BMC Elections: ठाकरे भाइयों के बाद चाचा-भतीजा भी एक साथ आने को तैयार, गठबंधन कर लड़ सकते हैं चुनाव
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों के चलते राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बाद, अब अजीत पवार भी शरद पवार के करीब आ रहे हैं। ...और पढ़ें

अजीत पवार और शरद पवार। (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, मुंबई। महाराष्ट्र में चल रहे स्थानीय निकाय चुनावों ने जहां दो चचेरे भाई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच की दूरियां घटा दी हैं, वहीं अब उप मुख्यमंत्री अजीत पवार भी अपने चाचा शरद पवार के करीब आने जा रहे हैं।
पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ सहित पश्चिम महाराष्ट्र की कुछ और महानगरपालिकाओं में ये दोनों दल गठबंधन कर चुनाव लड़ सकते हैं। जबकि भाजपा इनके विरुद्ध लड़ सकती है। लगभग तीन साल पहले अजीत पवार अपने चाचा शरद पवार का साथ छोड़कर भाजपानीत गठबंधन का हिस्सा बन गए थे।
अजीत पवार की पत्नी ने सुप्रिया सुले को हराया
उन्होंने लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव राकांपा (शरदचंद्र पवार) के विरुद्ध लड़ा। लोकसभा चुनाव में बारामती संसदीय क्षेत्र से अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार ने उनकी चचेरी बहन सुप्रिया सुले के विरुद्ध चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। फिर विधानसभा चुनाव में बारामती विधानसभा चुनाव में शरद पवार ने अजीत पवार के सगे भतीजे युगेंद्र पवार को ही अजीत पवार के विरुद्ध मैदान में उतारा। लेकिन वह चुनाव अजीत पवार भारी मतों के अंतर से जीत गए।
शरद पवार के साथ आने को तैयार अजीत पवार
अब स्थानीय निकाय चुनावों में शरद पवार और अजीत पवार साथ आने को तैयार हैं, वह भी भाजपा और शिवसेना (शिंदे) के विरुद्ध। लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि अजीत पवार सरकार से नाता तोड़ने जा रहे हैं।
सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल तीनों दलों भाजपा, शिवसेना (शिंदे) और राकांपा (अजीत) ने तय किया है कि स्थानीय निकाय जैसे छोटे चुनावों में उन कार्यकर्ताओं को मौका दिया जाना चाहिए, जो विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में उनके लिए मैदानी लड़ाई लड़ते हैं।
इसलिए, गठबंधन की गुंजाइश हो तो ठीक है। नहीं तो अलग-अलग लड़कर बाद में भी साथ आया जा सकता है। इसी रणनीति के तहत अजीत पवार और शरद पवार इन चुनावों में साथ आते दिखाई दे रहे हैं।
शरद पवार को सता रही बेटी की चिंता
दूसरी ओर विधानसभा चुनाव में सिर्फ 10 सीटें जीतने वाले शरद पवार को भी अपनी पुत्री के राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी है। इसलिए, उनके और सुप्रिया सुले के स्वर भी नरम पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
हाल ही में लोकसभा में सुप्रिया सुले ने ईवीएम का विरोध करने से यह कहकर इन्कार कर दिया था कि उसी ईवीएम से वह चार बार चुनकर संसद में पहुंची हैं तो वह उसमें कमी कैसे निकाल सकती हैं। सुप्रिया सुले के सुर में यह बदलाव भविष्य में राकांपा के दोनों गुटों के भी एकीकरण का माध्यम बन जाए तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

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