Aditya - L1: भारत का पहला सौर मिशन 'आदित्य एल-1' सितंबर के पहले हफ्ते में होगा लॉन्च, जानिए इससे क्या होगा लाभ
ISRO First Sun Mission चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब सूर्य के अध्ययन के लिए अपने पहले सौर मिशन आदित्य एल-1 को लांच करने जा रहा है। सौर अभियान में शामिल आइआइटी बीएचयू के भौतिक विज्ञानी डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव ने बताया कि आदित्य एल-1 को सितंबर के प्रथम सप्ताह में लांच किया जा सकता है।
शैलेश अस्थाना, वाराणसी : (Aditya-L1) चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब सूर्य के अध्ययन के लिए अपने पहले सौर मिशन आदित्य एल-1 को लांच करने जा रहा है।
सौर अभियान में शामिल आइआइटी बीएचयू के भौतिक विज्ञानी डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव ने बताया कि आदित्य एल-1 को सितंबर के प्रथम सप्ताह में लांच किया जा सकता है। यह पूरी तरह से स्वेदशी अभियान है और यान प्रक्षेपण के लगभग चार माह बाद पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर एक खास स्थान लैंग्रेज प्वाइंट- 1 (एल-1) पर पहुंचेगा।
इस स्थान पर पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल समाप्त हो जाते हैं। इस कारण वहां वेधशाला के संचालन के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होगी। डॉ. श्रीवास्तव स्पेस वेदर (अंतरिक्ष के मौसम) के विशेषज्ञ हैं और वह सौर विकिरण, पराबैंगनी किरणों, एक्स किरणों तथा सौर लपटों का पृथ्वी के वायुमंडल पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करेंगे।
मौसम पर पड़ने वाले प्रभावों का करेगा अध्ययन
डॉ. श्रीवास्तव इसरो द्वारा गठित ‘आदित्य एल-1 स्पेस वेदर मानिटरिंग एंड प्रीडिक्शन’ समिति के भी सदस्य हैं। यह समिति आदित्य एल-1 द्वारा भेजे जाने वाले आंकड़ों का अंतरिक्ष के मौसम पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करेगी।
सौर मिशन में शामिल आइआइटी बीएचयू के भौतिक शास्त्री डा. बीबी कारक सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के उद्भव, सूर्य के चुंबकीय वातावरण में होने वाले भौतिकीय और गतिकीय प्रभावों का अध्ययन करेंगे।
अभियान में सात पेलोड भेजे जाएंगे
मिशन आदित्य एल-1 के लिए भेजे जाने वाले अंतरिक्ष यान से कुल सात पेलोड (उपकरण) भेजे जाएंगे। जो इलेक्ट्रोमैग्नेट, पार्टिकल और चुंबकीय क्षेत्र सूचकों की सहायता से फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की बाहरी परतों का अध्ययन करेंगे।
चार पेलोड सूर्य पर दृष्टि रखेंगे तो तीन सौर लपटों, आवेशित कणों, सौर विकिरण आदि के आंकड़े प्रेषित करेंगे। पृथ्वी और सूर्य के बीच एल-1 बिंदु पर स्थापित होने वाला यह विश्व का दूसरा ही मिशन होगा। इससे पूर्व 1995 में यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने सोलर एवं हीलियोस्पोरी आब्जर्वेटरी को भेजा था।
क्या मिलेगा आदित्य एल-1 से
डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि आदित्य एल-1 अभियान से सौर मंडल के ऊपरी हिस्से और सूर्य के भीतर की गतिविधियों के अध्ययन में मदद मिलेगी। सौर गतिविधियों का पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव, मौसम में बदलावों आदि के के बारे में अधिक जानकारियां जुटाई जा सकेंगीं।
आदित्य एल-1 का निर्माण यूआर राव उपग्रह केंद्र, बेंगलुरु में किया गया है। यह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर पहुंचा दिया गया है और सितंबर के प्रथम सप्ताह में प्रक्षेपित किया जा सकता है।
अब तक कुल 22 सूर्य अभियान किए गए हैं
आदित्य एल-1 से पूर्व अमेरिका, जर्मनी व यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने कुल 22 सूर्य अभियान भेजे हैं। नासा ने 1960 में पहला सूर्य मिशन पायनियर-5 भेजा था। जर्मनी ने 1974 में पहला सूर्य मिशन नासा के साथ भेजा था। यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने भी 1994 में अपना पहला सूर्य मिशन नासा के साथ भेजा था। जहां इन देशों ने नासा और अन्य देशों के साथ मिलकर सौर अभियान भेजा था, वहीं भारत अपना पहला सौर मिशन अपने दम पर भेज रहा है।