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    क्षमता के अधिक इस्तेमाल से लक्ष्य प्राप्ति संभव

    जीवन को सार्थक बनाने के लिए जरूरत है अपनी क्षमता और जो समय हमारे पास है, उसका बेहतर इस्तेमाल करने की।

    By Rahul SharmaEdited By: Updated: Thu, 13 Oct 2016 09:29 AM (IST)

    जीवन को सार्थक बनाने के लिए जरूरत है अपनी क्षमता और जो समय हमारे पास है, उसका बेहतर इस्तेमाल करने की। वास्तव में जीवन को कौशलपूर्ण प्रबंधन के तरीके से अपने लक्ष्य,जो हम बनना चाहते हैं। समाज के सामने अपने आप को पेश करना चाहते हैं और जो हमारे अंदर जो क्षमता है उसका विकास करके स्वयं को, परिवार को, समाज को कुछ दे सकते हैं।
    अपने अंतर्मन की खोज ही हमें अपने जीवन उद्देश्य का रास्ता दिखाती है और खुद को समझना हो तो जीवन के शाश्वत और सनातन नियमों को हम बेहतर तरीके से जान सकते हैं, तभी हमारे जीवन की पद्धति बनती है जैसे हम किसी पेड़ के पत्तों पर बाहर से पानी छिड़कें तो थोड़ी देर के लिए उनमें चमक आ सकती है, लेकिन यदि हम जड़ों को न सींचें तो पत्ते जो आज हरे भरे दिखाई दे रहे हैं धीरे-धीरे वे भी सूखने लगेंगे। अपने जीवन को सुखी, सफल और सार्थक बनाने के लिए हमें जीवन में अनुशासन, एकाग्रता और नम्रता जैसे गुणों को ग्रहण करना, अपनी परंपराओं का बोध और समाज और देश की संस्कृति और अपने राष्ट्र व अपनी परंपराओं को समझना बहुत ही जरूरी है। तभी हम अपनी व समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतर सकते हैं। हमारा पहला कदम ही आगे की यात्र की दिशा तय करने वाला होता है,लेकिन कहीं हम इतनी दूर न चले जाएं कि हम वहां से लौट न सकें। हर व्यक्ति अपने आप में एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी है, अद्वितीय है, हमारा जो मन है वह सतर्क है, वहां पर जो विचार आते हैं उनको नियंत्रित नहीं कर सकते हैं और हम दूसरे आए हुए विचारों को रोक नहीं सकते हैं, जैसे एक गंदे पानी में साफ पानी मिलाते जाएं तो धीरे-धीरे गंदा पानी बाहर निकल जाता है और धीरे-धीरे गंदे पानी की जगह साफ पानी जगह बना लेता है, इसी तरीके से मन में आए हुए विचार भी धीरे-धीरे बाहर जा सकते हैं।
    जिस किसी ने भी अपने आपसे सवाल किया कि मैं कौन हूं? क्या हूं? क्या करना चाहता हूं? मेरा जन्म किसलिए हुआ है? उन सबको अपने अंदर से ही इसका उत्तर मिला, बाहर से नहीं मिला, यही अपने जीवन के उद्देश्य को खोजने की सबसे पहली सीढ़ी है। शायद इतिहास में किसी भी महापुरुष को देखें, बुद्ध को देखें, दयानंद को देखें, विवेकानंद को देखें, नेताजी सुभाष चंद्र बोस को देखें, उन सब ने कहीं न कहीं अपने जीवन में क्या, क्यों, कब, कहां, कैसे, इन प्रश्नों का