रिश्वत का दाग हटाने के लिए 39 साल तक लड़ा केस, लेकिन नहीं मानी हार; कैसे लगे थे आरोप?
सन 1986 में 100 रुपये की रिश्वत के एक झूठे मामले में फंसने के बाद जागेश्वर प्रसाद अवधिया का जीवन पूरी तरह से बदल गया। समाज में उनकी प्रतिष्ठा कम हो गई वेतन आधा हो गया और बच्चों की शिक्षा बाधित हो गई। उनकी पत्नी की बीमारी से मृत्यु हो गई। जागेश्वर बताते हैं कि कैसे उनकी जेब में जबरदस्ती नोट डाले गए और लोकायुक्त की टीम आ गई।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सन 1986 में 100 रुपये रिश्वत के झूठे केस में फंसते ही जागेश्वर प्रसाद अवधिया की दुनिया ही बदल गई। दफ्तर, आस-पड़ोस, समाज में इज्जत चली गई। शर्म से बाहर निकलना मुश्किल हो गया।
वेतन आधा रह गया। घर के खर्च चलाना टेडी खीर साबित होने लगा। बच्चों की पढ़ाई छूट गई। पत्नी बीमारी में चल बसी।
उस दिन को याद करते हुए जागेश्वर बताते हैं कि उनकी जेब में 50-50 रुपये के दो नोट जबरन घुसेड़ दिए गए। जब तक वह सामने वाले को रोक पाते, लोकायुक्त की टीम आ गई। आसपास भीड़ जमा हो गई।
किसी ने ताना मारा, तो किसी ने उंगली उठाई। यह सब हो रहा था, लेकिन उस समय उनका शरीर ठंडा पड़ गया, जड़ हो गया। कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दे पा रहे थे। 39 साल अदालतों में पेशियां लगाते-लगाते जवानी से बुढ़ापा आ गया।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।