Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    1896 में भारत में महामारी बना था प्‍लेग, 1897 में पहली बार देश में बना था कोई टीका

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Mon, 16 Mar 2020 10:51 AM (IST)

    भारत में चेचक को रोकने के लिए टीका ब्रिटेन से मंगाया गया था। इसके बाद 1897 में पहली बार प्‍लेग का टीका देश में ईजाद हुआ था।

    1896 में भारत में महामारी बना था प्‍लेग, 1897 में पहली बार देश में बना था कोई टीका

    नई दिल्‍ली (जेएनएन)। 19वीं सदी के दौरान भारत में वायरस जनित रोगों से निपटने के कदम तेज हुए। इसके तहत वैक्सीनेशन को बढ़ावा दिया गया, कुछ वैक्सीन संस्थान खोले गए। कॉलरा वैक्सीन का परीक्षण हुआ और प्लेग के टीके की खोज हुई। बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में चेचक के टीके को विस्तार देने, भारतीय सैन्य बलों में टायफाइड के टीके का परीक्षण और देश के कमोबेश सभी राज्यों में वैक्सीन संस्थान खोलने की चुनौती रही। आजादी के बाद बीसीजी वैक्सीन लैबोरेटरी के साथ अन्य राष्ट्रीय संस्थान स्थापित किए गए। 1977 में देश चेचक मुक्त हुआ। टीकाकरण का विस्तारित कार्यक्रम (ईपीआइ) का श्रीगणेश 1978 में हुआ। सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम 1985 में शुरू हुआ। भारत 2012 में पोलियो मुक्त घोषित किया गया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सधी शुरुआत

    चेचक वैक्सीन लिंफ की पहली खुराक मई 1802 में भारत पहुंची। तत्कालीन बंबई के तीन वर्षीय अन्ना दुस्थाल को भारत में पहली बार 14 जून, 1802 में इसकी पहली खुराक पिलाई गई। तब से लेकर वैक्सीन के प्रभावी गुणों के बारे में लोगों को जागरूक करने का जो सिलसिला चल रहा है। 1827 में बांबे सिस्टम ऑफ वैक्सीनेशन शुरू किया गया। इसके तहत वैक्सीनेशन करने वाले लोग एक जगह से दूसरी जगहों की यात्रा करने लगे। देश में करीब दो तिहाई टीकाकरण इसी तरीके से होने लगा शेष एक तिहाई डिस्पेंसरी प्रणाली से होता है। चेचक को महामारी बनने से रोकने के लिए 1892 में अनिवार्य टीकाकरण कानून पारित हुआ। 1850 तक चेचक का टीका भारत में ग्रेट ब्रिटेन से आयात किया जाता था। वैक्सीन की किल्लत आई तो 1832 और 1879 में क्रमश: बंबई और मद्रास में चेचक के टीके के विकास का प्रयास हुआ लेकिन कामयाबी मिली 1880 में।

    कॉलरा वैक्सीन का परीक्षण

    ब्रिटिश सरकार की सिफारिश पर भारत सरकार ने डॉ हॉफकाइन के उस अनुरोध को स्वीकार किया जिसमें उन्होंने कॉलरा के वैक्सीन के परीक्षण की अनुमति मांगी थी। 1893 में हॉफकाइन ने आगरा में परीक्षण किया। यह सफल रहा। 1896 में भारत में प्लेग महामारी फैली। इसी ने एपीडेमिक एक्ट 1896 बनाने में भूमिका निभाई। डॉ हॉफकाइन से सरकार ने टीका विकसित करने का अनुरोध किया। मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज में उन्हें लैब के लिए दो कमरे दिए गए। 1897 में प्लेग की वैक्सीन बनी। यह देश में बनने वाली पहली वैक्सीन थी। 1899 तक इस लैब को प्लेग लैबोरेटरी कहा गया। 1905 में इसका नाम बांबे बैक्टीरियोलॉजिकल लैब हुआ और 1925 में नाम बदलकर हॉफकाइन इंस्टीट्यूट किया गया।

    वैक्सीन मैन्युफैक्र्चंरग

    बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों तक कम से कम चार वैक्सीन (चेचक, कॉलरा, प्लेग और टायफाइड) की देश में सुलभता सुनिश्चित हो चुकी थी। चेचक वैक्सीन लिंफ 1890 में शिलांग में भी तैयार होने लगा। 1904-05 में सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट हिमाचल प्रदेश के कसौली में स्थापित हुआ। 1907 में दक्षिण भारत के कूनूर में पाश्चर इंस्टीट्यूट स्थापित हुआ। इस संस्थान ने 1907 में न्यूरॉल टिश्यू एंटी रैबीज वैक्सीन तैयार किया। बाद में यहीं से एनफ्लूएंजा, पोलियो की ओरल खुराक भी तैयार की गई।

    ट्यूबरकुलोसिस से जंग

    1948 में टीबी को महामारी जैसा माना गया। इससे लड़ने के लिए मद्रास और तमिलनाडु में बीसीजी वैक्सीन लैबोरेटरी स्थापित की गई। अगस्त 1948 में पहली बीसीजी वैक्सीनेशन किया गया। 1962 में शुरू हुए राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम का बीसीजी वैक्सीनेशन हिस्सा बना। आजादी के बाद 1977 तक देश की वैक्सीन निर्माता इकाईयों में डीपीटी, डीटी, टीटीर ओपीवी जैसे टीके बनने लगे। तब से लगातार अपने ईपीआइ और यूआइपी कार्यक्रमों के तहत तेज टीकाकरण के माध्यम से चेचक, पोलियो जैसे कई रोगों का भारत उन्मूलन कर चुका है।

    ये भी पढ़ें:- 

    जानें क्‍यों मुश्किल है कोरोना वायरस का टीके को विकसित करना, क्‍या कहते हैं एम्‍स के निदेशक 

    जानें कहां से आया Vaccination शब्‍द और कब से हुई इसकी शुरुआत, है बेहद रोचक इतिहास 

    भारत में Coronavirus का थर्ड फेज शुरू होने में अभी है 30 दिन, हालात पर पाया जा सकता है काबू 
    Coronavirus: चूहों की कमी के चलते विकसित नहीं हो पा रही है कोरोना की दवा! दहशत में दुनिया

    Coronavirus के इलाज को लेकर उड़ रही अफवाहों के चक्‍कर में पड़े तो पड़ जाएंगे लेने के देने 

    comedy show banner
    comedy show banner