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Maharashtra: मराठवाड़ा में साल 2022 में एक हजार से अधिक किसानों ने की आत्महत्या, 2021 की तुलना में बढ़े मामले

आधिकारिक डेटा के मुताबिक 2001 से 2010 के बीच 2006 में सबसे अधिक 379 किसानों ने आत्महत्या की है। वहीं 2011-2020 के दशक में 2015 में सबसे अधिक 1133 किसान ने खुद को मौत के हवाले कर दिया था।

By AgencyEdited By: Mohd FaisalPublished: Sun, 15 Jan 2023 11:48 AM (IST)Updated: Sun, 15 Jan 2023 11:48 AM (IST)
मराठवाड़ा में एक हजार से अधिक किसानों ने की आत्महत्या (फोटो जागरण)

औरंगाबाद एजेंसी। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या से जुड़े चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। अधिकारियों ने बताया है कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में 2022 में 1,023 किसानों ने आत्महत्या की है। अगर पिछले साल की बात करें तो साल 2021 में केवल 887 किसानों ने अपनी जान गंवाई थी।

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मराठवाड़ा में हुई किसानों की आत्महत्या की संख्या में वृद्धि

इन आंकड़ों से ये साफ पता चलता है कि मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्या की संख्या में वृद्धि हुई है, जो बेहद ही चिंताजनक है। बता दें कि जालना, औरंगाबाद, परभणी, हिंगोली, नांदेड़, लातूर, उस्मानाबाद और बीड जिलों में 2001 में केवल एक किसान ने आत्महत्या की थी। डिवीजनल कमिश्नरेट के आंकड़ों से पता चलता है कि 2001 के बाद से अब तक इस क्षेत्र के आठ जिलों में 10,431 लोगों ने अपना जीवन समाप्त कर लिया है।

2001 के बाद से 10 हजार से अधिक किसानों ने की खुदकुशी

आधिकारिक डेटा के मुताबिक, 2001 से 2010 के बीच 2006 में सबसे अधिक 379 किसानों ने आत्महत्या की है। वहीं, 2011-2020 के दशक में, 2015 में सबसे अधिक 1,133 किसान ने खुद को मौत के हवाले कर दिया था। एक अधिकारी ने बताया कि 2001 के बाद से आत्महत्या करने वाले 10,431 किसानों में से 7,605 को सरकारी मानदंडों के अनुसार सहायता मिली थी। बता दें कि पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में कभी सूखे तो कभी भारी बारिश जैसी स्थिति देखी गई है, जिसके कारण फसल खराब होती हैं। इसने किसानों की मुश्किलें काफी हद तक बढ़ाई है।

दिसंबर और जून के बीच संख्या में हुई बढ़ोत्तरी

अधिकारियों ने कहा कि क्षेत्र में सिंचाई नेटवर्क का भी पूरी क्षमता से उपयोग नहीं किया जा रहा है। जिला प्रशासन के सहयोग से उस्मानाबाद में किसानों के लिए एक परामर्श केंद्र चलाने वाले विनायक हेगाना ने किसान आत्महत्याओं का विश्लेषण करते हुए सूक्ष्म स्तर पर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शीर्ष स्तर पर नीतियां तैयार की जा रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन में सुधार की आवश्यकता है। इससे पहले जुलाई और अक्टूबर के बीच सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याएं दर्ज की गई थी, लेकिन पैटर्न बदल गया है। उन्होंने कहा बताया कि दिसंबर और जून के बीच संख्या बढ़ी है।

नीतियों को बेहतर बनाकर आत्महत्या के मामलों पर लगा सकते हैं अंकुश

वहीं, संख्या पर अंकुश लगाने की नीतियों पर हेगाना ने कहा कि नीतियों में खामियां ढूंढना और उन्हें बेहतर बनाना एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए। ऐसे लोगों का एक समूह होना चाहिए जो इस पर काम कर सकें। इसके अलावा महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने इस मामले पर कहा कहा कि किसानों के लिए कई बार कर्जमाफी हुई है, फिर भी आत्महत्या के आंकड़े बढ़ रहे हैं। जब हम उनका कर्ज माफ करते हैं तो हमें यह भी देखना होता है कि उनकी फसल की उपज को भी अच्छा रिटर्न मिले। वहीं, दानवे ने उच्च दरों पर बेचे जा रहे घटिया बीजों और उर्वरकों की चिंताओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ये कृषि क्षेत्र के लिए हानिकारक हैं।

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