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    Exclusive Interview: चंद्रयान की सफलता ने आदित्य एल-1 के लिए इरादों को दी नई उड़ान - प्रोफेसर दीपांकर

    By Jagran NewsEdited By: Praveen Prasad Singh
    Updated: Sat, 26 Aug 2023 07:53 PM (IST)

    सूर्य के अनेक रहस्य ऐसे हैं जिन्हें जानना बेहद जरूरी है। साथ ही सूर्य की सतह पर बनने वाले सौर कलंक सौर ज्वालाएं (भभुकाएं) और उनसे उठने वाले सौर तूफान समेत अनेक ऐसी गतिविधियां हैं जिनकी निगरानी बेहद जरूरी है। सूर्य की इन गतिविधियों पर नजर रखने के लिए आदित्य एल-1 जैसे मिशन की सख्त जरूरत थी। अब इसरो ने इस मिशन से संबंधित सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं।

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    इसरो कभी भी आदित्य एल-1 की लांचिंग की आधिकारिक घोषणा कर सकता है।

    नैनीताल, रमेश चंद्रा : आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग से काफी उत्साहित हैं और इस बात से पूरी तरह आश्वस्त हैं अब बारी सूरज की है। बहुत जल्द पूरी दुनिया भारत की एक और बड़ी उपलब्धि की साक्षी बनेगी। दीपांकर बनर्जी मिशन आदित्य एल-1 के वर्किंग साइंस ग्रुप व आउटरीच कमेटी के सह अध्यक्ष हैं। वह कहते हैं कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का यह महत्वाकांक्षी प्रयास सूर्य के रहस्यों को तो खोलेगा ही, अंतरिक्ष में विचर रहे कृत्रिम उपग्रहों की सुरक्षा के लिए भी वरदान साबित होगा। वह यह भी कहते हैं इस मिशन से संबंधित सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। इसरो कभी भी आदित्य एल-1 की लांचिंग की तिथि घोषित कर सकता है। आदित्य एल-1 की तैयारियों के सिलसिले में ही वह इन दिनों बेंगलुरु में हैं। इस मिशन के संबंध में दैनिक जागरण नैनीताल के संवाददाता रमेश चंद्रा ने उनसे फोन पर विस्तृत बात की। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंशः

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    सवाल : सबसे पहले चंद्रयान-3 की सफलता पर आपको हार्दिक बधाई। आप आदित्य एल-1 मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं ? आदित्य एल-1 के लिए यह सफलता कितनी महत्वपूर्ण एवं प्रेरक है?

    जवाब : चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर का सफलतापूर्वक चांद की धरती पर उतरकर काम शुरू कर देना निश्चित रूप से ऐतिहासिक उपलब्धि है। हमारे विज्ञानियों की टीम की मेहनत साकार हुई है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी कहा है कि अब सूरज की बारी है, ऐसे में विज्ञानियों में उत्साह का संचार हुआ है। एक सफल मिशन निश्चित रूप से अगले लक्ष्य के लिए प्रेरक होता है। इस मिशन की सफलता ने आदित्य एल-1 के लिए हमारे इरादों को और मजबूत किया है।

    सवाल : आदित्य एल-1 मिशन क्या है? इस मिशन को आप कितना महत्वपूर्ण मानते हैं?

    जवाब : सूर्य के अनेक रहस्य ऐसे हैं, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है। साथ ही सूर्य की सतह पर बनने वाले सौर कलंक, सौर ज्वालाएं (भभुकाएं) और उनसे उठने वाले सौर तूफान समेत अनेक ऐसी गतिविधियां हैं, जिनकी निगरानी बेहद जरूरी है। सूर्य की इन गतिविधियों पर नजर रखने के लिए आदित्य एल-1 जैसे मिशन की सख्त जरूरत थी। अब इसरो ने इस मिशन से संबंधित सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। कभी भी इसकी लांचिंग की घोषणा की जा सकती है।

    सवाल : बताया जा रहा है कि इस उपग्रह में लगे अधिकांश उपकरण भारत में ही तैयार किए गए हैं? क्या यह मेक इन इंडिया को लेकर भी नई उम्मीद है?

