Bhopal News: नवजात के शव को लेकर बिलखता रहा परिवार, किसी ने नहीं की मदद, शव को बस से ले जाना पड़ा घर
मध्यप्रदेश के बंडा जिले में एक नवजात बच्चे के शव को घर ले जाने के लिए परिजनों के पास पैसे नहीं थे। अस्पताल प्रबंधन और लोगों ने भी मदद करने से मना कर दिया। हताश हुए परिजन शव को बस में घर ले जाने के लिए मजबूर हो गए।

भोपाल, ऑनलाइन डेस्क। सागर जिले के बंडा से दिल को छलनी करने वाली घटना सामने आई है। दरअसल, अपने नवजात बच्चे को अस्पताल से ले जाने के पैसे इकट्ठा न कर पाने के कारण दंपती ने अपने लाल को खो दिया। दंपती लोगों से मदद की भीख मांगते रहे लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की। अस्पताल पहुंचने के कुछ देर बाद ही उनके बच्चे ने दम तोड़ दिया।
शव को घर ल जाने के लिए नहीं जुटे पैसे
सागर जिले के बंडा निवासी बाबूलाल रैकवार की पत्नी की तीन दिन पहले सिजेरियन डिलीवरी से एक बेटे को जन्म दियाथा। हालांकि, जन्म लेने के बाद उस बच्चे की हालत काफी गंभीर हो गई थी। नवजात की हालत बिगड़ने पर शुक्रवार को 108 एंबुलेंस से भोपाल रेफर किया गया। पत्नी अस्पताल में भर्ती थी, बाबूलाल और उनकी मां नवजात के साथ कमला नेहरू अस्पताल आए। यहां कुछ ही घंटों बाद उपचार के दौरान नवजात ने दम तोड़ दिया।
शव वाहन ने मांगे सात हजार रुपये
लाचार स्वजन नवजात का शव लेकर बाहर आ गए। गांव तक की दूरी 200 किमी थी, लेकिन वहां तक जाने के पैसे नहीं थे। उसी वक्त शव वाहन चालक ने उनसे सात हजार रुपये मांगे, आर्थिक रूप से कमजोर परिवार इतने रुपये तो घर पहुंचकर भी नहीं चुका सकता था। उन्होंने अस्पताल प्रबंधन की मदद लेनी चाही, लेकिन उन्होंने नियम न होने की बात कहकर शव वाहन उपलब्ध कराने से मना कर दिया। इसके बाद समाजसेवी मोहन सोनी ने पीड़ित को एक हजार रुपये की मदद की और उसे ऑटो से बस स्टैंड भेजा। इसके बाद लाचार पिता अपने नवजात के शव को बस से घर लेकर गया।
अस्पताल के बाहर गिड़गिड़ाता रहा परिवार
समाजसेवी मोहन सोनी ने बताया कि शुक्रवार रात 10 बजे बाबूलाल रैकवार और उसकी मां अस्पताल में गिड़गिड़ाते हुए मदद मांग रहे थे। अस्पताल से बंडा जाने के लिए उनके पास रुपये नहीं थे। जिसके बाद हम दोस्तों ने आर्थिक सहायता कर स्वजनों को ऑटो से नादरा बस स्टैंड भेजा। वहां से बस द्वारा परिजन अपने घर पहुंचे।
वहीं, कमला नेहरू अस्पताल के सीएमओ डॉक्टर ने कहा कि स्वजन मदद मांगने के लिए आए थे, लेकिन हमारे पास शव वाहन की व्यवस्था नहीं है। इसके लिए कोई बजट आवंटन नहीं किया गया है। हमने उनको स्थानीय समाजसेवी के पास भेज दिया था, जिन्होंने कुछ मदद कर उन्हें घर रवाना किया।
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