।
दहशत में दुनिया
दुनिया भर में इस बीमारी को लेकर भय व्याप्त है। अमेरिका सहित कई देश और बड़ी दवा कंपनियां दवा और टीके की ईजाद में रात-दिन एक किए हैं। भारी खर्च और बड़ी मशक्कत के बाद भी रास्ता नहीं सूझ रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसकी दवा बनाने में फिलहाल अभी महीनों का वक्त लगेगा जबकि टीका अगले साल ही तैयार हो पाएगा। पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक कहावत है, जिसमें कोई पूछता है कि सेठ, हल्दी क्या भाव है? जवाब मिलता है कि जैसा चोट में दर्द हो?
अथक मशक्कत के बाद तैयार हुए टीके
किसी बीमारी के टीके की अहमियत अब दुनिया को पता चल रही है। वर्तमान में ऐसी तमाम बीमारियां हैं जिनके टीके अथक मशक्कत के बाद तैयार हुए। दशकों से उनके इस्तेमाल से हम सुरक्षित रहे हैं। कई महामारियों का नामोनिशां इन्हीं के बूते मिटाया जा चुका है। फिर भी हम टीकाकरण के प्रति अन्यमनस्क रहते हैं। दलील देते हैं कि फलाने के जमाने में कौन सा टीका होता था। सब खाने-कमाने के धंधे हैं। जनाब, अगर आपकी भी यही सोच है तो इसे बदलिए। टीकाकरण के बूते ही आज शिशु और मातृ मृत्युदर में बहुत कमी पाईकब जा चुकी है।
वरदान बना बच्चों का टीकाकरण
बच्चों के लिए टीकाकरण तो एक तरह से वरदान साबित हो रहा है। कल राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस है। 1995 में इसी दिन पोलियो की पहली खुराक पिलाई गई थी। लिहाजा कोरोना से सबक लेते हुए आज ही अपने स्वजनों को उनके लिए जरूरी टीके जरूर दिलाएं। ऐसे में आधुनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में टीके की अहमियत की पड़ताल आज सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
कब हुई टीकाकरण की शुरुआत
माना जाता है कि वास्तविक रूप से टीकाकरण का इतिहास अंग्रेज चिकित्सक एडवर्ड जेनर के समय से शुरू होता है। 1976 में जेनर ने पाया कि जो महिलाएं डेयरी उद्योग में काम करती हैं और वे काऊपॉक्स से संक्रमित होती है, लेकिन उन्हें चेचक नहीं होता। अपनी अवधारणा को साबित करने के लिए उन्होंने फार्म में काम करने वाले एक युवा के बाएं हाथ में चीरा लगाकर उसे काऊपॉक्स के विषाणुओं से संक्रमित कर दिया। हालांकि इस लड़के को चेचक नहीं हुआ। इस बात की पुष्टि होने के बाद उन्होंने चेचक का टीका बनाया। यह बीमारी उन दिनों महामारी बनकर लाखों लोगों का जीवन असमय निगल जाती थी।
पाश्चर का सिद्धांत
वैक्सीनेशन शब्द लैटिन भाषा के वैक्सीनस से बना है। जिसका अर्थ होता है गाय या उससे संबंधित। 18वीं सदी के उत्तराद्र्ध में फ्रांस के महान माइक्रोबॉयोलाजिस्ट लुई पाश्चर ने जर्म थ्योरी ऑफ डिजीज दी। इसी बुनियाद पर उन्होंने चिकेन पॉक्स, कॉलरा, रैबीज और एंथ्रेक्स के टीके विकसित किए।
ऐसे काम करता है टीका
टीका प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करके शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली को सक्रिय करने का काम करता है। इसके चलते जब बाहरी रोग शरीर में घुसने की कोशिश करता है तो हमारी प्रतिरक्षी तंत्र उसे मार भगाता है। अगर उसके खात्मे में अक्षम साबित होता है तो कम से कम उसके असर को कम कर देता है। ज्यादातर टीके वायरल रोगों से निपटने के लिए तैयार किये जाते हैं लेकिन कुछ का निर्माण कैंसर के इलाज और रोकथाम में भी किया जाता है। सांप काटने के इलाज के अलावा नशामुक्ति के लिए भी टीके तैयार होते हैं।
टीकों का विज्ञान
वायरल रोग जिनके चलते होते हैं उन पैथोजेन को एंटीजेन कहा जाता है। मानव शरीर इन एंटीजेन से लड़ने के लिए एक खास किस्म का प्रोटीन बनाता है जिसे एंटीबॉडी कहते हैं। यही एंटीबॉडी एंटीजेन का काम तमाम करने में सक्षम होता है। शुरुआत में शरीर में एंटीबॉडी के निर्माण की गति धीमी होती है। हमारे शरीर में एंटीबॉडी के निर्माण की दर और पैथोजेन के पुनर्उत्पादन की रफ्तार में जो जीतता है, वही विजयी होता है। यानी अगर एंटीबॉडी पैथोजेन की तुलना में ज्यादा बन रही है तो आप बीमार नहीं होते हैं, लेकिन अगर हालात प्रतिकूल हैं तो आपको बीमार होने में देर नहीं लगेगी।
एक्टिव इम्युनिटी
इंसान के शरीर में जब एंटीबॉडी तैयार होते हैं तो उसी के साथ दूसरी कोशिकाएं भी बनती हैं जिन्हें मेमोरी सेल्स कहा जाता है। ये मेमोरी सेल्स व्यक्ति के रक्त और लिंफ (लसीका) में लंबे समय तक परिसंचरित होते रहते हैं। ऐसे में अगर किसी पैथोजेन का शरीर पर हमला होता है तो ये कोशिकाएं बहुत त्वरित गति से बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी तैयार करती हैं। लिहाजा रोग के लक्षण प्रकट होने से पहले ही पैथोजेन का खात्मा हो जाता है। इसे ही एक्टिव इम्युनिटी (सक्रिय प्रतिरक्षा) कहते हैं और ये लंबे समय बाद खत्म होती है।
पैसिव इम्युनिटी
प्रतिरक्षा तंत्र का यह दूसरा प्रकार है। यह शरीर में सुशुप्त अवस्था में विद्यमान रहती है लेकिन जब कोई बाहरी उत्प्रेरक खुराक के रूप में इसे मिलती है तो यह जाग्रत या सक्रिय हो जाती है। प्राकृतिक रूप से मां का दूध या किसी अन्य कृत्रिम उपाय से इसकी सक्रियता वापस लाई जा सकती है। कृत्रिम उपायों में ही टीका एक है।
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