कमला पर डूडल: IISC में नहीं मिला था दाखिला, सीवी रमन की 4 शर्तों पर PHD करने वाली बनीं पहली भारतीय महिला
112th Birth Anniversary Kamala Sohonie बड़ौदा शहर के एक मशहूर और बहुत पढ़े-लिखे खानदान की बेटी कमला का जन्म 18 जून 1912 में हुआ था। उनके पिता नारायण राव भागवत और चाचा माधव राव भागवत मुंबई के प्रेसीडेंसी कॉलेज से केमिस्ट्री ऑनर्स ग्रैजुएट थे।

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। 112th Birth Anniversary Kamala Sohonie: कमला सोहोनी के पिता चाहते थे कि उनके घर की बेटी आगे चलकर मैडम क्यूरी की तरह नामी वैज्ञानिक बने। कमला ने उस दौर में कई चुनौतियों का सामना करते हुए अपने पिता का सपना पूरा भी किया। वो पहली महिला थी, जिन्होंने साइंस में पीएचडी कर भारत में इतिहास रच दिया था।
बड़ौदा शहर के एक मशहूर और बहुत पढ़े-लिखे खानदान की बेटी कमला का जन्म 18 जून, 1912 में हुआ था। उनके पिता नारायण राव भागवत और चाचा माधव राव भागवत, मुंबई के प्रेसीडेंसी कॉलेज से केमिस्ट्री ऑनर्स ग्रैजुएट थे। पढ़े-लिखे पिता ने अपनी बेटी को भी अपने जैसा बनाने की ठानी। बचपन से ही पढ़ाई में होशियार रही कमला ने अपनी ग्रेजुएशन मुंबई विश्वविद्यालय से केमिस्ट्री में किया।
साइंस के सबसे उत्तम संस्थान में किया अप्लाई
कमला ने ग्रेजुएशन के बाद मास्टर्स के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में अप्लाई किया। उस समय नोबेल विजेता वैज्ञानिक सर सीवी रमन इस संस्थान के डायरेक्टर थे। उस दौर में सभी सुविधाओं से लैस इस संस्थान में कई वैज्ञानिक काम करना चाहते थे। कमला भी इन्हीं में से एक थी। मुंबई विश्वविद्यालय में ज्यादा अंक हासिल होने के बाद, कमला को पूरा यकीन था कि सीवी रमन उन्हें अपने संस्थान में रिसर्च का मौका जरूर देंगे।
जब वह दौर महिलाओं के लिए था कठोर
कमला को नहीं पता था कि भले ही वह कितना भी अंक हासिल कर ले, एक महिला होने के कारण उन्हें संस्थान में प्रवेश नहीं मिलेगा। पिता और चाचा के बार-बार निवेदन करने के बावजूद सीवी रमन ने साफ कह दिया था कि वह इस संस्थान में किसी भी महिला को प्रवेश नही देंगे। कहा जाता है कि सीवी रमन जो एक बार कह देते थे, तो वहीं होता था।
कमला ने हार नहीं मानी थी, वो जानना चाहती थी कि सीवी रमन उन्हें संस्थान में एडमिशन क्यों नहीं देना चाहते? वह रमन से मिलीं और उनसे सवाल-जवाब किया। रमन को आखिरकार कमला की जिद के आगे झुकना पड़ा। कमला को संस्थान में एडमिशन तो मिल गया लेकिन कुछ कड़े नियमों और शर्तों के साथ।
क्या थी शर्त?
- कमला को बतौर रेग्युलर कैंडिडेट अनुमति नहीं दी जायेगी
- कमला को अपने गाइड के निर्देशों पर देर रात काम करना होगा
- कमला लैब का माहौल नहीं बिगाड़ेंगी
- एक साल तक कमला के काम को देखा जाएगा और बाद में उनके भविष्य का फैसला लिया जाएगा
जब कमला ने बदली सीवी रमन की सोच
22 वर्षीय कमला ने शिक्षा के लिए सारी शर्तें मान ली पर इससे उन्हें गहरी ठेस पहुंची थी। कड़ी मेहनत करते हुए एक साल के भीतर ही कमला को नियमित छात्रा माना गया और इसी के साथ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस संस्थान के दरवाजे महिलाओं के लिए भी खोल दिए गए। यह उस दौर में महिलाओं के लिए काफी बड़ी सफलता थी। कमला के बाद जिन तीन महिलाओं को रमन के रिसर्च सेंटर में दाखिला मिला, उनमें शामिल थीं - अन्ना मणि, ललिता चंद्रशेखर और के. सुनंदाबाई।
दूध, दाल और लेग्युम प्रोटीन्स पर किया रिसर्च
कमला ने शिक्षक श्रीनिवास के मार्गदर्शन में अपना पहला काम दाल, दूध और लेग्युम प्रोटीन्स को लेकर किया। 1936 में कमला ने अपना रिसर्च जमा किया और डिस्टिंकशन के साथ मास्टर्स की डिग्री हासिल की। इसी के साथ कमला को कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में रिसर्च करने का मौका मिला।
1938 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से डेरेक रिक्टर के साथ उनका रिसर्च पेपर पब्लिश हुआ। 1939 में उन्होंने दिल्ली के लेडी हार्डिंग कॉलेज में बायोकेमिस्ट्री डिपार्टमेंट के हेड के रूप में काम किया। बाद में वह कुन्नूर में न्यूट्रिशन रिसर्च इंस्टीट्यूट में सह-अध्यक्ष बनकर विटामिन को लेकर काम किया। उनके काम को लेकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा। 1969 में वह अपने काम से रिटायर हुई और 1998 में उनका दिल्ली में निधन हो गया।
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