'एक नकारात्मक टिप्पणी ही जज के जबरन रिटायरमेंट के लिए काफी', गुजरात HC का सख्त संदेश
गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि न्यायाधीश के खिलाफ एक भी प्रतिकूल टिप्पणी अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए काफी है। कोर्ट ने जे.के. आचार्य की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिन्हें 2016 में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया गया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यायाधीश को ईमानदार और उच्च नैतिक मूल्यों वाला होना चाहिए।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुजरात हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि किसी न्यायाधीश के खिलाफ एक भी प्रतिकूल टिप्पणी या उसकी ईमानदारी पर सवाल उठना अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए पर्याप्त है।
कोर्ट ने साफ किया कि न्यायाधीश को पूर्ण ईमानदार और उच्च नैतिक मूल्यों वाला होना चाहिए, क्योंकि वह जनता के 'विश्वास का पद' संभालता है।
यह टिप्पणी मंगलवार को जस्टिस ए.एस. सुपेहिया और एल.एस. पिरजादा की खंडपीठ ने दी, जब उन्होंने 2016 में 18 सत्र न्यायाधीशों के साथ अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए गए जे.के. आचार्य की याचिका खारिज कर दी।
कोर्ट ने कहा कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति कोई सजा नहीं है, बल्कि यह जनहित में लिया गया फैसला है। इसके लिए न्यायाधीश को शो-कॉज नोटिस जारी करना भी जरूरी नहीं है। आचार्य ने 2016 में हाई कोर्ट के पूर्ण कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।
'एक टिप्पणी ही काफी, सबूत जरूरी नहीं'
हाई कोर्ट ने कहा कि किसी न्यायाधीश की सामान्य प्रतिष्ठा के आधार पर भी उसे अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया जा सकता है, भले ही उसके खिलाफ ठोस सबूत न हों। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि एक भी गोपनीय प्रतिकूल टिप्पणी या संदिग्ध ईमानदारी अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आधार बन सकती है। पदोन्नति या उच्च वेतन-स्तर का लाभ भी इस फैसले को प्रभावित नहीं करता।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट का पूर्ण कोर्ट, जिसमें सभी जजों की सामूहिक राय शामिल होती है, इस तरह के फैसले लेने में सर्वोच्च है। इसकी समीक्षा केवल सीमित आधारों पर ही हो सकती है।
'न्यायाधीश का पद जनता का विश्वास का होता है'
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि न्यायाधीश का पद जनता के विश्वास का प्रतीक है। उसे निष्पक्ष, बौद्धिक रूप से ईमानदार और उच्च नैतिकता वाला होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र और कानून के शासन को मजबूत करने के लिए न्यायिक प्रणाली का मजबूत होना जरूरी है।
यदि कोई न्यायाधीश इन मानकों का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई या जनहित में अनिवार्य सेवानिवृत्ति हो सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कई बार संदिग्ध ईमानदारी को साबित करने के लिए ठोस सबूत जुटाना मुश्किल होता है, लेकिन हाई कोर्ट की प्रशासनिक समिति और पूर्ण कोर्ट का निर्णय अंतिम होता है।
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