चीन की पहल के बाद गलवन में हालात हुए बेकाबू, विश्वास बहाली के लिए कुछ कदम उठाने जरूरी
गलवन में हुई घटना के बाद दोनों देशों के बीच दोबारा विश्वास बहाली एक बड़ी चुनौती है। एक्सपर्ट की राय के मुताबिक इसकी पूरी कोशिश की जानी चाहिए।
नई दिल्ली (एएनआई)। गलवन की घटना के बाद भारत की जनता के बीच चीन को लेकर गुस्सा काफी बढ़ गया है। वहीं चीनी मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर श्रीकांत कोंडपल्ली ने इस बढ़ते तनाव के बीच कहा कि दोनों ही देश पूरी दुनिया में एक अहम भूमिका निभाते हैं। पूरी दुनिया में इनकी अपनी अहमियत है। दोनों के पास है बड़ी ताकतवर सैन्य शक्ति और एक कुशल नेतृत्व है। दोनों ही देशों को अपने विवादित मुद्दों को सुलझाने के लिए किसी तीसरे देश की जरूरत नहीं है। उनके मुताबिक चीन की सेना की पहल के बाद गलवन में हालात बेकाबू हुए जिसकी वजह से दोनों तरफ से सैनिक मारे गए। इन हालातों से निपटा जा सकता था यदि चीन की तरफ से उन तय बिंदुओं को कठोरता से लागू किया जाता तो सैन्य अधिकारियों की वार्ता के बाद सामने आए थे।
प्रोफेसर कोंडपल्ली का कहना है कि भारत और चीन के बीच सीमा पर बढ़ता तनाव इस बात का सुबूत है कि दोनों देशों के बीच इसको लेकर की गई वार्ता विफल रही है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास बढ़ाने को शुरू किए गए कदम भी नाकाफी साबित हुए हैं। उन्होंने कहा कि विवाद को गहराने से ज्यादा बेहतर है कि दोनों ही देश सबसे पहले इस पूरी घटना की जांच करवाएं और ये जानने की कोशिश करें कि आखिर उस दिन क्या हुआ था। इसके आधार पर ही जरूरत के मुताबिक आगे कदम बढ़ाएं।
उन्होंने कहा कि इस घटना ने साबित किया है कि दोनों देशों के बीच 1993, 1996 और 2013 में हुए समझौतों के तहत आपसी विश्वास कायम करने के जो प्रयास किए गए थे वो विफल रहे हैं। इसका ही परिणाम है जो गलवन की घटना के दौरान देखने को मिला है। 6 जून को भी दोनों ही देशों के बीच अधिकारी स्तर की वार्ता के जरिए इस विवाद को सुलझाने की कोशिश की गई थी लेकिन इसको चीन की तरफ से सही तरह से लागू नहीं किया जा सका। इसका परिणाम गलवन में दिखाई दिया है।
उनके मुताबिक यदि दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली को कुछ दूसरे कदम भी उठाने की जरूरत हो तो वो भी किया जाना चाहिए। उनका ये भी कहना था कि दोनों देशों के बीच शांति कायम रखने के लिए दोबारा कमांडर स्तर की बातचीत होनी भी जरूरी है। इसमें सफल होने के बाद डिप्लोमेटिक चैनल के माध्यम से बातचीत की जानी चाहिए। इसके बाद आगे के बारे में सोचना चाहिए। उनके मुताबिक चीन की तरफ से भी 40-45 जवानों की मौत की बात सामने आ रही है जो ये बताने के लिए काफी है कि ये काफी बड़ी घटना थी। उन्होंने ये भी कहा है कि इस बात की भी जांच की जानी चाहिए कि सैन्य अधिकारियों की वार्ता के बाद तय बिंदुओं को लागू क्यों नहीं किया गया। ऐसी क्या दिक्कतें सामने आईं जिनकी वजह से ये लागू नहीं किए जा सके।
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