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    National Epilepsy Day 2022: मोबाइल-टीवी का ज्‍यादा इस्‍तेमाल खतरनाक, बच्‍चे और युवा हो रहे हैं मिर्गी का शिकार

    National Epilepsy Day 2022 मोबाइल कंप्यूटर और टीवी पर अपना अधिकतर समय बिताने वाले युवा और बच्‍चे मिर्गी का शिकार हो रहे हैं। दरअसल देर रात तक मोबाइल का प्रयोग करने की वजह से उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती और वे तनाव में रहते हैं।

    By Jagran NewsEdited By: Babita KashyapUpdated: Thu, 17 Nov 2022 09:08 AM (IST)
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    मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी देखते रहने से बच्‍चों और युवा वर्ग में मिर्गी का खतरा बढ़ता जा रहा है

    भोपाल, जागरण आनलाइन डेस्‍क। National Epilepsy Day 2022: हमेशा मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी देखते रहने से बच्‍चों और युवा वर्ग में मिर्गी का खतरा बढ़ता जा रहा है। मोबाइल पर ज्‍यादा समय बिताने वाले लोग तनाव में रहते हैं जिसकी वजह से वे मिर्गी का शिकार हो सकते हैं।

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    विशेषज्ञ तनाव को मिर्गी का मुख्य कारण मानते हैं। यह रोग ज्‍यादातर 12 से 18 वर्ष की आयु के बीच के बच्‍चों में देखा गया है। दरअसल युवा देर रात तक मोबाइल का इस्तेमाल करते रहते हैं, जिससे उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती और तनाव बढ़ने की वजह से उन्हें मिर्गी के दौरे पड़ने की संभावना अधिक होती है।

    मिर्गी के बारे में कई भ्रांतियां

    यहां लोगों में मिर्गी के बारे में कई भ्रांतियां हैं, उनमें से एक यह है कि मिर्गी एक लाइलाज रोग है। हमीदिया अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग के डाक्‍टर आरएस यादव के अनुसार यह समस्या सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्गों में देखने को मिलती है। दुर्घटना की वजह से या फिर सिर में चोट लगने के कारण कुछ वर्षों के बाद भी से रोग हो सकता है। बच्चों में मिर्गी का मुख्य कारण अनुवांशिक हो सकता है या मां के गर्भ में या प्रसव के दौरान या किसी अन्य कारण से मस्तिष्क में रक्त या ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी के कारण हो सकता है।

    बुजुर्गों में यह बीमारी किसी अन्य बड़े विकार या बीमारी के कारण आती है। डाक्‍टर यादव बताते हैं कि बुजुर्गों में उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी बीमारियों के कारण लकवा या ट्यूमर बनना भी दौरे का कारण बन सकता है।

    न्यूरोलाजी के करीब 10 से 12 फीसदी मामले ऐसे आते हैं जिनमें सिर में चोट लगने के बाद मिर्गी की समस्या शुरू हो जाती है। भोपाल के हमीदिया अस्पताल में रोजाना करीब 40 मरीज न्यूरोलाजी की ओपीडी में पहुंच रहे हैं। जबकि दो से ज्यादा मरीज शहर में अलग-अलग जगहों पर पहुंचते हैं।

    जूता सुंघाना इसका इलाज नहीं

    वरिष्ठ न्यूरोलाजी विशेषज्ञ डॉ. डीके वर्मा ने कहा कि मिर्गी के दौरे के दौरान जूतों को सूंघने का कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है। मिर्गी आने पर जूतों को सूंघने से कोई फायदा नहीं होता। मिर्गी का दौरा पड़ने की स्थिति में व्यक्ति को तुरंत बायीं करवट लेटना चाहिए।

    अगर मुंह से झाग, थूक या खून निकल रहा हो तो उसे साफ कर लें, जिससे वह गले में न जाए। थूक, झाग या खून अगर गले में चला जाए तो इससे सांस रुक सकती है और जान भी जा सकती है। उन्होंने बताया कि मिर्गी का दौरा एक-दो मिनट बाद अपने आप खत्म हो जाता है और हमें लगता है कि जूता सूंघने से ऐसा हुआ है, यह एक भ्रम है।

    मिर्गी लाइलाज है

    न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ डाक्‍टर डीके वर्मा ने कहा कि मिर्गी को शत-प्रतिशत ठीक किया जा सकता है, लेकिन इसका इलाज ठीक से करने की जरूरत है। दवा धीरे-धीरे कम हो जाती है। तब मनुष्य औषधि और रोग से पूर्णतः मुक्त हो जाता है। दवा का पूरा कोर्स पूरा करना आवश्यक है। यह कोर्स एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है। पाठ्यक्रम की अवधि विभिन्न जांच के आधार पर तय की जाती है।

    मिर्गी किसी बीमारी का नाम नहीं है

    किसी एक बीमारी का नाम मिर्गी नहीं है। यह सभी प्रकार की बीमारियों का मेल है। मिर्गी के दौरे के दौरान दिमाग का संतुलन बिगड़ जाता है और शरीर लड़खड़ाने लगता है। रोगी जिस हालत में होता है उसी में गिरकर बेहोश हो जाता है।

    हाथ-पैर में झटके आने लगते हैं। मुंह से झाग आने लगता है। मिर्गी के दौरे में ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति ठीक है लेकिन अचानक बेहोश हो जाता है। स्ट्रोक का असर खत्म हो जाने के बाद भी साफ बोलने में दिक्कत होती है।

    हमीदिया अस्पताल में ऐसे ही रोजाना करीब 50 मरीज पहुंचते हैं। जिन्हें मिर्गी का इलाज कराना होता है। न्यूरोलॉजी ओपीडी में रोजाना 20 फीसदी मिर्गी के मरीज आते हैं।

    - डा.आरएस यादव, न्यूरोलॉजी स्पेशलिस्ट, हमीदिया भोपाल

    मिर्गी अलग-अलग कारण की वजह से होती है, यह दो-तीन साल के इलाज के बाद ठीक हो जाता है। लेकिन कई बार 5 साल तक का समय लग जाता है।

    - डा. डीके वर्मा

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