'जमानत नियम है, जेल अपवाद है', सुप्रीम कोर्ट ने UAPA मामले में खारिज की खालिस्तानी समर्थक की जमानत याचिका
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और अरविंद कुमार की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मामले में उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के बाद पहली नजर में साजिश के एक हिस्से के रूप में आरोपी सिंह की संलिप्तता का पता चलता है। आरोपी ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल कर जमानत की मांग की थी जिसे खारिज कर दिया गया।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक खालिस्तानी आतंकी को जमानत देने से इनकार करते हुए गुरुवार को कहा कि गंभीर अपराध मामले में सुनवाई में देरी के आधार पर जमानत नहीं जा सकती है। आरोपित पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए हैं। आरोपित प्रतिबंधित संगठन सिख फार जस्टिस (एसएफजे) का सदस्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी दलीलों पर किया गौर
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया से लग रहा है कि एसएफजे के सदस्यों द्वारा समर्थित आतंकी गतिविधियों में आरोपित की संलिप्तता है, जिसमें विभिन्न माध्यम से बड़ी मात्रा में धन का आदान-प्रदान शामिल है। यदि आरोपित को जमानत पर रिहा किया जाता है, तो पूरी आशंका है कि वह मामले के प्रमुख गवाहों को प्रभावित करेगा, जिससे न्याय की प्रक्रिया में बाधा आ सकती है।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा जांच किए गए यूएपीए मामले में गुरविंदर सिंह उर्फ गुरप्रीत सिंह गोपी को जमानत देने से इनकार करने वाले पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। 19 अक्टूबर, 2018 को अमृतसर में एक फ्लाईओवर पर खालिस्तान समर्थक बैनर लटकाने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
2020 में NIA को सौंपी गई थी जांच
पंजाब पुलिस ने जांच के दौरान एसएफजे मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया था। अप्रैल 2020 में मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई। अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने गुरविंदर सिंह के वकील की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि टेरर फंडिंग चार्ट में अपीलकर्ता का नाम नहीं है, इसके बावजूद गुरविंदर पिछले पांच साल से जेल में है, इसलिए उसे जमानत मिलनी चाहिए।
पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ गुरविंदर सिंह की अपील को खारिज करते हुए कहा, "हमारा मानना है कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत प्रथम दृष्टया साजिश के एक हिस्से के रूप में आरोपी की संलिप्तता का संकेत देती है, क्योंकि वह जानबूझकर यूएपीए अधिनियम की धारा 18 के तहत आतंकवादी कृत्य की तैयारी में सहायता कर रहा था।"
2010 में किया गया प्रतिबंधित
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, 10 जुलाई, 2019 को गुरपतवंत सिंह पन्नू द्वारा स्थापित खालिस्तान समर्थक समूह 'सिख फॉर जस्टिस' (एसएफजे) को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के प्रावधानों के तहत कथित राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए केंद्र द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। एक साल बाद, 1 जुलाई, 2020 को, केंद्र ने यूएपीए के प्रावधानों के तहत पन्ना को आतंकवादी के रूप में नामित किया।
जमानत के लिए काफी नहीं सबूत
शीर्ष अदालत ने गुरविंदर सिंह के वकील की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि टेरर फंडिंग चार्ट में अपीलकर्ता का नाम नहीं है। पीठ ने कहा, "यह उल्लेख करना उचित है कि वर्तमान मामले में आरोपों से एक आतंकवादी गिरोह की संलिप्तता का पता चला है, जिसमें कई भूमिकाओं के लिए भर्ती किए गए विभिन्न सदस्य शामिल हैं। केवल यह तथ्य कि आरोपी को कोई धन नहीं मिला है या उसके मोबाइल से कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है, उसे तत्काल अपराध में उसकी भूमिका से बरी नहीं कर देता।"
यह भी पढ़ें: चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव और एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न, पीएम मोदी ने किया बड़ा एलान
साथ ही पीठ ने कहा कि कॉल डिटेल रिकॉर्ड की जांच से संकेत मिलता है कि गुरविंदर सिंह कई बार बिक्रमजीत सिंह के संपर्क में था। पीठ ने कहा, "कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) हथियारों की खरीद के लिए श्रीनगर की यात्रा से पहले भी अपीलकर्ता और बिक्रमजीत सिंह के बीच संचार के एक सुसंगत पैटर्न का खुलासा करता है।"
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।