'मैंने क्या किया, क्या नहीं, फैसला करना इतिहास का काम'; 2014 में पीएम पद छोड़ने से पहले मनमोहन सिंह ने कही थी ये बात
जनवरी 2014 में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था मुझे नहीं लगता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं। मैं ईमानदारी से मानता हूं कि समकालीन मीडिया या विपक्ष की तुलना में मेरे प्रति अधिक दयालु होगा। राजनीतिक मजबूरियों को देखते हुए मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया है आगे बोले कि मैंने परिस्थितियों के अनुसार उतना अच्छा किया जितना मैं कर सकता था।

पीटीआई, नई दिल्ली। मनमोहन सिंह ने 2014 में प्रधानमंत्री का पद छोड़ने से कुछ महीने पहले कहा था कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया। उनका नेतृत्व कमजोर नहीं था। इतिहास उनके प्रति नरमी बरतेगा।
जनवरी 2014 में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, मुझे नहीं लगता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं। मैं ईमानदारी से मानता हूं कि समकालीन मीडिया या विपक्ष की तुलना में मेरे प्रति अधिक दयालु होगा। राजनीतिक मजबूरियों को देखते हुए मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया है।
मनमोहन ने कहा था, इतिहास मेरे प्रति नरमी बरतेगा
आगे बोले कि मैंने परिस्थितियों के अनुसार उतना अच्छा किया जितना मैं कर सकता था। मैंने क्या किया है या क्या नहीं किया है, इसका फैसला करना इतिहास का काम है। वह उन आलोचनाओं से संबंधित सवालों के जवाब दे रहे थे कि उनका नेतृत्व कमजोर था और कई मौकों पर उन्होंने निर्यायक कदम नहीं उठाए।
मनमोहन ने उस प्रेस कांन्फ्रेंस में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के तत्कालीन उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर हमला करते हुए मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए 2002 के गुजरात दंगों का भी जिक्र किया था। उस समय भाजपा ने अगले लोकसभा चुनाव से पहले कमजोर नेतृत्व के मुद्दे पर मनमोहन पर निशाना साधते हुए मोदी को मजबूत नेता के रूप में पेश किया था।
मनमोहन ने कहा था कि संप्रग 1 और संप्रग 2 में प्रधानमंत्री के रूप में उनके दो कार्यकालों ने गठबंधन सरकार चलाने की कांग्रेस की क्षमता को प्रदर्शित किया और इस धारणा को दूर कर दिया कि यह पार्टी गठबंधन नहीं चला सकती है।
कभी संदेह के दायरे में नहीं रही व्यक्तिगत ईमानदारी
उन पर सबसे कमजोर प्रधानमंत्री होने के आरोप लगे, घपले-घोटालों के अभूतपूर्व मामले सामने आए और मीडिया सलाहकार संजय बारू जैसे कुछ लोगों ने उन्हें लाचार बताने में कसर नहीं छोड़ी जो उनके सबसे अधिक करीब थे।
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परमाणु समझौते में विजेता बनकर उभरे
पीएम के रूप में मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में किसी बड़े विवाद की झलक नहीं मिली, सिवाय इसके कि गठबंधन की मजबूरियों के चलते उन्हें राजद के तस्लीमुद्दीन सरीखे कुछ ऐसे मंत्री बनाने पड़े जिन्हें दागी कहा जाता था। पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर सहयोगी दलों ने ही सवाल उठाए, लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचाने में मनमोहन सिंह ने अपनी पूरी राजनीतिक पूंजी झोंक दी और वह विजेता बनकर उभरे।
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पांच बड़े घोटालों ने बढ़ाई थी बेचैनी
2009 के आम चुनाव में अप्रत्याशित, लेकिन आखिरकार आसान जीत के बाद दोबारा पीएम बने मनमोहन सिंह के लिए दूसरा कार्यकाल उतना ही कठिन साबित हुआ जब लगभग पूरे पांच साल वह घपले-घोटालों के नए-नए मामलों या उनमें हो रहे रहस्योद्घाटनों से परेशान और बेचैन रहे। पांच बड़े घोटालों की संयुक्त धनराशि चार लाख करोड़ रुपये तक बताई गई। इसी ने तत्कालीन विपक्ष यानी भाजपा को यह कहने का मौका दिया कि मनमोहन सिंह के राज में अभूतपूर्व धांधली हुई है।
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