झाबुआ में मतांतरण मामले में सख्त फैसला : शालोम चर्च के बिशप व सहयोगी को 4-4 साल की सजा, अर्थदंड भी लगाया
झाबुआ सत्र न्यायालय ने मतांतरण मामले में अहम फैसला सुनाया है। शालोम चर्च के बिशप पाल मुनिया और उनके सहयोगी पीथा भूरिया को एक आदिवासी युवक पर मतांतरण क ...और पढ़ें

मतांतरण के लिए बनाया दबाव (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, इंदौर। मध्यप्रदेश के जनजातीय बहुल झाबुआ जिले में मतांतरण के एक मामले में सत्र न्यायालय ने अहम फैसला सुनाया है। प्रोटेस्टेंट शालोम चर्च से जुड़े बिशप और उनके एक सहयोगी को एक आदिवासी युवक पर मतांतरण का दबाव बनाने का दोषी पाते हुए चार-चार वर्ष के कठोर कारावास और 50-50 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई गई है।
यह है मामला
मुंडत निवासी कैलाश सिंह भाबर ने कल्याणपुर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत के अनुसार, 25 सितंबर 2022 को शालोम चर्च के बिशप पाल मुनिया और उनके सहयोगी पीथा भूरिया उसे बहला-फुसलाकर चर्च ले गए। वहां उस पर ईसाई धर्म अपनाने का दबाव बनाया गया।
आरोप है कि इस दौरान धार्मिक अनुष्ठान किए गए, धार्मिक प्रतीक और पुस्तकें दी गईं तथा इलाज का प्रलोभन भी दिया गया। साथ ही हर रविवार को चर्च आने के लिए कहा गया।
घर पहुंचकर धमकाया
शिकायतकर्ता के अनुसार, जब उसने चर्च जाना बंद कर दिया तो 11 जनवरी 2023 को दोनों आरोपी उसके घर पहुंचे और नियमित रूप से चर्च आने का दबाव बनाते हुए धमकी दी। इसके बाद मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2021 के तहत मामला दर्ज किया गया।
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कोर्ट का फैसला
मामले की सुनवाई के बाद शुक्रवार को झाबुआ के प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश आरके शर्मा ने दोनों पक्षों के तर्क और साक्ष्यों के आधार पर आरोपियों को दोषी ठहराया। अदालत ने दोनों को चार वर्ष के कारावास और अर्थदंड की सजा सुनाते हुए स्पष्ट किया कि मतांतरण के लिए दबाव बनाना कानूनन अपराध है।

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