Navratri 2022: मां ब्रह्मचारिणी का नाम कैसे पड़ा उमा, जिनकी तपस्या से तीनों लोकों में मच गई थी त्राहि-त्राहि
Navratri 2022 नवरात्र के दूसरे दिन देवी (Second Day of Navratri) ब्रह्मचारिणी की पूजा (Maa Brahmcharini Puja)की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी अपने दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रखती हैं और सफेद वस्त्र धारण करती हैं।
मुंबई, जागरण आनलाइन डेस्क। Maa Brahmcharini Puja: नवरात्र के दूसरे दिन (Second day of Navratri) देवी ब्रह्मचारिणी ( Maa Brahmcharini) की पूजा की जाती है। माता का यह रूप तपस्विनी का है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तपस्या करने वाली। इनका रूप बहुत ही उज्ज्वल और भव्य है।
इनकी पूजा के दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इनकी पूजा करने से तप, संयम, त्याग और पुण्य जैसे गुणों की प्राप्ति होती है। माता ब्रह्मचारिणी अपने दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रखती हैं और सफेद वस्त्र धारण करती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से धैर्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता, उसे सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर
मां ब्रह्मचारिणी का पवित्र मंदिर (Maa Brahmcharini Temple) वाराणसी (Varansi) में स्थित है। यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। नवरात्र के दिनों में यहां दर्शनों के लिए भक्तों की काफी भीड़ रहती है। मां ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का ही दूसरा रूप हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि नवरात्रि में यहां आने वाले श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
हजार वर्षों तक की कठिन तपस्या
कई हजार वर्षों की घोर तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का शरीर बहुत कमजोर हो गया था। उनकी स्थिति देखकर उनकी मां मैना बहुत दुखी हुईं और उन्होंने इस कठिन तपस्या से उन्हें दूर करने के लिए 'उ मा' कह कर आवाज दी। तभी से ही देवी ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा (Uma) भी पड़ा। उनकी तपस्या से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई।
देवी ब्रह्मचारिणी की तपस्या को देवता, ऋषि, सिद्ध, ऋषि सभी ने एक अभूतपूर्व गुण बताते हुए उनकी सराहना करना शुरू कर दिया। अंत में पितामह ब्रह्मा जी ने उन्हें आकाशवाणी से सम्बोधित करते हुए प्रसन्न होते हुए कहा- हे देवी! इतनी कठोर तपस्या आज तक किसी ने नहीं की।
आपके शानदार कृत्य की चारों तरफ तारीफ हो रही है। आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौली शिव आपको पति के रूप में अवश्य प्राप्त होंगे। तुम तपस्या से विरत होकर अब घर चली जाओ, तुम्हारे पिता जल्द ही तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।'
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
माता ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर कन्या रूप में जन्म लिया था। भगवान शंकर (Lord Shiva) को पति के रूप में पाने के लिए बहुत कठिन तपस्या की। इस कठिन तपस्या के कारण उनका नाम तपस्चारिणी यानि ब्रह्मचारिणी पड़ा।
किंवदंती के अनुसार, उन्होंने केवल फल और मूल खाकर एक हजार साल बिताए और सौ साल तक वे केवल शाक खाकर व्यतीत किए। कुछ दिनों तक कठोर उपवास रखते हुए, देवी ने खुले आसमान के नीचे बारिश और धूप के भयानक कष्टों को भी सहन किया।
मां ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि और पूजा मंत्र
सबसे पहले देवी को पंचामृत से स्नान कराएं, उसके बाद उन्हें फूल, अक्षत, कुमकुम और सिंदूर आदि अर्पित करें। देवी ब्रह्मचारिणी को सफेद और सुगंधित फूल अर्पित करने चाहिए। उन्हें मिश्री या सफेद रंग की मिठाई खिलाएं।
इसके बाद माता की आरती करें। आरती समाप्त होने के बाद पुष्य को अपने हाथों में लेकर मां रानी का ध्यान करें और इस मंत्र का जाप या जाप करें।
मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र ( Maa Brahmacharini Mantra)
या दवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ओम देवी ब्रह्मचारिण्ये नम:।तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।।
शंकराप्रिया त्वहिं भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मरिणी प्रणमाम्यहम्।।
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