ISRO Espionage Case: चार आरोपियों की अग्रिम जमानत हुई रद्द, हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने वैज्ञानिक नंबी नारायणन को कथित रूप से फंसाने से संबंधित 1994 के इसरो जासूसी मामले में चार व्यक्तियों को अग्रिम जमानत देने के केरल उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। सभी आरोपियों की याचिका पर नए सिरे से फैसला किया जाएगा।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वैज्ञानिक नंबी नारायणन को कथित रूप से फंसाने से संबंधित 1994 के इसरो जासूसी मामले में चार व्यक्तियों को अग्रिम जमानत देने के केरल उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से चार सप्ताह के भीतर नए सिरे से आरोपियों की याचिका पर फैसला करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पांच हफ्ते तक आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
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न्यायमूर्ति एमआर शाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने जमानत याचिकाओं को केरल उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया और चार सप्ताह की अवधि के भीतर जल्द से जल्द इस पर फैसला करने को कहा।
सीबीआई ने पांच लोगों को अग्रिम जमानत देने के केरल उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत की खंडपीठ ने 28 नवंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते समय संकेत दिया था कि मामले को फिर से देखने के लिए केरल हाई कोर्ट वापस भेजा जा सकता है। सीबीआई ने केरल हाईकोर्ट द्वारा केरल के पूर्व DGP सिबी मैथ्यूज समेत आरोपियों को मिली जमानत को चुनौती है। इस मामले में अन्य आरोपी पीएस जयप्रकाश, थम्पी एस दुर्गा दत्त, विजयन और आरबी श्रीकुमार हैं।
क्या है पूरा मामला
तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले एयरोस्पेस इंजीनियर नंबी नारायणन इसरो के सायरोजेनिक्स विभाग के प्रमुख थे, जब वो एक जासूसी कांड में फंसे थे। नवंबर 1994 में नंबी नारायणन पर आरोप लगा था कि उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़ी कुछ गोपनीय सूचनाएं विदेशी एजेंटों से साझा की थीं।
नंबी नारायणन को 1994 में केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। वह स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने में लगे थे। उन पर स्वदेशी तकनीक विदेशियों को बेचने का आरोप लगाया गया था। बाद में CBI जांच में यह पूरा मामला झूठा निकला। 1998 में खुद के बेदाग साबित होने के बाद नारायणन ने उन्हें फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए लंबी लड़ाई लड़ी।
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इस मामले को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में उन्हें 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही, उन्हें जासूसी के झूठे आरोप में फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर विचार के लिए पूर्व जज जस्टिस डी के जैन को नियुक्त किया था।