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    अम्मा कैंटीन हो या अन्नपूर्णा रसोई... सब्सिडी वाली ज्यादातर सरकारी कैंटीन क्यों बंद हो गईं?

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 07:39 PM (IST)

    पिछले 15 सालों में भारत में कई राज्यों ने शहरी गरीबों के लिए सब्सिडी वाली कैंटीन योजनाएं शुरू कीं, जिसकी शुरुआत तमिलनाडु की अम्मा कैंटीन से हुई। हालां ...और पढ़ें

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    देश में सब्सिडी वाली कैंटीनों का हाल। (फाइल फोटो)

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    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पिछले करीब 15 सालों में भारत भर में कई राज्य सरकारों ने शहरी गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों, प्रवासियों, छात्रों और महिलाओं को सस्ता, पौष्टिक खाना देने के मकसद से सब्सिडी वाली या मुफ्त खाने की कैंटीन योजनाएं शुरू कीं। इन्हें बहुत धूमधाम से शुरू किया गया और गरीबों के लिए कल्याणकारी समाधान के तौर पर पेश किया गया।

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    इस तरह की योजनाओं की जब समीक्षा की गई तो एक पैटर्न सामने निकलकर आया है कि या तो ज्यादातर कैंटीन बंद हो गईं या फिर इनमें भारी कटौती की गई, नहीं तो जब सरकार बदली तो वित्तीय दबाव, लॉजिस्टिक्स की चुनौतियों या पॉलिसी में बदलाव का हवाला देते हुए उन्हें बंद कर दिया गया।

    अम्मा कैंटीन से हुई शुरुआत

    सबसे शुरुआती और सबसे प्रभावशाली मॉडलों में से एक तमिलनाडु का अम्मा उनावगम (अम्मा कैंटीन) था, जिसे 2013 में AIADMK सरकार के तहत लॉन्च किया गया था। एक रुपये से 5 रुपये में खाना देने वाली इस योजना ने पूरे देश का ध्यान खींचा और दूसरे राज्यों में भी इसी तरह के प्रयोगों को प्रेरित किया।

    इसके बाद कर्नाटक में इंदिरा कैंटीन, दिल्ली ने आम आदमी कैंटीन (जन आहार), हरियाणा में अंत्योदय आहार योजना, मध्य प्रदेश में दीनदयाल रसोई और आंध्र प्रदेश में अन्ना कैंटीन शुरू की गई। महाराष्ट्र, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ ने भी शहरी केंद्रों में कम लागत वाली कम्युनिटी किचन के अलग-अलग मॉडल शुरू किए।

    Amma's Canteen serving breakfast and lunch at rock-bottom rates turns out  to be a huge hit in Tamil Nadu - India Today

    बड़े पैमाने पर सब्सिडी वाली फूड कैंटीन योजना शुरू करने वाला पहला भारतीय राज्य तमिलनाडु था। लेकिन इसे पहला राज्य क्यों माना जाता है? जानते हैं इसके पीछे की वजह:

    हालांकि भारत में लंबे समय से पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) और मिड-डे मील जैसे वेलफेयर फूड प्रोग्राम चल रहे हैं, लेकिन अम्मा कैंटीन पहला राज्य द्वारा चलाया जाने वाला शहरी कैंटीन नेटवर्क था जो आम जनता खासकर शहरी गरीबों, प्रवासी मजदूरों और दिहाड़ी मजदूरों को बहुत कम कीमत पर खाने के लिए तैयार पका हुआ खाना देता था।

    एक रुपये में इडली, सांभर चावल/ दही चावल 5 रुपये में। अम्मा कैंटीन की सफलता और लोकप्रियता ने अगले दशक में कई राज्यों कर्नाटक, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य को इसी तरह की सब्सिडी वाली कैंटीन योजनाएं शुरू करने के लिए प्रेरित किया।

    हालांकि, बाद की ज्यादातर योजनाएं बंद कर दी गईं या उनका आकार छोटा कर दिया गया, जिससे तमिलनाडु भारत में इस आधुनिक सब्सिडाइज्ड शहरी फूड-कैंटीन मॉडल का शुरुआती पॉइंट बन गया।

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    किन-किन राज्यों में खोली गई कैंटीन और क्या है स्टेटस?