    जवाब : यह उपग्रह पूर्ण रूप से स्वदेशी है, जिसे हम मेक इन इंडिया कह सकते हैं। इसे मेक इन इंडिया बनाने में इसरो ने बड़ी भूमिका निभाई है। भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बेंगलुरु समेत कई अन्य अनुसंधान केंद्रों का इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस मिशन से हम कह सकते हैं कि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर हो चला है। हर भारतीय के लिए यह गर्व करने वाली बात है।

    सवाल : इस मिशन का नाम आदित्य एल-1 ही क्यों? क्या इसके पीछे कोई विशेष संदर्भ है?

    जवाब : दरअसल आदित्य सूरज का पर्यायवाची है। इसी वजह से इसका नाम आदित्य रखा गया है। एल-1 यानी लैंगरेज प्वाइंट। यह अंतरिक्ष में वह स्थान होता है जहां से बिना किसी बाधा के सूर्य की हर गतिविधि का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है। सूर्य से पृथ्वी की ओर आने वाले भू-चुम्बकीय सौर तूफानों समेत उच्च ऊर्जावान सौर कणों के अलावा कई अन्य जानकारी आसानी से जुटा सकते हैं। एल-1 की पृथ्वी से दूरी 15 लाख किमी है।

    सवाल : सूर्य के अध्ययन के लिए अभी तक कितने मिशन चलाए जा चुके हैं? एल-1 पर अभी तक कितने देशों के कृत्रिम उपग्रह स्थापित हो पाए हैं?

    जवाब : सूर्य के अध्ययन के लिए पूर्व में मिशन तो कई चलाए गए हैं, लेकिन एल-1 जैसे महत्वपूर्ण स्थान पर अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी के कृत्रिम उपग्रह ही प्रक्षेपित हो पाए हैं। आदित्य एल-1 की लांचिंग और उसकी सफलता के बाद एल-1 से सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत तीसरा देश बन जाएगा। हमारा देश सूर्य का डाटा जुटाने में आत्मनिर्भर हो जाएगा। अभी तक हम दूसरे देशों पर निर्भर थे। यह निर्भरता पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।

    सवाल : सूर्य की गतिविधियां हमारे लिए किस तरह से लाभदायक या हानिकारक हैं और आदित्य एल-1 किस तरह से काम करेगा? किस तरह की जानकारी हम तक पहुंचाएगा?

    जवाब : दरअसल सूर्य पर होने वाले विस्फोटों से उच्च ऊर्जावान कण भारी मात्रा में छिटकते हैं, जिनसे उठने वाले बड़े सौर तूफान न केवल पृथ्वी के इलेक्ट्रिकल व इलेक्ट्रानिक उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, बल्कि वर्तमान में अतरिक्ष में घूम रहे हमारे सेटेलाइट को भी बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। सभी जानते हैं कि वर्तमान में इन तमाम सेटेलाइट पर हमारी निर्भरता बहुत ज्यादा है। इसके अलावा हमारी हवाई सेवाओं की संचार व्यवस्था को भी ये सौर तूफान बाधित कर देते हैं। पृथ्वी की ओर आने वाले भू-चुम्बकीय सौर तूफानों का समय रहते पता चलना बहुत जरूरी है और यह जानकारी देने में हमारा आदित्य एल-1 पूरी तरह सक्षम होगा।

    सवाल : क्या अभी लांचिंग तिथि फाइनल नहीं हुई है? कब तक इसके लांच होने की संभावना है?

    जवाब : इस मिशन की सभी तैयारियां इसरो पहले ही पूरी कर चुका है। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अब सूरज की बारी है। इसरो कभी भी आदित्य एल-1 की लांचिंग की आधिकारिक घोषणा कर सकता है। उम्मीद है कि इसे सितंबर पहले सप्ताह में रवाना कर दिया जाएगा।

    सवाल : आदित्य एल-1 को अपनी कक्षा तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?

