लाल आतंक के 'गढ़' पर वार, पत्थर मन को लोहे की तरह पिघलाकर गढ़ रहे हैं 'नव जीवन'
गढ़चिरौली के लायड्स मेटल्स प्लांट में 80 से अधिक पूर्व माओवादी अब सामान्य जीवन जी रहे हैं। सुरेश हिचामी, गोविंदा अटला, प्रमिला बोधा और जानो हेडो जैसे ...और पढ़ें

ओमप्रकाश तिवारी, गढ़चिरौली। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के घने जंगलों के बीच बसे 'लायड्स' के परिसर में कदम रखते ही आपको अहसास होगा कि यहां सिर्फ धरती से लोहा निकालकर, गलाकर उसे सुघड़ता के साथ अलग-अलग आकार नहीं दिया जा रहा है, बल्कि बंदूक की भाषा कहने वाले माओवादियों के दिलों को पिघलाकर तराशा जा रहा है।
मशीनों की अनवरत घड़-घड़ के बीच इन्हें फिर से गढ़ा जा रहा है। इन्हीं में से एक हैं 40 वर्षीय सुरेश चमरू हिचामी। इस स्टील प्लांट में काम करने वाले सुरेश अकेले आत्मसमर्पित माओवादी कार्यकर्ता नहीं हैं। उनके जैसे 80 से अधिक लोग यहां काम करते हुए अब अपनी सामान्य जिंदगी जी रहे हैं।
इकहरी काया और मझोले कद के सुरेश को गढ़चिरौली के अत्याधुनिक लायड्स मेटल्स एंड एनर्जी लिमिटेड (एलएमईएल) में काम करते हुए देखकर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता कि कुछ वर्ष पहले तक ये माओवादी संगठनों के लिए खतरनाक हथियार लाने-ले जाने का काम करते थे।
कभी माओवादियों के लिए कूरियर का काम करने वाले सुरेश वर्ष 1999 में संगठन में भर्ती हुए थे। सही-गलत का अहसास दिलाने वाला कोई नहीं था। बहन की शादी एक पुलिसकर्मी से हुई। बहनोई को शक होने लगा। बहन और परिवार के भविष्य की खातिर सुरेश मुख्यधारा में लौट आए।
लोहे के छल्ले बनाने वाले धनोरा तहसील के 30 वर्षीय गोविंदा सामजी अटला ने 10वीं तक पढ़ाई की है। स्कूल से निकले तो सूझ नहीं रहा था कि क्या करें। कुछ युवकों के बहकावे में आकर माओवादी संगठन में शामिल हो गए। हथियारों की ट्रेनिंग लेकर दलम की गतिविधियों में भाग लेने लगे। 12 साल बाद माता-पिता के खातिर आत्मसमर्पण किया।
कैंटीन में काम करने वाली सावरगांव की 31 वर्षीया प्रमिला बोधा का काम था बैठक, नुक्कड़-नाटक और संगीत के जरिये जल, जंगल, जमीन के बहाने गांवों के भोले-भाले एवं गरीब परिवारों के युवाओं को संगठन से जोड़ना। वर्ष 2023 में पिता की मृत्यु के बाद आत्मसमर्पण किया।
भामरागढ़ के कोडते गांव की रहने वाली 30 वर्षीया जानो साइनो हेडो तो बाकायदा हथियारों की ट्रेनिंग लेकर नौ साल माओवादी आपरेशंस में सक्रिय रहीं, लेकिन बेटा-बेटी के भविष्य के खातिर पति के साथ मुख्यधारा में लौट आईं। अब बेटी नौवीं में पढ़ती है। बेटा चार साल का है।
अभी कंपनी में 80 कर्मचारी हैं, जो पूर्व में माओवादियों की गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। आत्मसमर्पण के बाद उन्हें प्रशिक्षित कर क्षमतानुसार काम सौंपा गया है। सभी ईमानदार, अनुशासित और प्रतिबद्ध हैं। सरकार चाहेगी तो और भी लोगों को प्रशिक्षित कर काम पर रखने को तैयार है।
14 एकड़ भूमि पर विकसित की जा रही है कालोनी
हिंसा का रास्ता छोड़ लौटे माओवादियों को बसाने के लिए गढ़चिरौली के पुलिस मुख्यालय एवं जिलाधिकारी कार्यालय से मुश्किल से एक किलोमीटर दूर 14 एकड़ भूमि पर एक ऐसी कालोनी विकसित की जा रही है, जहां वे सभी अपना ‘नया जीवन’ शुरू कर रहे हैं।
वर्तमान में यहां 171 घर हैं। कुछ लोग लायड मेटल्स के कोनसारी प्लांट में काम करने जाते हैं, तो कुछ लोग गढ़चिरौली में ही कुछ दूसरे काम भी करके अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। सभी परिवारों के बच्चे स्कूल जाते हैं।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।