विशेषज्ञों ने दी सलाह- कृषि कर्ज माफी का बोझ किस्तों में बांटकर उतारें राज्य
इंडिया रेटिंग के मुताबिक कर्ज माफी को लागू करने का तरीका सभी राज्यों में अलग-अलग रहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। किसानों की कर्ज माफी का बढ़ता चलन राज्यों की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करेगा। कुछ विशेषज्ञ एजेंसियों की राय है कि इसके भुगतान को दो से तीन साल की अवधि में बांटकर खजाने पर इसके असर को कम किया जा सकता है। एजेंसियों का मानना है कि एक ही वर्ष में बोझ उतारने से न केवल सरकार का घाटा बढ़ जाएगा बल्कि उसके पूंजीगत व्यय में भी काफी कटौती हो जाएगी।
इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च का मानना है कि किसान कर्ज माफी के राजकोषीय असर से बचने के लिए इसकी घोषणा करने वाले राज्यों को टुकड़ों में इसका भुगतान करना होगा। हालांकि जानकार किसान कर्ज माफी को स्थितियों से निपटने का सही उपाय नहीं मानते हैं। हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान ने किसान कर्ज माफी की घोषणा की है। इनके अतिरिक्त साल 2014 के बाद से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक की सरकारें भी किसान कर्ज माफी की घोषणा कर चुकी हैं।
इंडिया रेटिंग के मुताबिक कर्ज माफी को लागू करने का तरीका सभी राज्यों में अलग-अलग रहा है। साल 2015 में आंध्र प्रदेश ने 430 अरब रुपये और तेलंगाना ने 170 अरब रुपये का कर्ज माफ किया था। इन दोनों राज्यों ने कर्ज माफी का प्रबंधन करने के लिए इसके भुगतान को अगले चार वर्षो में बांट दिया। इसके भुगतान की अंतिम किस्त राज्य सरकारों ने साल 2018 में अदा की।
इनके विपरीत उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक ने इसी वर्ष किसान कर्ज माफी का एलान किया है। इनमें से उत्तर प्रदेश और पंजाब ने किसान कर्ज माफी को साल 2018 के बजट का हिस्सा बनाया। लेकिन महाराष्ट्र और कर्नाटक ऐसा नहीं कर सके। इससे स्पष्ट है कि इन दोनों राज्यों को इसके संसाधन जुटाने के लिए अतिरिक्त राजस्व का इंतजाम करना होगा या इन्हें अपने खर्चो में कमी करनी होगी।
इंडिया रेटिंग का मानना है कि अगर सरकारें खर्च में कमी का विकल्प चुनती हैं तो पूंजीगत खर्च यानी विकास योजनाओं पर होने वाले खर्च पर पहली मार पड़ेगी। इसका अर्थ यह होगा कि खर्च में कमी का फैसला करने वाले राज्य सामाजिक स्कीमों पर कम खर्च करेंगे। इंडिया रेटिंग के मुताबिक महाराष्ट्र और कर्नाटक के बजट के आकलन से स्पष्ट है कि इन दोनों राज्यों ने यही व्यवस्था अपनाई।
उत्तर प्रदेश और पंजाब को भी अपने पूंजीगत खर्चो में कमी करनी पड़ी। इंडिया रेटिंग का मानना है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के पास चालू वित्त वर्ष के केवल चार महीने बचे हैं। इसलिए इनके लिए किसान कर्ज माफी का आंध्र प्रदेश और तेलंगाना मॉडल ही मुफीद साबित होगा।