    2013 में तमिलनाडु योजना:

    • अम्मा उनावगम (अम्मा कैंटीन)
    • सरकार: AIADMK
    • मुख्यमंत्री: जे. जयललिता
    • महत्व: भारत की पहली बड़े पैमाने पर शहरी सब्सिडी वाली पके हुए खाने की कैंटीन बाद की योजनाओं के लिए राष्ट्रीय मॉडल बनी

    2016 में राजस्थान

    • योजना: अन्नपूर्णा रसोई योजना
    • सरकार: बीजेपी
    • मुख्यमंत्री: वसुंधरा राजे
    • मॉडल: अम्मा कैंटीन से प्रेरित मोबाइल फूड वैन

    2017 में कर्नाटक

    • योजना: इंदिरा कैंटीन
    • सरकार: कांग्रेस
    • मुख्यमंत्री: सिद्दरमैया
    • कवरेज: पहले बेंगलुरु, बाद में पूरे राज्य में विस्तार किया गया

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    2017 में हरियाणा

    • योजना: अंत्योदय आहार योजना
    • सरकार: बीजेपी
    • उद्देश्य: शहरी गरीबों के लिए 10 रुपये में भोजन
    • स्थिति: शुरुआती सालों के बाद बड़े पैमाने पर कम कर दिया गया

    2018 में आंध्र प्रदेश

    • योजना: अन्ना कैंटीन
    • सरकार: TDP
    • मुख्यमंत्री: एन. चंद्रबाबू नायडू
    • स्थिति: 2019 में सरकार बदलने के बाद बंद कर दिया गया

    2018 में मध्य प्रदेश

    • योजना: दीनदयाल रसोई योजना
    • सरकार: बीजेपी
    • मुख्यमंत्री: शिवराज सिंह चौहान
    • स्थिति: कुछ शहरों में सीमित रूप में जारी है

    2018 में तेलंगाना

    • योजना: अन्नपूर्णा कैंटीन (GHMC द्वारा संचालित)
    • सरकार: TRS (अब BRS)
    • कवरेज: मुख्य रूप से हैदराबाद
    • स्थिति: महामारी के बाद कई यूनिट बंद हो गईं

    2019 में दिल्ली

    • स्कीम: जन आहार / आम आदमी कैंटीन
    • सरकार: AAP
    • मुख्यमंत्री: अरविंद केजरीवाल
    • स्टेटस: पायलट प्रोजेक्ट, बाद में बंद कर दिया गया

    2019 में महाराष्ट्र

    • स्कीम: शिव भोजन थाली
    • सरकार: BJP-शिव सेना
    • मॉडल: कैंटीन के बजाय थाली सिस्टम
    • स्टेटस: फंडिंग में बदलाव के साथ रुक-रुक कर जारी है

    2020 में राजस्थान (बदला हुआ नाम)

    • योजना का नाम बदलकर: इंदिरा रसोई योजना कर दिया गया है
    • सरकार: कांग्रेस
    • मुख्यमंत्री: अशोक गहलोत

    2024 में राजस्थान (फिर से नाम बदला गया)

    • योजना का नाम: श्री अन्नपूर्णा रसोई योजना
    • सरकार: बीजेपी
    • मुख्यमंत्री: भजनलाल शर्मा
    • स्थिति: अभी भी चालू है

    धीरे-धीरे बंद होती गईं योजनाएं

    हालांकि, इन योजनाओं को बनाए रखना मुश्किल साबित हुआ। बढ़ती खाने की महंगाई, राज्य के बजट पर सब्सिडी का बोझ, मजबूत मॉनिटरिंग की कमी और राजनीतिक अस्थिरता के कारण धीरे-धीरे ये योजनाएं बंद हो गईं।