    जवाब : मिशन को एल-1 कक्षा यानी पृथ्वी से 15 लाख किमी की दूरी तय करने में चार माह का समय लगेगा। लांचिंग की तिथि तय होने के बाद श्रीहरिकोटा से इसे पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) से गंतव्य के लिए रवाना किया जाएगा।

    सवाल : यह मिशन अपने साथ किन-किन महत्वपूर्ण उपकरणों को लेकर जाएगा?

    जवाब : यह मिशन सात अत्याधुनिक उपकरणों (पेलोड ) से सुसज्जित होगा। जिनमें विजिबल एमिशन लाइन कोरोनोग्राफ, सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप, सोलर लो एनर्जी एल-1 एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर, हाई एनर्जी एल-1 आर्बिट एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर, सोलर विंड एटम डिटेक्टर, प्लाज्मा एनालिसिस पैकेज व थर्ड आर्बिट हाई रिजोल्यूशन डिजिटल मैग्नोमीटर शामिल हैं। इन सातो उपकरणों का सूर्य के अध्ययन में अलग-अलग और महत्वूपर्ण उपयोग होगा। इनमें चार पेलोड सीधे सूर्य का अध्ययन करेंगे, जबकि अन्य तीन अन्य गतिविधियों का अध्ययन करेंगे।

    सवाल : इस महत्वपूर्ण मिशन में कितने वैज्ञानिक व इंजीनियर शामिल हैं?

    जवाब : इस मिशन में लगभग एक हजार वैज्ञानिक व इंजीनियर शामिल हैं, जो देश की विभिन्न स्पेस एजेंसियों के अलावा तमाम शिक्षण संस्थानों से हैं। इस मिशन को तैयारी के स्तर पर पहुंचाने और अब अंतरिक्ष तक पहुंचाने में सभी का महत्वपूर्ण योगदान रहने वाला है।

    सवाल : इस मिशन से देश की युवा पीढ़ी को किस तरह से सीधा लाभ मिलेगा?

    जवाब : वास्तव में देखा जाए तो यह मिशन बहुआयामी है। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अध्ययनरत युवाओं व विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को इस मिशन से प्राप्त होने वाले सूर्य के डाटा का विश्लेषण करने व सीखने का मौका मिलेगा। सभी भविष्य में अंतरिक्ष विज्ञान संबंधी अन्य डाटा के विश्लेषण में निपुण बन सकेंगे। इस कार्य में देश के सभी विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को जोड़ा जाएगा।

    सवाल : इस मिशन में आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) की क्या भूमिका रहने वाली है?

    जवाब : इस मिशन में एरीज से मैं स्वयं जुड़ा हूं। कई वर्षों से इसमें अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं। इस मिशन में एरीज सपोर्ट सेल की भूमिका निभाने का काम करेगा। इसके लिए हल्द्वानी में साइंस सेंटर बनाया जा चुका है। सूर्य से प्राप्त डाटा विश्लेषण का कार्य विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी साइंस सेंटर में कर सकेंगे।

    सवाल : किस तरह का डाटा सूर्य से प्राप्त होगा, जिसका विद्यार्थी विश्लेषण करेंगे और आदित्य एल-1 मिशन कितने साल तक कार्य करेगा?

    जवाब : सूर्य पर अनेक गतिविधियां हर समय होती रहती हैं, जिससे निकलने वाले रेडिएशन, सोलर विंड, सोलर फ्लेअर व हाई चार्ज पार्टिकल्स संबंधी डाटा का आकलन किया जाएगा। इसी डाटा के बारीक विश्लेषण के बाद हम किसी परिणाम तक पहुंचेंगे। आदित्य एल-1 पांच साल तक सूर्य का अध्ययन करेगा। यह भी संभव है कि इसके बाद भी वह कार्य करता रहे।

    सवाल : पृथ्वी के अलावा यह मिशन क्या बाहरी ग्रहों के लिये भी सहायक हो सकता है?

