Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    संविधान की प्रस्तावना से 'पंथनिरपेक्ष' सहित ये दो शब्द हटाने की मांग, SC ने कहा- क्या तारीख बदले बिना कर सकते हैं संशोधन

    By Agency Edited By: Anurag Gupta
    Updated: Fri, 09 Feb 2024 07:28 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या संविधान को अंगीकार किए जाने की तारीख 26 नवंबर 1949 को बरकरार रखते हुए इसकी प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है। दरअसल राज्यसभा के पूर्व सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी और वकील विष्णु शंकर जैन ने प्रस्तावना से समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों को हटाने की मांग की है। वहीं कोर्ट ने इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की जरूरत बताई है।

    Hero Image
    सुप्रीम कोर्ट में 29 अप्रैल को होगी सुनवाई (फाइल फोटो)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सवाल किया कि क्या संविधान को अंगीकार किए जाने की तारीख 26 नवंबर, 1949 को बरकरार रखते हुए इसकी 'प्रस्तावना' में संशोधन किया जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की जरूरत बताई है। दरअसल, राज्यसभा के पूर्व सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी और वकील विष्णु शंकर जैन ने प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की मांग की है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने सुब्रमण्यम स्वामी और वकील जैन से यह सवाल पूछा कि क्या संविधान को अपनाने वाली तारीख को बरकरार रखते हुए प्रस्तावन में संशोधन कर सकते हैं। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने कहा,

    अकादमिक उद्देश्य के लिए क्या प्रस्तावना, जिसमें तारीख का उल्लेख है, को अपनाने की तारीख में बदलाव किए बिना उसे (प्रस्तावना को) बदला जा सकता है। अन्यथा हां, प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है। उसमें कोई समस्या नहीं है।

    सुब्रमण्यम स्वामी ने क्या कुछ कहा?

    इस पर सुब्रमण्यम स्वामी ने जवाब दिया कि इस मामले में बिल्कुल यही सवाल है। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि मैंने शायद एकमात्र ऐसी प्रस्तावना देखी है जिसमें तारीख दर्ज है। हमने अपने संविधान को हमें अमुक तारीख को सौंपा… मूल रूप से दो शब्द (समाजवादी और पंथनिरपेक्ष) वहां नहीं थे।

    यह भी पढ़ें: 'जमानत नियम है, जेल अपवाद है', सुप्रीम कोर्ट ने UAPA मामले में खारिज की खालिस्तानी समर्थक की जमानत याचिका

    विष्णु शंकर जैन ने कहा कि भारत के संविधान की प्रस्तावना एक निश्चित तारीख को आई, इसलिए चर्चा किए बिना इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता। वहीं, सुब्रमण्यम स्वामी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि 42वां संशोधन अधिनियम आपातकाल (1975-77) के दौरान पारित किया गया था।

    कब होगी सुनवाई?

    सुनवाई शुरु होने पर न्यायमूर्ति खन्ना ने सुब्रमण्यम स्वामी से कहा कि न्यायाधीशों को मामले की फाइल सुबह ही मिल गई थी और समय की कमी के चलते वे उस पर गौर नहीं कर सके। पीठ ने कहा,

    विषय पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है और दो याचिकाओं पर सुनवाई 29 अप्रैल के लिए निर्धारित कर दी।

    सुप्रीम कोर्ट ने दो सितंबर, 2022 को सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका को अन्य लंबित विषय (बलराम सिंह एवं अन्य द्वारा दायर) के साथ सुनवाई के लिए संलग्न कर दिया था।

    42वें संवैधानिक संशोधन के तहत जोड़े गए थे यह शब्द

    बता दें कि साल 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संवैधानिक संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द शामिल किए गए थे। इस संशोधन ने प्रस्तावना में भारत को 'संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य' से बदलकर 'संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य' कर दिया।

    यह भी पढ़ें: राज्य सरकार को SC-ST में आरक्षण के भीतर कोटा देने का अधिकार? सुप्रीम कोर्ट में बहस पूरी फैसला सुरक्षित

    सुब्रमण्यम स्वामी की दलील

    सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी याचिका में दलील दी कि प्रस्तावना को बदला, संशोधित या निरस्त नहीं किया जा सकता है। याचिका में कहा गया कि प्रस्तावना में न केवल संविधान की आवश्यक विशेषताओं को दर्शाया गया है, बल्कि उन मूलभूत शर्तों को भी दर्शाया गया है जिनके आधार पर एक एकीकृत समेकित समुदाय बनाने के लिए इसे अपनाया गया था।