    कई कैंटीन तो चुपचाप बंद कर दी गईं, वेंडरों को पेमेंट नहीं मिला और इंफ्रास्ट्रक्चर को छोड़ दिया गया। 2010 के दशक के आखिर और 2020 के दशक की शुरुआत तक, ऐसी कई योजनाएं या तो बंद हो चुकी थीं या सिर्फ कागजों पर ही रह गईं।

    अन्नपूर्णा रसोई योजना अपवाद

    इस पृष्ठभूमि में राजस्थान की अन्नपूर्णा रसोई योजना एक दुर्लभ अपवाद के तौर पर सामने आती है। राजस्थान में पूर्व वसुंधरा राजे सरकार द्वारा शुरू की गई सब्सिडी वाली कैंटीन योजना को अन्नपूर्णा रसोई योजना कहा जाता था। इसे 15 दिसंबर, 2016 को तमिलनाडु की "अम्मा कैंटीन" की तर्ज पर शुरू किया गया था।

    इसका मकसद गरीब और जरूरतमंद लोगों, जैसे रिक्शा चलाने वाले, मजदूरों, ऑटो ड्राइवरों, छात्रों और काम करने वाली महिलाओं को बहुत कम कीमत पर अच्छी क्वालिटी का और पौष्टिक खाना देना था।

    नाश्ता 5 रुपये प्रति प्लेट मिलता था, जबकि दोपहर और रात का खाना 8 रुपये प्रति प्लेट मिलता था। इसे लागू करने के लिए खास मोबाइल वैन का इस्तेमाल किया गया। मेन्यू में नाश्ते के लिए पोहा, उपमा, इडली-सांभर और दोपहर और रात के खाने के लिए दाल-चावल, दाल-ढोकली और पारंपरिक राजस्थानी व्यंजन शामिल थे।

    Annapurna Rasoi (Government of Rajasthan), 1384, Nakul Path, Lal Kothi  Scheme, Lalkothi, Jaipur, Rajasthan 302015, India,

    दूसरी जगहों की ऐसी ही योजनाओं के उलट, यह प्रोग्राम राजनीतिक बदलावों के बावजूद चलता रहा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली अगली कांग्रेस सरकार ने 2020 में इसका नाम बदलकर इंदिरा रसोई योजना कर दिया।

    फिर जनवरी 2024 में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली मौजूदा भाजपा सरकार ने इसका नाम फिर से बदलकर श्री अन्नपूर्णा रसोई योजना कर दिया। यह योजना अभी भी चालू है, खाने की चीजों और सब्सिडी के स्ट्रक्चर में कुछ बदलाव किए गए हैं और यह गरीब लोगों को खाना खिलाना जारी रखे हुए है।

    एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?

    पॉलिसी एक्सपर्ट्स का कहना है कि सब्सिडी वाली कैंटीन का हश्र एक बड़ी गवर्नेंस चुनौती को दिखाता है। कल्याणकारी योजनाएं जिनमें लगातार वित्तीय मदद की जरूरत होती है, वे अक्सर दोनों पार्टियों के समर्थन के बिना फेल हो जाती हैं। राजस्थान के मॉडल में कुछ दिक्कतें हैं लेकिन दिखाता है कि सामाजिक कल्याण के इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाए रखने के लिए सिर्फ घोषणा नहीं, बल्कि निरंतरता जरूरी है।

    जैसे-जैसे ज्यादातर सरकारी कैंटीनें पॉलिसी के इतिहास का हिस्सा बनती जा रही हैं, यह बहस बनी हुई है कि क्या ऐसी योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाना चाहिए या फिर उनके एक और थोड़े समय के राजनीतिक वादे बनकर रह जाने का खतरा है।

    Source: इस खबर को बनाने में हमने अपने समाचार पत्र दैनिक जागरण एवम् वेबसाइट पर प्रकाशित खबरों की जानकारी को संदर्भ के रूप में उपयोग किया है।

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