छात्र जीवन में परिश्रम करने से जीवनभर मिलेगा लाभ
यदि माता-पिता व गुरुजन अबोध बच्चों में नैतिक मूल्यों की समझ विकसित कर सकें तो वही हमारी जीत है।
यदि माता-पिता व गुरुजन अबोध बच्चों में नैतिक मूल्यों की समझ विकसित कर सकें तो वही हमारी जीत है। संस्कारों की यही सीख घर-परिवार से शुरू होकर विद्यालय पहुंचती है और वहां गुरु-शिष्यों के बीच तराश कर इसे मूर्तरूप दिया जाता है। जब बच्चे के भीतर अनुशासन की आदत हो जाती है तो निश्चित रूप से उसे बेहतर शिक्षा प्राप्त करने की राह मिल जाती है। इसके बाद नैतिक मूल्य, संस्कार और कर्तव्य के भावों से सींचे गए सज्जन व्यक्तित्व को जीवनभर किसी तरह की मुश्किल आड़े नहीं आती। इससे विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का चहुंमुखी विकास होता ही है, देश के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
बच्चों की दृष्टि से अगर देखा जाए तो जीवन में लक्ष्य का निर्धारण बहुत ही जरूरी है, क्योंकि उसके बाद ही वे आगे की रणनीति बना पाते हैं कि भविष्य में उन्हें कौन सी राह चुननी है और उस राह पर किस तरह से सफर तय करना है और कितने निर्धारित समय में लक्ष्य को प्राप्त करना है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ.अब्दुल कलाम का कहना था कि छात्रों को जीवन में हमेशा बड़े लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए। फिर उनकी प्राप्ति के लिए निरंतर मेहनत करनी चाहिए, क्योंकि अगर हम आज मेहनत करेंगे तभी उसका सकारात्मक असर हमारे आने वाले जीवन पर पड़ेगा। अगर हम छात्र जीवन में आराम करेंगे तो हमारा आने वाला समय कष्टकारी होगा और कई बार बहुत निराशाजनक भी हो सकता है।
छात्र जीवन में मिलता है सुधार का अवसर : छात्र जीवन को इसीलिए अनमोल कहा जाता है, क्योंकि इसमें हम अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए कठिन परिश्रम कर आगे बढ़ सकते हैं। अगर निर्धारित समय पर कोई काम नहीं किया तो हम निरंतर पिछड़ते ही चले जाते हैं। इस बारे में शिक्षक अक्सर विद्यार्थियों को एक नियम बताते हैं। इसके अंतर्गत यदि हम छात्र जीवन में आराम करते हैं तो आने वाले समय में हमें कई गुणा अधिक परिश्रम करना पड़ता है और उसका फल फिर भी बेहतर नहीं मिल पता। अगर हम छात्र जीवन में मेहनत कर लेते हैं तो पूरा जीवन सुख के साथ ही समाज में सम्मान भी दिलाता है, मगर आज के समय में छात्रों को आलस्य ने जकड़ रखा है। इससे कॅरियर प्रभावित होता है।
पीछे न छूटें संस्कार व नैतिक मूल्य : वर्तमान समय में बच्चों के भीतर संस्कारों की भी कमी होती जा रही है। इसका एक बड़ा कारण है एकल परिवारों का होना। घर में अच्छी सीख देने वाले बड़े बुजुर्ग होते नहीं और कामकाजी माता पिता सुबह घर से निकल जाते हैं। ऐसे में बच्चों को वह संस्कार नहीं मिल पाते, जो संयुक्त परिवार में विशेष रूप से बच्चों को सीखने को मिलते हैं। एकल परिवार के कारण ही बच्चे बड़ों का निरादर भी करने लगे हैं, क्योंकि उन्हें बड़ों का महत्व ही नहीं पता। यह प्रवृत्ति हर परिवार के लिए घातक सिद्ध हो रही है। अच्छा समाज बनाने के लिए बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास करना होगा। तेज रफ्तार से भागती जिंदगी में संस्कार भी पीछे छूट रहे हैं। इसको ध्यान में रखते हुए हम खुद स्कूलों में पहली कक्षा के बच्चों को 10 मिनट प्रति दिन नैतिक मूल्यों का पाठ आज भी पढ़ाते हैं। इसका हमें सकारात्मक परिणाम भी मिल रहा है ।
हर किसी को निभानी होगी अपने स्तर पर जिम्मेदारी : विद्यालय रूपी बगीचे में छात्र हमारे जीवन में एक नन्हे पौधे की तरह आता है। एक बागवान की तरह हर छात्र में संस्कारों को सींचने की जिम्मेदारी शिक्षकों की होती है। विद्या रूपी अनमोल रतन देकर उनका जीवन संवारना हमारा कर्तव्य है। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि बच्चों के पहले शिक्षक उनके माता पिता ही होते हैं, मगर उनके जिम्मे अच्छे संस्कार देना और शिक्षकों के जिम्मे बेहतर शिक्षा देना होता है। अगर हम सभी अपनी अपनी जिम्मेदारियां अच्छे तरीके से निभाएंगे तो बच्चों का उज्ज्वल भविष्य भी निश्चित है। बच्चों की जिम्मेदारी और कर्तव्य तब शुरू होते हैं जब उनकी समझ थोड़ी विकसित हो जाती है, फिर उन पर निर्भर करता है कि वह शिक्षा प्राप्त करने में कितनी रुचि दिखाते हैं। कितने संजीदा तरीके से आगे बढ़ रहे हैं और भविष्य को लेकर कितने गंभीर हैं, यह सब बातें उनके आगामी सुखी जीवन के लिए उत्तरदायी होंगी। वर्तमान में बच्चों में उदंडता अधिक देखने को मिलती है, मगर एक अच्छी पहल करके उन्हें सही राह में लाया जा सके तो इससे बेहतर बात और कोई नहीं हो सकती।