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    Rani Laxmibai: सौंदर्य और साहस थी रानी की पहचान, 29 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी आजादी की आखिरी जंग

    By Shalini KumariEdited By: Shalini Kumari
    Updated: Sun, 18 Jun 2023 01:00 AM (IST)

    Rani Laxmibai Death Anniversary 18 जून 1858 की सुबह लक्ष्मीबाई अपनी आखिरी जंग के लिए तैयार हुई और अंग्रेजों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई थीं। हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर लोगों में अलग-अलग मत है लेकिन लॉर्ड कैनिंग की रिपोर्ट को विश्वसनीय माना जाता है।

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    Rani Laxmibai Death Anniversary: अंग्रेजों से लोहा लेकर वीरगति को प्राप्त हुई थी रानी लक्ष्मीबाई।

    नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। Rani Laxmibai Death Anniversary। 'बुंदेले हरबोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो, झांसी वाली रानी थी',  हम सबका बचपन इन्हीं कविताओं को पढ़ते और वीरांगनाओं की गाथाएं सुनते हुए बीता है। ऐसे में आज हम बात करेंगे असाधारण व्यक्तित्व की धनी और अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति रहीं झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई की। जिन्होंने अंतिम क्षण तक अंग्रेजों के खिलाफ कभी न हार मानने वाला युद्ध लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुईं। जीते जी उन्होंने अंग्रेजों को अपने गढ़ पर कब्जा नहीं करने दिया था।

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    शादी के बाद मिला रानी लक्ष्मीबाई नाम

    रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 में बनारस के एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था, जिन्हें प्यार से मनु बुलाया जाता था। 1842 में मनु की शादी झांसी के महाराजा गंगाधर राव नेवलेकर से कर दी गई। शादी के बाद मणिकर्णिका का नाम लक्ष्मीबाई पड़ा था।

    पति और बेटे के मौत के बाद संभाला साम्राज्य

    विवाह के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वो केवल चार महीने ही जीवित रह पाया। इसके बाद मानो लक्ष्मीबाई की किस्मत ही बदलने लगी। दरअसल, शादी के 11 साल बाद महाराजा का भी निधन हो गया था। पति और बेटे को खोने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने ठान ली थी  कि वे अपने साम्राज्य और साम्राज्य के लोगों की रक्षा करेंगी।

    झांसी पर कब्जा करने की फिराक में रहे अंग्रेज

    झांसी के महाराजा की मृत्यु के समय भारत में ब्रिटिश इंडिया कंपनी का वायसराय डलहौजी थी, उसको लगा कि यह झांसी पर कब्जा करने का सबसे बेहतर समय है, क्योंकि वहां रक्षा करने के लिए और जंग लड़ने के लिए कोई नहीं है। इसके बाद उसने रानी लक्ष्मीबाई से बातचीत का दौर शुरू किया।

    दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी बनाना अंग्रेजों को अस्वीकार

    लगातार अंग्रेजी सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। रानी लक्ष्मीबाई को यह समझ आ गया था कि इस समय अंग्रेजी हुकूमत की नजर झांसी पर है, तो उन्होंने महाराजा गंगाधर के चचेरे भाई दामोदर को अपना दत्तक पुत्र बना लिया।

    रानी लक्ष्मीबाई के सामने रखी पेशकश

    अंग्रेजी हुकूमत ने दत्तक पुत्र दामोदर को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और लक्ष्मीबाई के खिलाफ हो गए। अंग्रेजी हुकूमत ने झांसी की रानी को सालाना 60000 रुपये पेंशन लेने और झांसी का किला उनके हवाले करने को कहा।

    अंग्रेजों के खिलाफ बनाई बागियों की फौज

    रानी लक्ष्मीबाई को समझ आ गया था कि अंग्रेज अब बल प्रयोग करके उनके साम्राज्य पर कब्जा करने की कोशिश करेगी। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने के लिए गुलाम गौस खान, दोस्त खान, खुदा बख्श, काशी बाई, लाला भाई बख्शी, मोती बाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह के साथ मिलकर 14000 बागियों की एक बड़ी फौज तैयार कर ली। इस फौज में शामिल काशी बाई बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखती थी।

    रानी ने अंग्रेजों के सामने झुकने से किया इनकार

    रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से भिड़ना नहीं चाहती थी, लेकिन उन्होंने अपने मन में ठान ली थी कि किसी भी परिस्थिति में वो अपनी झांसी अंग्रेजी हुकूमत को नहीं सौपेंगी। माना जाता है कि अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई से निहत्थे मिलने को कहा था, ताकि वे बातचीत कर सके, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई को भरोसा नहीं हो रहा था। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से मिलने से इनकार कर दिया।

    दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधकर मैदान-ए-जंग में उतरी मर्दानी

    23 मार्च, 1858 को ब्रिटिश फौजों ने झांसी पर आक्रमण कर दिया और 30 मार्च को भारी बमबारी की मदद से अंग्रेज किले की दीवार में सेंध लगाने में सफल हो गए। इसके बाद 17 जून, 1858 को रानी लक्ष्मीबाई अपनी आखिरी जंग के लिए निकली। हालांकि, इस दौरान उन्हें पता नहीं था कि यह रात उनकी आखिरी रात होगी। इस दौरान रानी लक्ष्मीबाई अपने पीठ पर अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधकर जंग के लिए निकल गई। इस दौरान उनकी और अंग्रेजों के साथ काफी जंग हुई।

    रानी की मौत को लेकर कई मत

    दरअसल, रानी लक्ष्मीबाई के मौत को लेकर काफी असमंजस बना रहता है, लेकिन फिल भी लॉर्ड कैनिंग की रिपोर्ट पर सबसे ज्यादा लोग एकमत होते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, रानी को एक सैनिक ने पीछे से गोली मारी, इसके बाद जब वह अपने घोड़े को मोड़ती है और उस सैनिक पर गोली चलाती हैं, लेकिन वो बच जाता है। इसके बाद वह सैनिक अपनी तलवार से रानी लक्ष्मीबाई की हत्या कर देता है।