केंद्र और यूपी का सहयोग बना RRTS की सफलता का आधार, प्रमुख शहरों में बढ़ी रैपिड ट्रेन की मांग
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में सबसे पहले शहरी परिवहन के लिए रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) के रूप में एनसीआर के शहरों को आपस में जोड़ने के लिए इस तरह के माध्यम की परिकल्पना की गई थी लेकिन इसे धरातल पर उतरने में 25 साल लग गए।

मनीष तिवारी, नई दिल्ली। दिल्ली-मेरठ के बीच रैपिड रेल के प्राथमिकता वाले खंड में नमो भारत ट्रेन का संचालन शुरू होने के साथ अब शहरी परिवहन के लिए ऐसे ही कॉरिडोर की मांग देश के कई हिस्सों में उठने लगी है। इनमें दक्षिण भारत के राज्य सबसे आगे हैं, लेकिन ऐसी परियोजनाएं तब पूरी होती हैं जब राज्य सरकारें सहयोग के लिए तैयार हों।
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में सबसे पहले शहरी परिवहन के लिए रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) के रूप में एनसीआर के शहरों को आपस में जोड़ने के लिए इस तरह के माध्यम की परिकल्पना की गई थी, लेकिन इसे धरातल पर उतरने में 25 साल लग गए।
देखिए प्रोजेक्ट की टाइम लाइन
योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार ने अगर 2017 से इस प्रोजेक्ट में नहीं दिखाई होती तो नमो भारत अभी भी दूर की कौड़ी होती। इस प्रोजेक्ट की टाइम लाइन के अहम पड़ावों की अगर बात की जाए तो 2006 में एक टास्कफोर्स का गठन हुआ, इसके तीन साल बाद परियोजना के लिए 2009 में स्पेशल पर्पज वेहिकल का गठन किया गया, अगले साल डीपीआर के लिए एजेंसी का चयन किया गया, 2011 में केंद्र सरकार ने अपनी सैद्धांतिक सहमति दी, 2013 में एनसीआर परिवहन निगम अस्तित्व में आया, 2019 में पीएम ने शिलान्यास किया और इसके चार साल बाद पीएम ने दिल्ली-मेरठ के प्राथमिकता वाले खंड का उद्घाटन कर दिया।
पीएम ने अपने संबोधन में क्या कहा?
उद्घाटन के दौरान पीएम ने अपने संबोधन की शुरुआत ही विकास के लिए राज्यों और केंद्र के मिलकर काम करने की बात की और पहले चरण में दो और कारिडोर दिल्ली-गुरुग्राम-अलवर और दिल्ली-पानीपत पर काम तेज होने की सूचना दी। माना जा रहा है कि पीएम की ओर से इन तीनों कारिडोर का जिक्र किए जाने के बाद ये सभी प्रोजेक्ट गति पकड़ेंगे। ऐसी ट्रेनों के प्रति लोगों में आकर्षण स्वाभाविक है, लेकिन सवाल यह है कि दिल्ली-मेरठ कारिडोर पर ही काम क्यों आगे बढ़ सका, जबकि 2011 में डीपीआर इन तीनों कारिडोर के लिए बना था।
मई में मिली परियोजना को मंजूरी
एनसीआरटीसी एक संयुक्त उपक्रम है, जिसमें 50 प्रतिशत केंद्र की हिस्सेदारी है और शेष 50 प्रतिशत में चार राज्य दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा 12.5-12.5 प्रतिशत के हिस्सेदार हैं। शेष दोनों कारिडोरों पर कोई खास काम नहीं हो सका, जबकि 2017 में योगी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने तेजी से काम करते हुए मई में इस परियोजना को मंजूरी प्रदान कर दी।
इसके बाद केंद्र सरकार ने भी 2019 में अपनी मंजूरी दे दी। लेकिन बाकी के दोनों कारिडोरों को संबंधित राज्य सरकारों ने 2020 तक मंजूरी ही नहीं दी, जिससे वे आगे ही नहीं बढ़ सके। केवल इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने समय पर न केवल अपने हिस्से का पैसा जारी किया, बल्कि जमीन अधिग्रहण का कठिन काम भी किया। दिल्ली के मामले में तो सुप्रीम कोर्ट को अर¨वद केजरीवाल सरकार से यह कहना पड़ा कि वह परियोजना के लिए अपने हिस्से का पैसा जारी करे।
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