जलवायु परिवर्तन से तनाव में पेड़, बिना पके टपक रहे आम
जलवायु परिवर्तन के कारण पेड़ों पर तनाव बढ़ रहा है, जिससे आम बिना पके ही गिर रहे हैं। तापमान में बदलाव और अनियमित मौसम के कारण फल समय से पहले पकने से प ...और पढ़ें

जलवायु परिवर्तन से तनाव में पेड़ (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन ने फलों के राजा आम को भी खासा प्रभावित किया है। मौसमी बदलावों के चलते बगैर पके आम पेड़ों से झड़ जा रहे हैं। विज्ञानियों ने शोध में पाया कि फलों में हार्मोनल बदलाव की वजह से ऐसा हो रहा है। बढ़ती गर्मी, सूखा, लू और पत्तियों का झड़ना इस समस्या को और गंभीर बना रहा है।
आस्ट्रेलिया में इस समस्या के विकराल रूप लेने के बाद क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने इस पर शोध किया और आम के पेड़ों में होनेवाली जैविक प्रक्रियाओं से जुड़ा निष्कर्ष निकाला है। विज्ञानियों का दावा है कि जलवायु संकट इतना गंभीर है कि कई बार सिर्फ 0.1 प्रतिशत फल ही पूरी तरह परिपक्व हो पाते हैं।
हार्मोन बिगड़े तो फल छूटे
विज्ञानियों के मुताबिक इंसानों की तरह पौधों में भी हार्मोन होते हैं, जो फूल आने से लेकर फल विकास तक हर प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं। जब पेड़ तनाव में होता है, तो ये हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं। ऐसे में पेड़ अपने अस्तित्व को प्राथमिकता देता है और फल गिराना “पहला बलिदान'' बन जाता है।
शोध में पाया गया कि तनाव के कारण कार्बोहाइड्रेट की आपूर्ति बाधित होती है, जो फल के विकास के लिए जरूरी है। साथ ही, हार्मोनल गड़बड़ी एक तरह का आणविक “क्विट सिग्नल'' पैदा करती है, जिससे पेड़ फल को छोड़ देता है।
'क्विट सिग्नल' की पहचान
विज्ञानी आम के डंठल में जीन गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं। यही हिस्सा पेड़ और फल के बीच संकेतों का केंद्र होता है। इसमें पेडिसेल टिशू एक कंट्रोल सेंटर की तरह काम करता है, जो पेड़ और बढ़ते हुए फल के बीच पोषण और सिग्नल के आदान-प्रदान को व्यवस्थित करता है। जीन आन-आफ होने के पैटर्न से यह समझने में मदद मिल रही है कि फल गिरने का आदेश कैसे और कब मिलता है।
समाधान की राह
एक प्रभावी उपाय के तौर पर पौध हार्मोन के कृत्रिम रूप का परीक्षण किया गया है। फूल आने के शुरुआती चरण में इनका छिड़काव करने से हार्मोन संतुलन बना रहता है और पेड़ फल थामे रखता है। शुरुआती परीक्षणों में पैदावार में 17 प्रतिशत तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है।शोध अभी जारी है और अंतिम नतीजों के बाद इसे प्रकाशित किया जाएगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह समझ न सिर्फ आम, बल्कि सेब, संतरा और एवोकाडो जैसी अन्य फसलों के लिए भी उपयोगी साबित हो सकती है।

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