ब्रिटिश प्रधानमंत्री की मानते तो 9 महीने बाद मिलती आजादी, जानिए फिर क्‍या हुआ

फरवरी 1947 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि सरकार तीन जून 1948 से भारत को पूर्ण आत्म प्रशासन का अधिकार प्रदान कर देगी। फि‍र शुभकामनाओं का दौर शुरू हो गया।

By sunil negiEdited By: Publish:Sat, 13 Aug 2016 08:48 AM (IST) Updated:Tue, 16 Aug 2016 07:00 AM (IST)
ब्रिटिश प्रधानमंत्री की मानते तो 9 महीने बाद मिलती आजादी, जानिए फिर क्‍या हुआ

देहरादून, [दिनेश कुकरेती]: पतझड़ शुरू हो चुका था और डालियों की शाखाओं पर फूटने लगे थे नवांकुर। शीत के आगोश से मुक्त हो रही धरा का यौवन निखरने लगा था। चारों दिशाओं में गूंज रहा था मधुमास का मधुर संगीत। बावजूद इसके लोगों के चेहरों पर उदासी थी। वे इस वासंती उल्लास में भी घुटन सी महसूस कर रहे थे। इसी बीच फरवरी 1947 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट रिचार्ड एटली ने घोषणा की कि सरकार तीन जून 1948 से भारत को पूर्ण आत्म प्रशासन का अधिकार प्रदान कर देगी। फिर क्या था, पूरे देश में उल्लास की लहर दौड़ पड़ी और तन-मन में थिरकने लगा वसंत। मित्र-परिचितों को भेजी जाने लगीं शुभकामनाओं से भरी पाती।
इसी बीच फरवरी 1947 में ही लार्ड लुई माउंटबेटन को भारत का आखिरी वायसराय नियुक्त किया गया। उन पर व्यवस्थित तरीके से भारत को स्वतंत्रता दिलाने की जिम्मेदारी थी। माउंटबेटन 15 अगस्त की तारीख को शुभ मानते थे, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब 15 अगस्त 1945 को जापानी आर्मी ने आत्मसमर्पण किया था, तब वे अलाइड फोर्सेज के कमांडर थे। सो, उन्होंने भारत की आजादी की तिथि तीन जून 1948 से 15 अगस्त 1947 कर दी। यह खबर सुन तो दो सौ साल से गुलामी की बेड़ियों में जकड़े भारतवासी खुली हवा में सांस लेने को मचल उठे। बेसब्री इतनी कि खुशी मनाने के लिए 15 अगस्त तक का इंतजार करना भी भारी पड़ रहा था। सो, उत्सवों का सिलसिला सा चल पड़ा।

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वैसे भी फाल्गुन उल्लासभरा महीना होता है। प्रकृति हरीतिमा की चादर ओढ़ नवयौवना बनकर झूमने लगती है। रंग-बिरंगे फूलों से महकने लगती हैं दसों दिशाएं और गूंजने लगते हैं फाग के गीत। फिर यह तो ऐसा मौका था, जब होली स्वतंत्रता की दूत बनकर आई थी। एक तरह से आजादी देशवासियों के लिए होली का प्रेमोपहार था। जाहिर है खुशियां रंगीन होनी ही थीं। प्रबुद्ध लोगों की ओर से मित्र-परिचितों को चिट्ठियों के जरिए बधाई संदेश भेजे जाने लगे।

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ऐसे ही शुभकामना पत्र सात मार्च 1947 को मानव आश्रम बरेली, उप्र. के मंत्री विश्वबंधु नैथाणी की ओर भी भेजे गए। जो उन्होंने अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ के प्रधान जगजीवन राम, संस्थापक डॉ. धर्मप्रकाश व कार्यकर्ता प्रधान एचजे खांडेकर के सहयोग से छपवाए थे। इस पत्र में एक तरफ नूतन वर्ष का अभिनंदन और होली के 'प्रेमोपहार' स्वरूप कविता छपी हुई थी तो दूसरी ओर महात्मा गांधी व जवाहरलाल नेहरू के उद्गार थे। हालांकि, पत्र में आजादी की पुरानी तिथि जून 1948 अंकित है, क्योंकि इनकी छपाई ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली की घोषणा के तुरंत बाद हो गई थी।

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यह था पाती का मजमून
अंग-अंग में मानवता का रंग चढ़ाकर लाली, भेदभाव के ईंधन वन को खाक बना मतवाली, मां के बंधन खोली-खोली, मंगल घट में सुखरस घोली, स्वतंत्रता की दूती बनकर आई अभिनव होली, रोली का उपहार लिए हम वंदनमणि का हार लिए हम, देते हैं हम स्वतंत्र युग में प्रेमभरा यह अभिनंदन।

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