1बेहतर शिक्षा के लिए एकाग्रता जरूरी : इस समय सबसे ज्यादा मोबाइल का दुरुपयोग हो रहा है। इससे बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है, क्योंकि शिक्षा पर उनका ध्यान ही केंद्रित नहीं हो पाता। बेहतर शिक्षा ग्रहण करने के लिए एकाग्रता बहुत जरूरी है। आज बच्चे बाहर का खाना ज्यादा पसंद करते हैं। इसका दुष्प्रभाव उनके शरीर पर पड़ता है। उनकी याददाश्त भी कमजोर हो जाती है और मानसिक संतुलन भी बिगड़ता है। माता पिता को हम यही संदेश देना चाहते हैं कि मूल्यों का स्तर गिरने न दें और शिक्षकों के लिए भी यह जरूरी है कि वे बच्चों के भीतर विश्वास जगाएं, ताकि आज के छात्र आने वाले समय में समाज के लिए मिसाल बन जाएं।
लोकेश कुमार गुप्ता, प्रधानाचार्य, राजकीय बाल उच्चतम माध्यमिक विद्यालय, विजय पार्क।
कम सोचो, खुलकर जियो
कम सोचो और खुलकर जियो। हमारे जीवन में बहुत सी मुश्किलें रहती हैं मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि जीवन से आनंद खत्म हो जाए। यह सच्चाई किसी से छिपी नहीं है कि एक कामयाब इंसान ही शांत मन और सुखी जीवन का पूरा लुत्फ उठा पाता है। इसके पीछे उसकी मेहनत और संघर्ष होता है।
सिमरन, कक्षा-12
दूसरों को न पहुंचाओ दुख
हमें मम्मी-पापा सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं, ताकि हम भविष्य में कामयाब इंसान बन सकें। वे यह भी बताते हैं कि हमेशा खुश रहना चाहिए और दूसरों को भी दुख नहीं पहुंचाना चाहिए। जो लोग बुरे होते हैं वे सभी को तकलीफ देते हैं और जो अच्छे हैं वे कभी किसी का बुरा नहीं सोचते।
शिवांश अत्रेय, कक्षा-9
निर्धारित करें लक्ष्य
हर किसी को अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारित करके रखना चाहिए, क्योंकि अगर कोई उद्देश्य ही लेकर जीवन में आगे नहीं बढ़ेंगे तो भटकाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जीवन में कम से कम तीन वैकल्पिक लक्ष्य साधने चाहिए, ताकि समय आने पर पहली नहीं तो दूसरी मंजिल हासिल कर सकें।
सोनाली, कक्षा-12
माता-पिता व गुरुजनों ने सिखाए संस्कार
असल मायने में उसी लक्ष्य को साधकर मंजिल हासिल करनी चाहिए, जिसके बदले मिलने वाली खुशियां जीवन में लगातार बनी रहें। जब अपने छात्र जीवन में थे, तब हमें माता-पिता व गुरुजनों ने यह राह दिखाई। आज हम जिम्मेदार नागरिक हैं और ठीक वही कर्तव्य हमें भी निभाना है जो हमारे शिक्षकों ने निभाया था। बच्चों के भीतर इस सोच को जागृत करना है कि जीवन सफल बनाने के लिए मेहनत का विकल्प नहीं होता। छात्र जीवन में शिक्षा के ऊपर और कुछ नहीं है। अगर हम बेहतर शिक्षा भर प्राप्त कर लें तो बाकी दूसरी सभी चीजें जीवन में अपने आप हासिल होती जाती हैं।
शशिबाला शर्मा, शिक्षिका
बच्चों को सही दिशा में ले जाएं शिक्षक
परिवर्तन के दौर में हर पीढ़ी को आपसी सामंजस्य बैठाना होगा। यह अभिभावकों व शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि बच्चों को लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए सुखी जीवन की सही दिशा में ले जाएं। अगर हम अपने ही इस कर्तव्य को निभा पाने में सफल होते हैं तो यह हमारे लिए भी किसी बड़ी जीत से कम हनहीं है। शिक्षकों के ऊपर न सिर्फ बच्चों को बेहतर इंसान बनाने की जिम्मेदारी होती है, बल्कि अपने आपको साबित करने का जिम्मा भी हम पर है। गलत राह पर चलना आसान है मगर उसका अंत दुष्परिणाम से ही होता है, वहीं सही राह पर चलकर छोटी उपलब्धि भी मायने रखती है।
संदीप चौहान, शिक्षक
सीखने के लिए होता है विद्यार्थी जीवन
अपनी जिम्मेदारियों का वहन करते हुए शिक्षकों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि हम किस तरह से बच्चों को लक्ष्य और सुख सुविधाओं की ओर ले जा सकते हैं। विद्यार्थी जीवन सीखने के लिए होता है। स्मरण शक्ति तेज होती है और इसमें नींव अच्छी पड़नी चाहिए। अभिभावकों के साथ ही शिक्षकों के कंधों पर भी पूरी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों के सुंदर भविष्य का निर्माण कर सकें। सुखी जीवन मिलेगा तो हर काम अच्छे से कर सकेंगे और अपने जीवन में सभी कर्तव्यों को निभाने के लायक बन सकेंगे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अपने छात्र रूपी नन्हे पौधों को सींचना है।
भावना सवनानी, शिक्षिका
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