सामना किया, इसीलिए अपने आप से सवाल करें और अपने किए हुए सवालों के जवाब अपने अंदर खोजें, उनको बेहतर तरीके से प्रबंधन के तरीके से सामने लाएं और उस पर अमल करें तो निश्चय ही हम देखेंगे कि हमारा सारा जीवन उस तरीके को अपना चुका है जो कहीं न कहीं उस ऊंचाई तक हमें ले जाता है, जहां हम दुनिया की तरफ नहीं देखते, दुनिया हमारी तरफ देखती है। हमें क्या बनना है, इस पर सोचने के स्थान पर कैसे बनना है, यह सोचने लगें तो थोड़ा रास्ता और भी आसान हो सकता है। हर व्यक्ति अद्वितीय है, उसके जैसा कोई और नहीं, बाहरी तौर पर यह सच है, लाखों करोड़ों मनुष्य हैं,उन सब में उंगलियों के आधार पर, उनके चेहरे के आधार पर बहुत भेद है, लेकिन अगर आंतरिक तरीके से देखें तो जो चेतन सत्ता है उसमें कोई भेद नहीं है, संसार का जो लक्ष्य है, जो मकसद है, उसकी प्राप्ति में रास्ते अलग नहीं हो सकते हैं, लेकिन जो आंतरिक संतुष्टि है, आंतरिक भाग है, वह निश्चित ही वैसे ही मिलेगा जैसे कि चेतन सत्ता को मिलता है, इसीलिए बाहरी भेद को छोड़कर जो भीतरी एकरूपता है,उसके ऊपर भी ध्यान देना होगा स्वावलंबन यानी अपना काम खुद करना, यह भी एक लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ा सहायक और मुख्य तत्व है। इसके साथ ही किसी भी काम को करने के लिए एकाग्रता, अनुशासन, धैर्य, सहयोग की भावना, परस्पर प्रेम और निरंतरता बनाए रखते हुए आगे बढ़ना, निश्चित ही एक सफल जीवन प्रबंधन के सूत्र में आता है।
    छात्रों को जो अपने से अपेक्षाएं हैं उसको लेकर हर समय गंभीर रहना चाहिए। एक-दो विफलताओं के बाद निराश नहीं होना चाहिए। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने पहले की विफलताओं से सीख लेते हुए अपनी अपनी अपेक्षाओं के अनुरूप लक्ष्य तैयार किया और उसे हासिल करने के लिए योजना बनाई और वे उसमें सफल भी हुए। किसी भी कार्य को करने के लिए एकाग्रता व अनुशासन बहुत जरूरी है। अगर कोई छात्र वैज्ञानिक बनना चाहता है तो उसे अपने आप से यह अपेक्षाएं करनी चाहिए कि वह हर चीज को बारीकी से देखे और उसपर गहन विचार करे। इसके बाद वह उसपर शोध करके किसी नए चीज का आविष्कार कर सकता है। अगर कोई छात्र राजनेता बनना चाहता है तो उसमें बोलने की कला, स्थिति को संभालने की कला जरूर होनी चाहिए। इसके लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत होती है। अगर कोई छात्र शिक्षक बनना चाहता है तो उसे अपने विषय का ज्ञान होना चाहिए तभी तो वह दूसरे छात्रों को पढ़ा सकता है। इसके लिए वह योजना बनाकर पढ़ाई करे और समय के साथ शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे बदलाव को स्वीकार करते हुए इस दिशा में आगे बढ़े। तभी लक्ष्य की प्राप्ति संभव है।