    जवाब : दरअसल चंद्रमा पर भविष्य में कई देशों के सेटेलाइट भेजे जाने हैं और सूर्य का रेडिएशन चंद्रमा को प्रभावित करता है। आदित्य एल-1 चांद पर आने वाले रेडिएसन की जांच कर इसकी सूचना देने में सक्षम होगा। साथ ही अंतरिक्ष में स्थापित स्पेस स्टेशन की ओर आने वाले सौर तूफान की जानकारी दे सकेगा।

    सवाल : सूर्य का कोरोना आज भी सौर विज्ञानियों के अध्ययन का बड़ा केंद्र है। क्या इस पर भी कोई कार्य करेगा यह मिशन?

    जवाब : इस मिशन की विशेषताओं में सूर्य के कोरोना का अध्ययन भी शामिल है। अभी तक कोरोना का अध्ययन सिर्फ पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही संभव है, लेकिन आदित्य एल-1 के स्थापित हो जाने से हम किसी भी समय कोरोना का अध्ययन कर सकेंगे।

    सवाल : क्या मौसम अथवा जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भी इस मिशन की कोई भूमिका हो सकती है? क्या पृथ्वी की वायुमंडलीय स्थिति के बारे में भी पता लग सकेगा?

    जवाब : सूरज का पृथ्वी और मानव समेत जीव जंतुओं के साथ गहरा रिश्ता है। इसकी किरणों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। एक ओर आसमान में चमकता सूर्य है तो दूसरी ओर हमारी पृथ्वी है। पृथ्वी पर आने वाले मिनी आइस एज का पूर्वानुमान बताने में संभवतः आदित्य एल-1 महत्वपूर्ण भूमका निभाएगा। एटमास्फेयरिक साइंस के लिए यह मिशन प्रभावी साबित होगा। पृथ्वी के वायुमंडलीय गैस का डाटा जुटा सकेगा, जिसका वायुमंडलीय विज्ञानी अध्ययन कर सकेंगे।

    सवाल : चंद्रयान-3 की सफलता के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने संबोधन में आदित्य एल-1 की तैयारी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त दिखे। उन्होंने विज्ञानियों की भरपूर सराहना भी की। इसे आप किस रूप में देखते हैं?

    जवाब : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह प्राथमिकता है कि देश विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास करे। वह नियमित रूप से विभिन्न विज्ञान परियोजनाओं की निगरानी करते रहते हैं और विज्ञानियों का उत्साह भी बढ़ाते रहते हैं। निश्चित रूप से उनका प्रोत्साहन और मार्गदर्शन हम विज्ञानियों के लिए किसी भी मिशन को काफी आसान बनाने का काम करता है। यह उनके सहयोग और मार्गदर्शन का ही परिणाम है कि विज्ञानी चंद्रयान-3 की सफलता का कीर्तिमान पूरे विश्व में स्थापित करने में सफल हुए और अब आदित्य एल-1 के रूप में एक और उपलब्धि देश की झोली में डालने जा रहे हैं।

    सवाल : आखिर में यह बताइए कि दिन-रात आप व अन्य विज्ञानी मिशन की सफलता में जुटे रहते हैं। ऐसे में परिवार का साथ व सहयोग किस तरह रहता है?

    जवाब : देखिए, यह सच है कि विज्ञानी का काम आठ घंटे वाला नहीं होता। हमें किसी भी समय दिन-रात उपलब्ध रहना होता है। ऐसे में यह बेहद जरूरी हो जाता है कि हमारा परिवार हमारे साथ खड़ा रहे। चूंकि विज्ञानी के परिजन उसकी व्यस्तताओं से भलीभांति परिचित होते हैं। ऐसे में वह उन्हें अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं। मुझे हर मिशन में परिवार का भरपूर सहयोग मिला है।

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