दुनिया में कोविड-19 वैक्‍सीन बनाने के चल रहे 150 प्रोजेक्‍ट, क्‍लीनिकल ट्रायल तक पहुंचे ये 5 देश

चीन अमेरिका इजरायल के बाद अब ब्रिटेन और जर्मनी का भी नाम जुड़ गया है। यहां भी कोरोना की वैक्‍सीन बनाने के दावे के साथ इसका क्‍लीनिकल टेस्‍ट शुरू हो गया है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 24 Apr 2020 10:30 AM (IST) Updated:Fri, 24 Apr 2020 11:30 AM (IST)
दुनिया में कोविड-19 वैक्‍सीन बनाने के चल रहे 150 प्रोजेक्‍ट, क्‍लीनिकल ट्रायल तक पहुंचे ये 5 देश
दुनिया में कोविड-19 वैक्‍सीन बनाने के चल रहे 150 प्रोजेक्‍ट, क्‍लीनिकल ट्रायल तक पहुंचे ये 5 देश

लंदन। दुनिया भर में कोरोना वायरस के वैक्‍सीन बनाने की मुहिम में कुछ देश इसके दूसरे चरण में पहुंच गए हैं। इनमें चीन, अमेरिका, इजरायल के बाद अब ब्रिटेन और जर्मनी का भी नाम जुड़ गया है। ब्रिटेन ने भी कोरोना की वैक्‍सीन बनाने के दावे के बाद अब इसका इंसानों पर टेस्‍ट शुरू कर दिया है। एएफपी के मुताबिक ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में इस वैक्‍सीन का टेस्‍ट किया जा रहा है। आपको बता दें कि इस वैक्‍सीन को बनाने वाले शोधकर्ता करीब एक महीने तक इसका क्‍लीनिकल टेस्‍ट करेंगे। इसके लिए ब्रिटेन के 200 अस्पतालों में करीब पांच हजार से ज्यादा लोगों पर इसका परीक्षण किया जाएगा। 

शोधकर्ताओं को उम्‍मीद है कि ChAdOx1 nCov-19 नाम से बनी ये वैक्‍सीन कोरोना मरीजों पर 80 फीसद तक सफल रहेगी। इससे जुड़े वैज्ञानिक ऐसा इसलिए भी कह रहे हैं क्‍योंकि इस वैक्‍सीन का जानवरों पर किया गया टेस्‍ट सफल रहा है। इस वजह से इस वैक्‍सीन को बनाने वाली टीम इसको लेकर काफी उत्‍साहित है। आपको बता दें कि पूरी दुनिया में इस वायरस की वैक्‍सीन बनाने के करीब 150 प्रोजेक्‍ट चल रहे हैं लेकिन क्‍लीनिकल टेस्‍ट की इजाजत केवल 5 देशों की वैक्‍सीन को ही मिली है।

शोध निदेशक प्रोफेसर सारा गिलबर्ट का दावा है कि इस वैक्‍सीन का कोई भी साइड इफेक्‍ट नहीं है। सारा को उम्‍मीद है कि जून तक इस वैक्‍सीन के शुरुआती नतीजे उनके सामने आ जाएंगे। यदि ये नतीजे सफल रहे तो इस वर्ष सितंबर तक इसकी दस लाख वैक्‍सीन तैयार की जाएंगी। सरकार और दूसरे विभागों से मंजूरी के बाद इसे तेजी से बांटा जाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि ये वैक्‍सीन कोरोना के मरीजों पर उनकी उम्‍मीद के मुताबिक खरी उतरती है तो इस वायरस के प्रसार को रोकने के साथ-साथ इसको खत्‍म करने का भी रामबाण इलाज दुनिया को मिल जाएगा। यहां पर आपको ये भी बता दें कि वैज्ञानिकों ने इस वैक्‍सीन को बनाने के लिए चिंपैंजी में मिले एक वायरस का इस्‍तेमाल किया है।

ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी का ये भी कहना है कि ये वैक्‍सीन छह महीने में तैयार की जा सकती है। इसकी वजह वैज्ञानिक कोरोना वायरस और पहले आ चुके सार्स की समानता को मान रहे हैं। जर्मनी में बायोनटेक और अमेरिकी कंपनी फाइजर द्वारा तैयार टीके को भी बुधवार मनुष्यों पर परीक्षण करने की मिल गई थी। जर्मनी की कंपनी को पहले चरण में 18 से 55 साल के 200 वालंटियर को खुराक देगी। क्‍लीनिकल ट्रायल के पहले चरण में 18 से 55 साल के 510 वालंटियर्स को इसकी खुराक दी जा चुकी है। गौरतलब है कि विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के महानिदेशक लगातार वैक्‍सीन बनाने और इसके लिए सभी देशों को साथ आने की बात करते रहे हैं। पिछले दिनों उन्‍होंने कहा था कि बिना वैक्‍सीन बने इस समस्‍या से नहीं निकला जा सकता है।

गौरतलब है कि इससे पहले चीन की मिलिट्री मेडिकल साइंसेज एकेडमी-कैनसिनो बायो का 16 मार्च से परीक्षण शुरू हो चुका है। इसके अलावा अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ संग वैक्‍सीन का 15 मार्च से परीक्षण शुरू कर दिया है। अमेरिकी लैब इनवियो फार्मास्यूटिकल्स ने 6 अप्रैल को वैक्‍सीन का क्‍लीनिकल ट्रायल शुरू कर चुकी है। इजरायल की कंपनी मिगवैक्‍स मई की शुरुआत में कोविड-19 वैक्‍सीन का ट्रायल शुरू करने वाली है। इससे पहले ये कंपनी इंफेक्शियस ब्रॉन्‍काइटिस वायरस की दवा बना चुकी है। इसके रिसर्च के डायरेक्‍टर प्रोफेसर इमतात शलीत के मुताबिक ये ट्रायल छह से नौ महीने का होगा।

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