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    डॉ. व्रजेश गौतम, शिक्षक, सर्वोदय बाल विद्यालय हस्तसाल

    वैज्ञानिक बनना चाहता हूं

    मैं वैज्ञानिक बनना चाहता हूं। इसके लिए मुङो काफी पढ़ना पड़ेगा। शिक्षक कहते हैं कि सफलता के लिए पढ़ाई के साथ ही जीवन में अनुशासन बहुत जरूरी है। सभी चीजों की बारीकियों को समझना होगा। तभी मैं इसमें सफल हो पाऊंगा। इस दिशा में प्रयासरत हूं। मुङो जरूर सफलता मिलेगी।

    आयुष, कक्षा-3

    मन लगाकर पढ़ता हूं

    मुङो पढ़ाई लिखाई करने में काफी मन लगता है। जब भी कहीं पढ़ाई में कठिनाई में आती हूं तो अभिभावक व शिक्षक उचित मार्गदर्शन करते हैं। मैं अपनी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए मन लगाकर पढ़ाई कर रही हूं। अच्छे नंबर लाने में सफलता तभी मिलेगी जब नियमित रूप से पढ़ाई की जाएगी।

    अंशिका, कक्षा-4

    खुद से होती हैं अपेक्षाएं

    हर अभिभावक को अपने बच्चों से अपेक्षाएं होती हैं। इसके साथ-साथ हमें भी खुद से बहुत सारी अपेक्षाएं हैं। इसके लिए एक योजना के अनुरूप तैयारी जरूरी है। योजना को मूर्त रूप देने के लिए हमारे साथ शिक्षक व अभिभावक हैं जो उचित समय पर मुङो मार्गदर्शन देते हैं।

    अनास खान, कक्षा-5

    मानव सर्वोत्तम कृति

    मानव प्रकृति की सवरेत्तम कृति है, जिसकी उत्पत्ति एक विशेष उद्देश्य और अपेक्षाओं की प्राप्ति के लिए हुई है। लक्ष्य प्राप्ति के सबसे आवश्यक वस्तुओं में दो चीजें है। पहला लक्ष्य निर्धारण और दूसरी योजना। सबसे पहले अजरुन की तरह लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित होना और फिर उस लक्ष्य प्राप्ति के लिए योजना बनाना, क्योंकि जो छात्र योजना बनाने में विफल रहता है वह विफल होने की योजना बना लेता है। साथ ही जो छात्र अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए योजना के अनुसार कार्य करते हैं वह निश्चित रूप से जीवन में सफल होते हैं और लोगों की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं।

    पंकज कुमार सिंह, शिक्षक

    छात्र जीवन अहम

    छात्र जीवन व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का सबसे अहम समय होता है। इसमें छात्रों को यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वे अपने रास्ते से भटके नहीं। नियमित अध्ययन, एकाग्रता व संतुलित व्यवहार छात्र जीवन की पहली सीख है। जो छात्र इन तीनों चीजों पर ध्यान देते हैं वे कभी भी अपने रास्ते से भटकते नहीं हैं। छात्रों को पढ़ाई के साथ अनुशासित जीवन जीना चाहिए। अनुशासित जीवन व्यक्तित्व के विकास तथा उद्देश्यपरक उपलब्धि में सहायक बनता है, जिससे स्वयं व समाज को संतुष्टि मिलती है। इस सबमें छात्रों के अभिभावक व शिक्षकों का अहम योगदान होता है। सही मार्गदर्शन बहुत जरूरी है।

    मदनलाल बैरवा, शिक्षक

    शिक्षित समाज जरूरी

    अपेक्षाओं का निर्धारण करना व उसे प्राप्त करना ये दोनों चीजें मनुष्य की शिक्षा पर निर्भर करता है। छात्र के जीवन में शिक्षा की सही योजना वर्तमान मूल्यों पर आधारित होती है। अपेक्षाओं का आधार समाज को शिक्षित करके ही संभव है। उचित दिशा में कदम रखना इसकी प्राप्ति का प्रथम सोपान है। यह केवल सामाजिक मूल्यों से प्रशिक्षित ही प्रयत्न कर सकता है। वर्तमान शिक्षा पद्धति में संक्षिप्त बदलाव करके ही मनुष्य को तार्किक रूप से, अपेक्षित निर्धारण के लिए तैयार किया जा सकता है। अपेक्षाओं का चयन स्पष्ट, दूरगामी व स्वार्थरहित हो तो इसे प्राप्त करना और भी सरल हो जाता है।

    मनीष कुमार, शिक्षक

    पढ़ें- खुद से अपेक्षाएं

    सपनों के आकाश में लक्ष्य के तार